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रक्षाबंधन

रक्षाबंधन

आज सुबह से ही हड़बड़ाहट में लग रहे हैं 

चेहरे पे खुशी है पर घबराहट में लग रहे हैं

खुद ही खुद से करके बाते मुस्कुराने लगते

जाने क्यों दादाजी बड़बड़ाहट में लग रहे हैं।


चश्मा साफ करके कभी रास्ता ताक रहे हैं

तो कभी दीवार पे टँगी घड़ी को झांक रहे हैं

कभी खो जाते हैं वो गुजरे वक्त की यादों में

भीगी सी पलकें छुपाकर ,कर साफ रहे हैं।


उनकी बेचैनी को देख मुझसे गया नही रहा 

मैंने पूछा दादाजी बताओ तो सही क्या हुआ

अपनी आँखों पे नाक पर फेरकर हाथ उसने

घुट से गले से लम्बी सी सांस ली और कहा


कोई मसरूफियत होगी,नहीं तो आती जरूर

डाकिए के हाथों ही सही भिजवाती जरूर

भूलती नही कभी राखी का दिन बहन मेरी

न आने की मजबूरी होती तो बताती जरूर।।

            के आर अमित

     अम्ब ऊना हिमाचल प्रदेश

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