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सजग बुद्धिजीवी कवि की मरते मानवीय मूल्यों और सूखती संवेदना के प्रति चिंता की प्रखर अभिव्यक्ति हैं ‘

कवि –कथाकार प्रवीणकुमार का नवीनतम कविता संग्रह ‘नियंता नहीं हो तुम ‘ उनकी बानवे चिन्तन परक कविताओं का संग्रह है .चितन और दार्शनिकता से परिपूर्ण इन कविताओं में उत्साह –अवसाद ,आशा –हताशा ,बाजारवाद - साम्यवाद ,विपन्नता –सम्पन्नता आदि के परस्पर विरोधी और सहयोगी दोनों ही तरह के विचारों को स्थान मिला है पर इन सब विषयों और विचारों को अपने सृजन का विषय बनाते हुए कर्म की प्रधानता स्थापित करता है .महत्वपूर्ण यह है कि कर्म के सिद्धांत का प्रतिपादन करते हुए भी कवि कर्ता होने के अहं से मुक्त है तभी तो वह अपने संग्रह की शीर्षक कविता में कहता है----

ज्ञान विज्ञान के चंद भेद जानकर /बौरा गया निरीह और तुच्छ मानव /लेकिन वासुदेव की तरह /कुदरत कर रही है आगाह –/बीमारी ,भूकम्प ,चक्रवात के संकेतों से /हे मनुष्य /तुम नहीं हो मेरे नियंता /मेरी अन्य संतानों की तरह /तुम्हारा अस्तित्व भी निर्भर है /मेरी ‘करुणा’ पर

संग्रह की रचनाओं पर बीते दिनों की महामारी से भयभीत मनुष्य की विवशता का चित्रण है तो ‘समय के ठहर जाने से’ प्राकृतिक वातावरण में हुए सुखद बदलाव का रेखांकन भी प्रवीणकुमार के इस संग्रह की कविताओं में हुआ है .वे ‘विहंस रहा क्यों सेमल वृक्ष ‘कविता में लिखते हैं ---

“---काल के भाल पर खिंच रही है/ एक विभाजनकारी रेखा /ऐसे विकट समय में भी तुम विहंस रहे हो सेमल वृक्ष/ क्या तुम बौरा गये हो ?/हाँ ,बौरा गया हूँ मैं /अब मुझे छूकर गुजरने वाली पवन चंचल व शोख हो गयी है/ मुझ पर पड़ने वाली धूप धुली धुली सी है/ मैं अब देर तक निहार सकता हूँ /अपने आराध्य नील गगन को ----“

कोरोना काल की प्रतिछाया इस संग्रह की अनेक कविताओ पर पड़ी है .कवि का संवेदनशील मन इस विकट दौर में बार बार करुणा विगलित हुआ है .उनकी ऐसी कविताओं में –‘कोई नहीं दरकार ‘,’ट्वीट’

‘आखिरी वार ‘’नियंता नहीं हो तुम ‘ ऐसी ही कविताएँ हैं .

संग्रह की कई कविताएँ व्यवस्था की विसंगतियों पर करार व्यंग्य करती हैं .कवि ने अपने व्यंग्य वाणों का शिकार कवियों और लेखकों को भी बनाया है ..वह अपनी ‘लेखक महान’ कविता में लिखते हैं –

“---उन्हें दूर –दूर तक नहीं  है खबर /राजनीति पढने –पढाने/ और करने में होता है /उतना ही फर्क /जितना होता है बीच /जमीन –आसमान /अपनी गली को भी जो नहीं कर सकते नेतृत्व  /ऐसे महान लेखक को मेरा प्रणाम /”

व्यंग्य का दायरा सिर्फ लेखकों और कवियों तक ही सीमित नहीं है .समाजसेवा के नाम पर दुकान चलाने वालों पर प्रहार करती कविता की बानगी देखिये ---

वह सदैव सजे –धजे /मुस्कुराते हुए दिखाई देते हैं /शहर में कहीं भी कोई भी कार्यक्रम हो /हर जगह मौजूद होते हैं /सोशल मीडिया पर हर रोज /नये नये पोज में अवतरित होते हैं /यूँ शेष समय में वह /ह्यूमन रिसोर्स का कारोबार करते हैं ----

‘ह्यूमन रिसोर्स ‘के कारोबार में छिपा व्यंग्य हमे अपने आसपास के अनेक चमकते दमकते चेहरों को गौर से देखने और उनके बारे अलग नजरिये से सोचने को बाध्य करते हैं .

प्रवीणकुमार की कविताये प्रथम द्रष्टया सपाट बयानी सी लगती हैं पर सीधी सरल बात कहते कहते वे कुछ ऐसा कह देते हैं कि सजग पाठक को शब्दों के भीतर से अर्थों की अनेक सावधानी से छिपाई गयी परते नजर आने लगती हैं .प्रवीणकुमार की कहन कई जगह पर ‘धूमिल ‘की याद दिलाती है देखें –

हाथी के दांत दिखाने के और /खाने के और ,/धर्मगुरु, राजनेता ,अफसर व् समाजसेवी के चरित्र में नहीं होता कोई बुनियादी फर्क /चारों की सत्ता खड़ी होती है /छद्म की रेत पर /इन सबसे ज्यादा पारदर्शी होता है आम आदमी .----

कवि हमारे युग की संवेदन हीनता को रेखांकित करते हुए कहता है –

धीरे धीरे गन्दला रहा है रिश्तों –नातों का  तालाब /सूख रही है मुहब्बत की झील /ऐसे अनमने समय में /पहले से ज्यादा याद आने लगा है नीत्शे ----

एक सौ छिहत्तर पृष्ठ के बानवे कविताओं वाले आकर्षक कलेवर और उत्कृष्ट मुद्रण वाला यह काव्य संग्रह विचारवान बुद्धिजीवी पाठकों के लिए है .कुछ कविताएँ कोमल भाव और अनुभूतियों की भी हैं पर ‘नियंता नहीं हो तुम ‘ की कविताओं के सृजन में  एक सजग बुद्धिजीवी कवि की मरते मानवीय मूल्यों और सूखती संवेदना के प्रति उसकी चिंता और इस संकट से उबरने का चिन्तन है .शायद ही ऐसा कोई विषय हो जिसे कवि ने अपनी कविताओं में स्थान दिया हो .’नियंता नहीं हो तुम ‘की कविताएँ आश्वस्त करती है कि हमारे समय का कवि निरा बुद्धिजीवी नहीं है अपितु सामाजिक सरोकारों के प्रति सजग पहरेदार भी है .अनुभव प्रकाशन ,गाज़ियाबाद से प्रकाशित इस विचारोत्तेजक कविता संग्रह का मूल्य तीन सौ रूपये है .जिसे पृष्ठ संख्या और सामग्री की द्रष्टि से नितांत उचित ही समझा जाना चाहिए

सजग बुद्धिजीवी कवि की मरते मानवीय मूल्यों और सूखती संवेदना के प्रति  चिंता की प्रखर अभिव्यक्ति हैं ‘नियंता नहीं हो तुम‘ की कविताएँ

                             -----------------------अरविंद पथिक

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