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यही जीवन है: एक समीक्षा


पुस्तक का नाम:       यही जीवन है

लेखक :                   मनमोहन भाटिया

प्रकाशक  :                शाॅपिज़न

मूल्य         :               268


जिस समय मैं यह समीक्षा लिखने बैठी थी, उसी समय यह समाचार मिला कि श्री भाटिया जी का पिछला कहानी संग्रह 'रिश्ते' भारत सरकार के राजभाषा विभाग द्वारा वर्ष 2022 में प्रकाशित पुस्तकों की सूची में चयनित किया गया है। यह अत्यंत हर्ष का विषय है। और मेरे लिए गर्व का भी विषय यह है कि उक्त पुस्तक की समीक्षा लिखने का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ था। 


बहरहाल, श्री भाटिया जी के सामाजिक कहानी- संग्रहों को पढ़ते समय जो दिलचस्प क्रम मुझे नज़र आया है वह यह है कि उनकी कहानी- संग्रहों के शीर्षक मूलतः "रिश्ते" अथवा " जीवन" इन दो शब्दों के इर्द- गिर्द ही गूँथे होते हैं। सच ही तो है--- कहानियाँ और होती भी क्या है-- वे या तो रिश्तों के बीच ताना- बाना बुनती हुई जीवन के इंद्रधनुषी रंगों की छटा बिखेरती कोई दास्तां बयां करती हैं। 

प्रस्तुत कहानी संग्रह "यही जीवन है"- दरअसल उन्नीस कहानियाँ और एक नाटक का सुंदर संकलन है। 


"परदे में रहने दो" भाटिया जी द्वारा रचित एक अनूठा नाटक है जो आंकड़ों की राजनीति, सरकारी अनुदान के सदुपयोग पर आधारित वर्तमान स्कूली शिक्षा की राजनीति का पर्दाफाश करती है। मैंने इससे पहले भाटिया सर की कोई नाटक नहीं पढ़ी थी, इसलिए इसी को सबसे पहले पढ़ा। 

"बंदरगाह" उसे जगह को कहते हैं जहाँ बहुत से बंदर एक जगह घास चरते है" को पढ़कर अपनी हँसी रोक पाना आपको भी मुश्किल लगेगा।

" चौपाल" में  चौराहे पर हर सुबह पीपल के पेड़ के इर्द- गिर्द चौपाल जमाकर काॅलोनी के लोग गपशप में समय व्यतीत करते हैं। और वह गपशप भी कैसी कि यह जायज़ा लिया जाता है कि मंटू की लड़की का चक्कर किसके साथ चल रहा है। 


" सर्किट भाई" में मुन्ना भाई और सर्किट भाई के बीच जिस दिन हिस्सेदारी को लेकर कहा सुनी होती है उस दिन पुरानी पीढ़ी को नई पीढ़ी के लिए लीडरी की गद्दी छोड़ देनी होती है। लंबे समय तक मुन्नाभाई की शार्गिदी करने के पश्चात् सर्किट कभी आस्तीन का साँप निकलेगा यह मुन्ना के लिए भी विश्वास करना मुश्किल था। 


" छोड़ देता" उदय- शंकर और मोना इन तीनों काॅलेज के दोस्तों के बीच त्रिकोण प्रेम और उसकी भयानक परिणति की कहानी कहती है।


 लेखक बातों- बातों में सुबह घर- घर अखबार पहुँचानेवाले की निशानेबाज़ी पर टिप्पणी देते हुए भी देखे जा सकते हैं " हमारी सरकार इन अखबार वालों को निशानेबाज़ी, तीरंदाज़ी या बास्केटबाॅल खेलों के लिए तैयार करे तो भाइयों और बहनों, ओलम्पिक में बहुत सारे गोल्ड मेडल पक्के मिलेंगे।"


"खाँसी" में जब भी मुहल्लेवालों के नींद का समय होता है, बुड्डा खाँसना शुरु कर देता है और उसकी खाँसी की आवाज़ बिला नागा हर रोज़ रात बारह बजे से सुबह के चार बजे तक सुनाई देती थी। परंतु उस दिन मुहल्ले वालों को बड़ा झटका लगता है जिस दिन बुड्डे की मौत हो जाती है, और उसी दिन उसकी खाँसी का भी खुलासा होता है।

"हवा पूरी है" में आनंदी और आनंद कैसे अपनी संपत्ति बेचकर एक वर्ष के अंदर बेटे और बेटी दोनों की धूमधाम से शादी करवाते हैं, काफी पैसे हाथ से निकल जाने पर भी कर्ज़ लेकर कैसे अपनी डूबती शान को बचा लेते हैं, इसी को बहुत सुंदर तरीके से कहानकार ने दिखाया है।

" क्षमा" भ्रष्ट अधिकारियों की रिश्वतखोरी और इसके भयंकर परिणामों को दर्शाते हैं।

इसी तरह इस पुस्तक की हर एक कहानी एक से एक दिलचस्प विषयों पर लिखी गई हैं, जिसे पढ़कर वर्तमान समाज के ह्रास होते हुए नैतिक और मानवीय मूल्यों को दर्शाकर लेखक ने एक तरह से हम सबको यह चेताने की कोशिश भी की है कि समस्त सामाजिक व्यवस्थाएँ शिथिल होकर किस पतन के गर्त में गिरने के लिए वेग से अग्रसर हो रही है। अगर उस पर अभी लगाम नहीं कसा गया तो फिर कभी भी यह मुमकीन नहीं हो पाएगा।


भाटिया सर की इन कहानियों में जहाँ उपदेश है मानवीय- मूल्यों को बचाने की गुहार है वहीं जगह- जगह पर हास्य का पुट भी देखने को मिलता है। 

अत एव मैं सभी से आग्रह करती हूँ कि इस कहानी- संग्रह को कम से कम एक बार अवश्य पढ़ें।

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