पुस्तक समीक्षा क्यों-ललिता विम्मी
.......1 "अपने -अपने दर्द "
"क्यों ?? "कहानी संग्रह, लेखिका ललिता ' विम्मी 'जी द्वारा लिखित एक पुस्तक .....जिसकी सभी कहानियों में 'क्यों' छुपा हुआ है । जिंदगी के उधर चढ़ाव भरे रास्ते, छोटे- बड़े सभी को लेकर बुनी गई कुछ कहानियां । उन्ही कहानियों में से प्रस्तुत है आप सभी के सामने पहली कहानी 'अपने-अपने दर्द' को लेकर मेरी समीक्षा ।
यह बात तो सच है ,हम सब यहां, इस जहां में, अपने-अपने दर्द को लेकर ही जी रहे हैं । कुछ दर्द बांट लेते हैं, और कुछ दर्द हम किसी से भी नहीं बांट पाते । उस दर्द के साथ ही हमें जीना है और एक दिन ऐसे ही इस जहां से अपने दर्द को साथ लेकर चले जाना है । ऐसी ही कहानी है' अपने-अपने दर्द ' । यह कहानी घूमती है नायिका विनती के इर्द -गिर्द जो किसी मानसिक रोग की शिकार है, क्योंकि खुद उसके अपनों ने ही बार-बार उसका इस्तेमाल किया है ।
"दीदी, मैं डेढ़ किलोमीटर चलकर ही आती हूं, पर यहां आकर मुझे चला नहीं जाता । मन करता है ,बैठी रहूं..... इन पेड़ पौधों को निहारती रहूं .....अनजान आहटें सुनती रहूं..... क्या पता कोई आहट मेरे लिए ही हो ? "
उपरोक्त पंक्तियों में नायिका द्वारा कही गई बातें दिखाती है की नायिका डिप्रेशन की शिकार है और नायिका चाहती है, अपने दर्द को किसी के साथ बांटना । पर उसे अपने आसपास ऐसा कोई दिखाई नहीं दे रहा जिससे वह अपने दिल का हाल बयां कर सके । फिर नायिका को मिसेज शर्मा के रूप में एक सहेली मिलती है ,जो असल में उसके दोस्त की बहन है । जिसके सामने अपने वह दिल का हाल बयां कर देती है और मिसेज शर्मा के भाई ( जो कि नायिका का पहला प्यार है )से बात करने के लिए कहती है । और चंद पैसों के भुलाये में आकर नायिका का पिता उसकी शादी एक अमीर घर में कर देता है ,जहां उसे कोई मान-सम्मान नही मिलता और ना ही कोई रिश्ता ।
"मेरे पिताजी लालच में आ गए और मुझे बलि चढ़ा दिया गया । मेरी तीनों बहनों की शादियों और भाई की पढ़ाई का खर्च इन लोगों ने ही दिया । आज सब अपनी अपनी जिंदगी में अच्छे मुकामों पर हैं और मस्त है । विनती तो शायद किसी को याद भी नहीं होगी ।"
कहानी इस बात की तरफ भी जोरदार समर्थन करती है कि कभी-कभी हमें बच्चों के जीवन के लिए ,बच्चों का कहा भी मान लेना चाहिए । उन पर किसी तरह की जोर -जबरदस्ती नहीं करनी चाहिए । जिससे उनका जीवन ही नरक बन जाए । लेखिका ने विनती और सन्नी के माध्यम से दुनियां की एक बहुत ही आम समस्या का चित्रण किया है ,जो कि आज के समय में लगभग समाज के हर क्षेत्र में पनपना शुरू कर चुकी है । जिस पर हम सबको ही सोचने की आवश्यकता है । शीर्षक का सही मायनो मे विश्लेषण करती हुई सार्थक अभिव्यक्ति ,लेखिका ललिता विम्मी जी का हार्दिक आभार कि उन्होनें अपनी कहानी लेखन में इस मुद्दे को उठाकर हम सबको आईना दिखाया है ।
जीजी आप हरपल यूं ही साहित्य लेखन पथ पर अग्रसर रहे ,और आपकी सभी कहानियों से समाज को एक नजरिया व प्रेरणा मिले ।
मुकेश दुहन "मुकू"