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समानता

"तुम्हारे पापा आज लोन के लिए बैंक गए थे।"टाई की गांठ खोलते अर्नव ने निधिका को कहा।

"तुम्हें किसनें बताया?"

"ऋषि का फोन आया था बैंक से।इत्तेफाक से वो उसी बैंक में मैनेजर है।तुम पता करो पापा से कि क्यों दस लाख का लोन चाहिए?रिटायर हो गए हैं चुकायेंगे कैसे।"परेशान हो अर्नव बोला।

"मुझे मालूम है क्यों चाहिए।"लापरवाही से लैपटॉप पर नजर जमाएं निधिका बोली।

"तुम्हें मालूम है!आश्चर्य से निधिका को देखकर उसनें कहा।"तुम्हें मालूम है और मुझसे जिक्र करना जरूरी नहीं समझा।पराया तो नहीं हूँ मैं।बेटा नहीं तो क्या, दामाद तो हूँ।"

"इतने परेशान क्यों हो उनके घर की परेशानी है।शांतनु की पढाई के लिए ले रहे हैं अब जब इंकम बस पेंशन पर टिकी है तो लोन तो लेना पडेगा।प्रापर्टी पर ले रहे हैं लोन।मैने ही सलाह दी थी।"

"तुमनें सलाह दी?और उनके घर का मामला कैसे हुआ।तुम उनकी बेटी नहीं हो और तुमनें खुद क्यों नहीं कह दिया कि तुम दे दोगी पैसे।लोन के लिए मना कर दो।हम दे देंगे और जब शांतनु चुकाने लायक होगा तब वापस कर देगा।"

"पागल हो गए हो क्या!"अर्नव की बात सुनकर निधिका बोली।

"लड़की के घर से भी कभी कोई पिता पैसे लेता है क्या?और शांतनु ने नहीं किया वापस तो?दस, बीस हजार की बात नहीं है दस लाख की बात है।बेटे के लिए ले रहे हैं।कमायेगा तो उन्हें ही देगा ना!बेकार की बात करते हो।"

"शर्म आती है तुम्हारी सोच पर।"गुस्से से अर्नव ने कहा।"तुम्हें भी तो पढाया,तुमनें क्यों नहीं उन्हें कमा कर वापस किया?तुम्हारी शादी में खर्च किया।अगर वे तुम्हें न पढाते तो आज शांतनु के लिए लोन लेने की जरूरत नहीं पड़ती।"

"बेटा बेटी से समान व्यवहार की अपेक्षा समाज माता पिता से करता है ,लेकिन आज भी मुश्किल में, बेटी सबसे पहले दकियानूसी हो जाती है।चुपचाप फोन करों घर पर और बोलो लोन न लें।तुम अपनी पढाई और शादी पर हुए खर्चे को उन्हें वापस करोगी।क्योंकि समानता का यही मतलब है।"

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