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सिपाही

दिन धुंधलाने लगा था। लेकिन वह अंधेरे से बेखबर खिड़की से आती मद्धिम रोशनी में किसी उम्मीद को तलाश रहा था।

"इतने अंधेरे में क्यों पढ़कर रहा है बेटा? लाइट तो जला लेता।” स्विच ऑन करते हुए माँ ने कहा।

"ध्यान नहीं रहा माँ कि अंधेरा हो गया।” माँ की आवाज सुनकर उसनें जवाब दिया।

"ऐसा क्या है इस किताब में जो इतना खोए हुए थे।” उसके सिर पर हाथ फेरकर माँ बोली।

"एक सैनिक की कहानी माँ! उसकी वीरता की उसके बलिदान की।” आँखों में चमक लिए वह चहकते हुए बोला।

"माँ! आप भी पढ़ना। सच में बहुत अच्छी है।” वह मुस्कुराते हुए बोला।

"जरूर पढ़ूंगी बेटे। तुम्हें पसंद आयी है तो जरूर खास होगी।” उसकी मुस्कुराहट पर निहाल होते हुए माँ बोली।

"आपको पता है माँ? मैं भी सैनिक बनना चाहता हूँ पर…..।” अधूरी रह गई उसकी बात और गला रूंध गया।

"पर क्या मेरे बच्चे?"

"पर हर सपना पूरा हो जरूरी तो नहीं।” निराशा से वह बोला।

"क्यों नहीं हो सकते सपने पूरे? इंसान यदि ठान ले तो सब संभव है।” माँ ने कहा।

"माँ…..कैसे ठान लूँ? आप जानते हो ना! यह संभव नहीं।” थोड़ी चिढचिढाहट के साथ वह बोला।

"वीर नाम यूँ ही तो नहीं रखा था मैंने। यूँ निराशा लाओगे तो हमेशा हारते रहोगे जिंदगी में।” माँ ने समझाते हुए कहा।

"माँ, आप सही कह रहे हो लेकिन मेरे लिए तो सपना ही रह जायेगा मेरा यह सपना। कभी पूरा न होने वाला सपना।” उसकी आवाज में एक दर्द था जो माँ को विचलित कर गया।

"तुम क्या समझते हो वीर! सिर्फ बॉर्डर पर लड़ने वाले ही सैनिक होते हैं? सैनिक वह होता है जो दुश्मनों से देश की रक्षा करें और समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार और अराजकता भी तो देश का दुश्मन है!"

"तुम क्यों नहीं इसके खिलाफ लड़ने की सोचते? यदि सच में मन में देश के लिए मरने मिटने का जज्बा है तो एक जिम्मेदार इंसान बनना और लड़ना इन बुराइयों से।” वीर को समझाते हुए माँ ने दृढता से कहा।

"शायद आप सही कह रहे हो माँ। मैं अपना सपना पूरा करूंगा। मैं देश से भ्रष्टाचार जैसे दुश्मन को हराने के लिए खुद को तैयार करूंगा।"

इतना कहकर वीर ने बैसाखी को मजबूती से थाम लिया।

आँखों में एक विश्वास लिए।

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