रचना के विवरण हेतु पुनः पीछे जाएँ रिपोर्ट टिप्पणी/समीक्षा

फ़र्ज़

विदाई की बेला भी आ गई और बस मिलन का इंतजार था।

वीर और लावण्या ....आज शादी हुई थी उनकी। सीमा पर लगातार  तनाव की वजह से लैफ्टिनेंट वीर शादी को कई सालों से टाल ही रहे थे।

पर  लावण्या को इंतजार था वीर के साथ का।

आज वो इंतजार खत्म हो गया।

कितनो दिनों के इंतजार के बाद ये बेला आई।

हर तरह खुशियां और रोशनी छाई थी।

भावनाओं का बवंडर दिलों में समाया था।

एक एक पल घंटों लग रहे थे।

और वो समय आ गया ......

महकी हुई सी चाँदनी रात और ये हमसफर ..

 

लावण्या की आँखों में आँसू थे

"क्या हुआ लावण्या?.....आँखें नम क्यों ।"वीर ने पूछा।

"कुछ नहीं वीर .....अपनी किस्मत पर रस्क हो आया इसलिए आँखें नम हो गई।"

"कब से तुम्हारी जीवन संगनी बनने का इंतजार कर रही थी और आज यह सपना पूरा हुआ ।माता रानी ने मेरी सुन ली।"कह कर लावण्या ने वीर के चरण छुयें।

"ये क्या कर रही हो लावण्या?तुम  पैर नहीं छूओगी मेरे।तुम मेरी गरिमा हो।"

"वीर ये मेरे मन में उस वीर सैनिक के लिए सम्मान है जिसके लिए देश सर्वप्रथम हैं ।"

वीर ने लावण्या को कस के सीने से लगा लिया।

कितना सकून था।दोनों को प्रथम स्पर्श का एहसास था ।

अभी तो बहुत बातें बाकी थी .....तभी फोन बज उठता है ....।

मिलेट्री  हैडक्वार्टर से फोन था।छुटियाँ कैन्सिल...बार्डर पर बडा आंतकी हमला हुआ था और तुरंत डियूटी ज्वाईन करने का आदेश।

वीर बिना कुछ कहे कमरे से निकल गया ।

मद्धिम रोशनी में लावण्या का महका चेहरा और दमक रहा था।

थोड़ी देर में वीर वापस आये ...

लावण्या वर्दी और आरती की थाली के साथ सामने खडी थी ...।

वीर के चेहरे पर गर्व की मुस्कुराहट थी ।

"लावण्या धन्य हो गया मैं तुमको पा कर ।"

"वीर आप अपना फर्ज पूरा कीजिए और यहां मैं अपने फर्ज पूरी निष्ठा से निभाऊंगी और मुझे यकीन है दिवाली हम मिल कर मनायेंगे।"लावण्या ने मुस्कुरा कर कहा।

~"वादा है मेरा लावण्या ऐसा ही होगा।"

कह कर वीर तेज कदमों से अपना फर्ज निभाने चल पडा।

 

दिव्या राकेश शर्मा

टिप्पणी/समीक्षा


आपकी रेटिंग

blank-star-rating

लेफ़्ट मेन्यु