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लगाव

शादी समय से जल्दी हो गई थी रमा की और 15 साल में ही पहली बार वो एक बच्चे को जन्म देने वाली है आज।डॉक्टर ने समझाया कि नौवा महीना निकल चुका है,अब तक दर्द नही उठा है।ऑपरेशन करवा लीजिये,बच्चे और माँ को कोई खतरा नही होगा।पर पुराने ख़यालात की सास का ये मानना संभव नही था।अरंडी का तेल एक गिलास दूध में मिला कर पिलाया और कहलवा दिया दर्द उठ गया है।
मशक्कत के बाद रमा की बेटी बाहर आई पर रोइ नही।5 मिनटों में डॉक्टरों की टीम ने ज़ोर लगा कर बेटी को रुलाया पर जितना नुकसान दिमाग को होना चाहिए वो हो चुका था।
रमा ठीक थी,पर बेटी जिंदगीभर के लिए मंद बुद्धि रहेगी डॉक्टर ने बतला दिया था।
समय बीतता गया उस नन्ही का नाम परी रख दिया गया।परी अब भी नही रोती थी,शांत बैठ अकेले खेलना और खुद में ही खोए रहना ही उसे आता और भाता है।कभी किसी चीज़ की जिद नही न खाने में दिलचस्पी।
हां,गुस्सा आता है पर निकालती भी खुद पर ही है सिर ज़ोर से पटक कर। तीन सालों में रोज ही रमा को परी के लिए बहुत कुछ सुनना और झेलना पड़ता था।सास का हर वक़्त कुछ भला-बुरा कहना रमा को नही भाता था।
रमा के दुबारा माँ बनने की खबर से आज घर मे शांति थी,लेकिन आज परी मचली हुई थी।उसे कुछ चाहिए था।माँ को पकड़ कर खींच रही थी।रमा उसके संग चली तो देखा सामने खिलौने वाले के पास एक रंग-बिरंगा छाता लटका था।परी को छाता मिल गया था,अब जैसे उस छाते में बसती थी परी की जान।सात रंगों से सजा सतरंगी छाता।
रमा ने बेटे को जन्म दिया,घर मे खुशियां आ गई।बेटा और माँ दोनों स्वस्थ्य थे।दिन कटते गए बेटा भी 4 साल का हो गया और परी अब 7 साल की।परी में बदलाव नही था,वो अब भी शांत रहती।किसी की न सुनना न कुछ कहना बस 24 घंटे अपनी छतरी अपने हाथों में लिए इधर उधर भटकना।
भाई का नाम प्रिंस रखा गया था,उसे अपनी बहन से बहुत चिढ़ थी।ना बात करती है,न खेलती हैं।खिलौने भी नही देती अपने।
आज प्रिंस ने परी का छाता लेने की कोशिश की जिसपर परी ने छाते से ही प्रिंस को लहूलुहान कर दिया।ये पहली बार था,जब परी ने खुद को घायल ना कर किसी और को घायल किया।
दादी की जुबान आज बुरा कहते थक नही रही थी परी को।माँ से चिपकी परी बस अपने पापा और दादी को देख रही थी।
भाई का रो-रोकर बुरा हाल था।आज भी माँ परी के ही साथ है,डांट भी नही रही उसको।छोटे बच्चे के मन में इस बात ने घर कर लिया।
परी जब सोई तो प्रिंस ने उसके छाते को तहस-नहस कर डाला।अपने गुस्से को निकाल दिया उसने परी के छाते पर।
परी जब उठी और उसने अपने छाते की ये हालात देखी तो बेचैन हो गई।अपनी आपबीती न कह पाना उसकी सबसे बड़ी कमजोरी थी।खुद के भावों को किसी के समक्ष रखने में सक्षम नही थी वो।पर उसकी असहजता उसकी माँ से नही छुपी
माँ ने जाकर छतरी का जो हाल देखा तो सब समझ गई।परी को गोद मे लिया ही था कि परी को झटके आने लगे।मुँह से सफेद झाग आने लगा।
रमा,परी को लेकर डॉक्टर के पास पहुँची।तब तक परी बेहोश हो चुकी थी।डॉक्टर ने परी को मशीनों पर ले लिया।ऑक्सीजन मास्क,ग्लूकोज़ लगी परी को देख माँ की आँखों से आंसू रुक नही रहे थे।
कुछ सोच रमा उठी और निकल पड़ी,जब लौटी तो प्रिंस और उसके हाथ में एक छाता था।एक घण्टे के इंतजार बाद परी ने आंखे खोली,सामने माँ और भाई थे।
भाई ने भीगी आंखों के साथ छाता आगे बढ़ाया।परी ने छाता लिया और मुस्काकर आंखे बंद कर लीं।
वो आंखे फिर कभी नही खुली।इस तरह अपनी बेटी का जाना समझ नही पा रही थी रमा।डॉक्टरों का कहना था कि लगाव बहुत था परी का छाते से।वो झेल नही पाई दूरी,उसके दिल ने और फेफड़ो ने काम करना कम कर दिया था।
परी तो चली गई थी पर छतरी अब भी थी प्रिंस के पास जिसे वो दीदी कहता है और हमेशा साथ रखता है।
"कितना अजीब है ना??लगाव से बड़ी बीमारी कुछ नही"।
#लगाव
#परी_का_छाता
सोनिल


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