मर्द
"मर्द बन मर्द बेटा !आज तेरी शादी है ,नई जिंदगी की शुरुआत ।एक बात अच्छे से समझ ले अगर आज अपनी सुसराल वालों के सामने औऱ बहु के सामने कमजोर पड़ा तो देख लेना सारी जिंदगी गुलामी करेगा।"
बेटे को समझते हुए मिश्रा जी बडे प्रसंन थे। हो भी क्यों ना आज उनके बेटे की शादी थी और अपने जीवन का अनुभव उस पर उढेल रहे थे।
"देख मूझको!तेरी माँ को कितनी खुश हैं वो मेरे। साथ क्या कमी है उसको ?मेरी छाया मे सुरक्षित ।"
पिता की बात सुनते सुनते दीपक को माँ की आँखों के वो आंसू याद आ रहे थे ,जिनको वो अभी तक अंधेरे में बहाया करती है।सबके सामने प्रसन्नचित किसी को कोई दर्द ना दिखता उनकी आंखों में।
"हां पिताजी आप चिंता ना करें मै आपकी बातों पर अमल करुंगा।"सुन कर मिश्रा जी की मूंछों पर औऱ ताव आ गया छाती गर्व से चौडी हो गई ।
खैर वैवाहिक कार्यक्रम सम्पन्न होने के बाद गृहप्रवेश औऱ चरण स्पर्श करने का समय आया
मिश्रा जी आगे बढते हैं पुत्र को गले लगा कर अपनी बात का स्मरण कराते हैं। दीपक औऱ वधू माता की तरफ मुडते हैं ,और मां का आशीर्वाद लेते है
"पिता जी आपकी आज्ञा मेरे लिए प्रथम है और सदैव उसका पालन करुंगा ।मै वचन देता हूँ मै मर्द बनुगा मै अपनी पत्नी के सम्मान की रक्षा करूँगा ,मै सदैव उसको बराबरी का दर्जा दुंगा उसकी आंखों में आंसू ना आने दूंगा औऱ माँ को उनका पुरा सम्मान दूंगा औऱ मुझको पूर्ण विस्वास है मालती भी मेरे साथ अपने धर्म को निभायगी ।"
दीपक की बात सुन मां ने उसको सीने से लगा लिया आज मां की तपस्या औऱ संस्कार की जीत थी औऱ मालती की किस्मत की ।
मिश्रा जी अब मूक थे सच्चा मर्द जो सामने था।
दिव्या राकेश शर्मा