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कुछ दिल ने कहा

"मेरी हथेलियों पर तुम जो अपनी उंगलियों से कुछ लिखती थी ना!वह आज भी पढ़ने की कोशिश करता हूँ।"

"तो अब तक समझते क्यों नहीं?"बड़ी बड़ी आँखों से घूरते हुए उसनें आँखों से पूछा।

"क्योंकि मैं  समझना नहीं चाहता।"उसके बालों में हाथ फेरकर वह मुस्कुरा दिया।

"हुँऊ... बहुत चालाक हो...जाओ नहीं बोलती तुम से।"आँखों को बंद कर  जैसे वह गुस्से बोली।

"इन आँखों को बंद न करों स्नेहा...यूँही देखती रहो मुझे।"

"नहीं मैं रूठ गई हूँ तुमसे।"उसकी हथेलियों को देखकर वह बोली।

"मैं मना लूंगा......"माथे पर एक चुम्बन अंकित कर वह बोला।

"सब कुछ खुद करते हो...।।"उसनें हथेली पर फिर कुछ लिखा..।

"सात साल हो गए ...लेकिन अब तक तुम्हारा गुलाम हूँ...देखो आज भी यह दिल तुम्हारे स्पर्श से ही धड़कता है।"

"शरद....."वह बुदबुदाई।

 

पर अनसुना कर वह दूर जाकर खडा हो गया।

"तुम्हारी उंगलियों के स्पर्श को आज भी यह हथेलियां महसूस करती हैं।"अपने हाथों को चूमकर शरद ने कहा।

 

उसे देख न जाने क्यों स्नेहा की आँखों से एक बूंद निकल कर गाल पर बह गई।

 

"स्नेहा...मेरे लिए एक बार वापस आ जाओ ना।"सिसक उठा शरद।

"मत रो शरद…...मत….देखो… मैं तुम्हें सुन रही हूं।"उसकी आँखों ने कहा।

"नहीं स्नेहा.. रोना नहीं.. वो तो.. ऐसे ही…...।"अपनी आँखों को साफ कर शरद ने स्नेहा को समेट लिया।

आज सात साल बाद कुछ हरकत तो महसूस हुई थी शरद को स्नेहा के उंगलियों की।

जैसे निष्क्रिय हो चुका स्नेहा का  शरीर पूरी कोशिश कर रहा था यह कहने की कि तुम्हारे लिए मैं ठीक हो जाऊंगी।

 

दिव्या राकेश शर्मा

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