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एहसास

वर्षा अपना सुबह का सभी काम जल्दी जल्दी निपटाकर ऑफिस जाने की तैयारी कर रही थी. बच्चों को लंच देकर उसने स्कूल भेज दिया था. माँ बाबुजी नाश्ता कर चुके थे. अब वे बरामदे मे अखबार पढ़ रहे थे, और माँ जी अपनी पूजा में व्यस्त थीं. सबका दोपहर का खाना बस तैयार हो चला था. रवीश आए और अपना नाश्ता करने डायनिंग टेबल पर बैठ चुके थे. वर्षा ने जल्दी से उनका नाश्ता दिया, और अपना टिफिन लगाकर बिना खुद कुछ खाए तैयार होने कमरे की तरफ दौड़ पडी. उसका भी ऑफिस का वक्त हो ही चुका था. उसे भागता देख रवीश ने प्यार से ही मगर थोड़ी कड़क आवाज मे कहा "इतनी भाग दौड़ करनी पड़ती है, सुबह से अपना टाइम ठीक से मैनेज क्यू नहीं करती हो." सॉरी सॉरी कहते वर्षा कमरे की तरफ दौड़ गयी, और रवीश के नाश्ता खत्म करने के पहले ही तैयार होकर आ भी गयी. दोनों अपने अपने ऑफिस चले गए. शाम होते ही वर्षा घर वापस आयी, और रवीश की गाड़ी बाहर देखते ही चाय बनाने दौड़ी. माँ बाबुजी मंदिर गए हुए हैं शायद. बच्चों को नाश्ता देकर वर्षा और रवीश ने चाय पी. रवीश अपने कमरे में चले गए और वर्षा रात के खाने की तैयारी में लग गयी. सभी ने प्यार से रात का खाना खाया, और नए दिन के स्वागत के लिए सोने चल दिये. वही सुबह, वही दौड़ती भागती वर्षा, पर जल्दबाजी में गुस्सा करते यहां वहां भागते रवीश. आज उन्हें उठने में कुछ देर हो गयी थी और ऑफिस का वक्त हो चला था,"वर्षा, अब तक मेरा नाश्ता क्यू नहीं आया टेबल पर" ज़ोर से चिल्लाते हुए रवीश बोले. भागती दौड़ती वर्षा एक अलग मुस्कराहट के साथ नाश्ता लेकर आयी और घड़ी की तरफ देखा तो उसका भी ऑफिस का समय हो चला था. उसकी मुस्कराहट को समझ कर, आधा अधूरा नाश्ता करके रवीश जल्दबाजी में गाड़ी उठा कर चले गए. वर्षा भी बचे हुए काम खत्म करके जल्दी अपने ऑफिस की ओर चल दी. ऑफिस की सभी डेड लाइंस पूरी करते करते कब शाम हो गयी पता ही नहीं चला, घड़ी पर निगाह जाते ही वर्षा ने अपना बैग उठाया और चल दी घर की तरफ. बाहर रवीश की गाड़ी देख वो चाय बनाने भागी ही थी कि ये क्या...? मुस्कुराते रवीश डायनिंग टेबल पर दो कप चाय लिए उसके इंतजार में बैठे थे. "हाथ मुह बाद मे धोना, पहले आकर चाय पीलो", आश्चर्य से भरी वर्षा ने बैग रखा और चाय पीने बैठ गई. दोनों ने इत्मीनान से बिस्किट और दिन कैसा बीता की बातों के साथ चाय पी. इससे ज्यादा स्वादिष्ट चाय वर्षा ने आज तक नहीं पी थी, जिसने उसके अंदर एक अलग उमंग एक अलग  स्फूर्ती भर दी थी." सॉरी" और" थैंक यू" कह कर मुस्कुराते रवीश कमरे की ओर बढ़ चले. वहीं खुशी से सराबोर वर्षा अपने कामों के लिए आगे बढ़ी, क्युंकी शायद आज पहली बार रवीश को उसकी जी तोड़ मेहनत और कर्तव्य निष्ठता का एहसास हुआ था, और उन्होंने उसे साराहा था एक प्याली चाय से. आज वर्षा ख़ुश थी, बहुत खुश.


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