चिंता
" चिंता "
शीला बचपन से ही व्यावहारिक लड़की थी l वह हमेशा दूसरों की मदद किया करती थी और पढ़ने -लिखने में भी तेज थी ! भगवान की कृपा से उसे घर -वर भी बहुत अच्छा मिला वह सास -ससुर की खूब सेवा किया करती ! उसके सास -ससुर व पति भी उसे हमेशा आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करते लेकिन पति की नौकरी दूसरे शहर में होने के कारण उसे पति के साथ जाना पड़ा और सास -ससुर के पास अब वो दिन -त्यौहार ही आया करती थी !शीला कि एक आदत थी चाहे कितनी व्यस्त क्यों न हो अपने सास -ससुर से रोज फोन पर बात किया करती थी ! ऐसे ही एक दिन शीला ने ससुर जी को फोन किया ससुर जी ने हमेशा की तरह खूब आशीर्वाद दिया तो शीला ने कहा पापाजी आपके आशीर्वाद मुझे फलते है आप ऐसे ही कृपा बनाये रखना तो पापाजी ने कहा कि कृपा तो आजकल बच्चे बनाये रखें वही बहुत है उनकी इस बात ने उनके अंदर छुपी हुई बुजुर्गों की चिंता को स्पष्ट कर दिया कि माँ -बाप तो हमेशा ही आशीर्वाद देते है पर बच्चे ही छोड़कर चले जाते है और
बच्चों के पास रहने जाओ तो वो खुद को असहज महसूस करते है!
