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रूह

"तुम आज फिर?? क्या हो गया है मिहिका?" जूही ने लगभग चिल्लाते हुए कहा।

"जूही,मैं उस वक्त वंहा न रुकती यदि मुझे एहसास न होता उसके होने का। यंहा वंहा बहुत खोजा, आवाज़ें भी दीं, लेकिन कोई भी नहीं आया। सब गलत कहते है, सब झूठ बोलते हैं। जानती हो? जो एक बार चला गया कभी नहीं आता। वो भी कभी नहीं आया। मैं रोज़ ही जाती हूँ, क्योंकि अपनेपन का एहसास है वंहा। लगता है कि कोई तो है जो मुझे अपनी गोद में सिर रखकर रो लेने देता है।"

कहते हुए, रोती मिहिका फिर रूम से निकल गई।

"तुम रोज़ ही चली आती हो? घर पर मन नहीं लगता न तुम्हारा? मैं बताना चाहता हूँ कि मैं हूँ, हमेशा-हमेशा तुम्हारे साथ और पास भी। चलो अब आराम से सो जाओ। सारी चिंताएं छोड़ दो, सब ठीक होगा। मैं हूँ, तुमसे बात हो न हो। मैं हूँ हमेशा रूह बनकर तुम्हारे साथ।"

बेंच पर सोती मिहिका के सिरहाने बैठी मिहिर की रूह उसके बाल सहला रही थी और अपने मन की बात मिहिका तक पंहुचा रही थी।

#रूह

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