तेईस नम्बर
तेईस नम्बर
भानगढ़ के पास पहुँचते-पहुँचते दोपहर हो चली थी। निकले भी तो लेट ही थे।
अनवी, कशिश, रोहन और कुणाल चारों जयपुर यूनिवर्सिटी में पढ़ रहे थे और आज अनवी के जन्मदिन पर उसे ही डराने सबसे हॉन्टेड प्लेस लेकर आये थे।
"अनवी तूने न, सब चौपट करा दिया। देख कितनी धूप है। कह रही थी मैं कि थोड़ा लेट निकलो लेकिन नहीं।"
"ओ हिरोइन, पांच बजे के बाद सब बन्द हो जाता है। तुम्हें क्या जयपुर से भानगढ़ की रोड देखनी थी?" अनवी का साइड लेते हुए रोहन ने कहा।
"तू तो चुप ही रह रोहन। अनवी का चमचा।"
"सही तो कह रहा है रोहन। शाम से ही सब बन्द हो जाता है। हम जा ही क्यों रहे हैं? जन्मदिन पर ऐसे क्या किसी भी भुतही जगह पर जाया जाता है? मंदिर ले चलते, किसी अच्छे रेस्टोरेंट चलते, चौखी ढाणी चलते लेकिन नहीं। तुम तीनों को पता नहीं क्या भूत सवार है।"
"तू न अनवी, डरपोक मत बन यार। चिल कर, उधर कोई भूत वूत नहीं है। सब बस बेकार की बातें हैं।"
कुणाल के ऐसा कहते ही। अचानक गाड़ी स्लिप होकर घूम गई।
कुणाल के अलावा बाकी तीनों की भी दिल की धड़कनें थम सी गईं, लेकिन गाड़ी का ब्रेक लगा और गाड़ी रुक गई।
"ये क्या हुआ?" कुणाल ने खुद को थोड़ा सयंमित कर कहा। रोहन ने दरवाजा खोल कर बाहर निकलते हुए इधर-उधर देखा और फिर बोला।
"टायर गया।"
अनवी, कशिश और कुणाल भी बाहर आ गए। सुनसान रास्ते में दूर-दूर तक कोई भी नहीं था।
बस कुछ बांस के झुंड लगे हुए थे।
"लो, और कहो इन बातों को बकवास। रातों रात भानगढ़ का किला खाली हो गया था। कौन कंहा गया, किसी को कुछ भी नहीं पता। जो भी था उस किले में आज तक उनका कुछ भी नहीं पता चला। वही सारी आत्माएं जिंदा हो जाती है रात को। इसलिए तो कोई भी इंसान पांच बजे के बाद रुकता नहीं वंहा।" अवनी ने डरी हुई आवाज़ में सब कह दिया।
"सच तो ये है कि, इंसान क्या। कोई जानवर भी भानगढ़ में रात नहीं बिताता। बंदर हो या चिड़िया कोई भी नहीं।" रोहन अवनी की बात पर फिर सपोर्ट दिखाते हुए अपनी बात कही।
"तुम दोनों भी यार, इकीसवीं सदी में रहकर एक दम दकियानूसी बातें। पढ़-लिख कर क्यों पैसा बर्बाद कर रहे हो घर वालों का? जाओ निकलो घर। भूत जिंदा हो जाते। हहहहहहहह सुन रही हो कशिश?" कुणाल ने फिर मज़ाक उड़ाया।
"My my... मेरी तो हंसी ही नहीं रुक रही कुणाल। सीरियसली, ये लोग.... हहहहहहहह...."
कशिश और कुणाल की हंसी बढ़ती ही जा रही थी और यंहा धूप भी कमहो रही थी।
"हँसना बन्द करो और स्टेपनी निकालो।" अवनी ने कहा तो कुणाल और रोहन डिक्की से स्टेपनी निकालने पीछे गए।
कशिश को न जाने क्या सुझा और वो एक पत्थर उठा कर बांस के झुंड के पास चल दी।
"कशिश.. रुक.. कंहा?" पीछे-पीछे अवनी भी आ गई।
"तेरा बर्थडे स्पेशल बनाते हैं चल।"
"कैसे?"
कशिश जाकर एक बांस के झुंड के सामने रुकी और ध्यान से देखते हुए बोली।
"तेईस नम्बर?"
"क्या हुआ कशिश?"
"किसी का लकी नम्बर होगा जरूर।"
"क्या बक-बक कर रही है?"
कशिश ने अनवी को सामने किया और बांस के लिखे हुए पर उँगली रख कर कहा।
"देखो, तेईस नम्बर।"
कशिश के बांस को छूते ही कशिश की उंगली उस बांस से चिपक गई। देखते ही देखते बांस के अंदर कशिश की उंगली जाने लगी। अनवी दूर हो गई लेकिन इसे कशिश की चाल समझ कर वो दूर खड़ी हंसने लगी।
"मैं अब नहीं फसने वाली। ये सब तुम तीनो की ही चाल है, है न? नहीं डर रही मैं। जाओ-जाओ, ये बांस तुम्हें खा रहा है न?"
कशिश चाह कर भी कुछ बोल नहीं पा रही थी, उसकी आवाज़ उसे भी सुनाई नहीं पड़ रही थी। आँसुओं से भीगी कशिश धीरे-धीरे कर बांस के अंदर समा गई और जंहा लिखा था तेईस नम्बर, वंहा अब लिखा था - चौबीस नम्बर।
अनवी अब डर गई और दौड़ कर गाड़ी के पास आई।
"रोहन, कुणाल वो...."
रोहन से टकरा कर उसने जल्दी से रोहन को गले लगा लिया।
"रोहन वो वो कशिश..."
रोहन भी अनवी की ही तरह डरा हुआ था।
"क क क्या हुआ? कशिश को?"
"रोहन वो बांस..." अनवी की आँखें फिर बरस पड़ी और रोहन बोला।
"नम्बर तेईस?"
"तुम्हें कैसे पता? रोहन? तुम भी मिले हुए हो न? दूर हटो, बात मत करना तुम तीनो अब मुझसे।"
अब तक अनवी ने रोहन का चेहरा भी नहीं देखा था।
"अनवी, कुणाल...."
"क्या कुणाल?" अनवी ने गुस्से से कहा।
"वो उस बांस पर नम्बर तेईस... वो कुणाल...."
अनवी ने चेहरा उठा कर रोहन को देखा। उसकी भी हवाइयाँ उड़ी हुई थीं। अनवी समझ चुकी थी कि अब कुणाल और कशिश कभी नहीं लौटेंगे।
अनवी और रोहन दोनों वापिस लौट आये। काशिश और कुणाल के गुमशुदा होने की खबर पूरे जयपुर में थी।
पुलिस को शक था कि दोनों साथ में कंही भाग गए हैं। असलियत में क्या हुआ वो बस अनवी और रोहन ही जानते थे। लेकिन क्या उनकी बातों पर कोई भी यकीन करता?
क्या आप यकीन करते?
नहीं न?
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आपकी
सोनिल