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एक नयी पहल पर कुछ तो लोग कहेंगे

आज मोबाइल कंपनी की ओर से नोटिस आई तो सुशांत के होंश उड़ गए। कुछ लोगों ने शिकायत दर्ज करवाई थी की एक नंबर से बार-बार काॅल आ रहे है और उठाने पर एक औरत मादक आवाज़ में कुछ अजीब बातें करती है। नाम पता पूछने पर अपने आप फोन काट देती है। और इन्क्वायरी में जिस नंबर का ज़िक्र था वो सुशांत की माँ का नंबर था। सुशांत शर्म के मारे और कुछ गुस्से के मारे खिसीयाना हो गया। माँ से पूछे भी तो कैसे, क्या ये सच होगा? माँ ऐसा कर सकती है? या मोबाइल कंपनी वालों की कोई गलतफहमी है। सुशांत असमंजस में था

पर पूछना तो पड़ेगा। सुशांत ने अपनी पत्नी रिया को डरते और झिझकते हुए सारी बात बताई। रिया मनोचिकित्सक थी और समझदार भी। सुशांत को निश्चिंत रहने को कहा और बोला की मुझ पर छोड़ दो माँ के साथ मैं बात करके देखती हूँ।

दूसरे दिन शाम को रिया कुसुम को घुमने  के बहाने बाहर ले गई और बातों-बातों में बड़े प्यार से अपनी सहेली की कहानी बताकर मोबाइल कंपनी से आई जाँच वाली बात बताई और पूछा; माँ आपको क्या लगता है क्या मेरी दोस्त की माँ ऐसा कर सकती है?

सुनते ही कुसुम गुस्से से आगबबूला हो गई। क्यूँ नहीं कर सकती इंसान कहीं तो अपने दिल में दबे अहसासों को ज़ाहिर करेगा ही ना। पूरी ज़िंदगी जिस चीज़ के लिए तरसा हो वो और क्या करेगा।

हर दिल में अरमाँ होते है कोई प्यार से बातें करने वाला हो। ना की स्त्री को सिर्फ़ कामपूर्ति का साधन समझ कर हवस पूर्ति करके एक साधन समझकर छोड़ दें।

रिया समझ गई कई बार सुशांत ने अपने पापा के बारे में कुछ ऐसी बातें रिया को बताई थी। जो इंसान बच्चों की भावनाओं को भी ना समझा हो वो पत्नी के अहसासों भी नहीं समझा होगा। 

सुशांत के पापा को गुज़रे सात साल हो चुके थे। कुसुम हंमेशा तरसती रही की आनंद उससे दो प्यार भरी बातें करे, कभी कोई शाम गुज़ारे दरिया के साहिल पर बैठे, कभी कहीं घुमाने ले जाएँ और अंतरंग पलों में भी पहले संवाद साधे, बहलाए ना की वासना का शमन करने भर का रिश्ता रखें।

कुसुम चंचल ज़िंदादिल और बातूनी है। पर आनंद ने कभी उसकी भावनाओं को नहीं समझा था। तो रिया समझ गई की बस उस ख़लिश ने दिल में विकृत स्वरूप ले लिया था। रिया ने बातों ही बातों में कुछ दिनों में कुसुम से सब उगलवा लिया और सुशांत को सब बताया। 

सुशांत गुस्सा हो गया बोला हद है अब पापा का स्वभाव ऐसा था तो क्या ये सब करना उसे इस उम्र में शोभा देता है। रिया माँ पागल हो गई है ? रिया ने बोला नहीं सुशांत माँ मानसिक तौर पर बीमार नहीं है। रूह के भीतर कहीं किसी कोने में दबी हुई, मरी हुई इच्छाओं के दमन ने सर उठाया है। रिया ने कहा सुशांत बुरा ना मानों तो एक बात कहूँ ? सुशांत ने हाँ में सर हिलाया तो रिया बोली "माँ की दूसरी शादी करवा देते है"।

क्सुया बकवास कर रही हो सुशांत का हाथ उठ गया, पर रुक गया और इतना ही बोला मन करता है तुम दोनों सास-बहु को पागलखाने भेज दूँ। सोचा है तुमने लोग क्या कहेंगे? तुम सबका दिमाग खराब हो गया है।

रिया ने सुशांत को शांत करके समझाते हुए कहा देखो सुशांत मेरे अस्पताल में ऐसे बहुत केस आते है अगर इसका इलाज ना किया जाए तो पागलपन की हद तक उनकी हरकतें पहूँच जाती है। लोग क्या कहेंगे की परवाह करेंगे तो माँ को खो देंगे। मानती "कुछ तो लोग कहेंगे" लोगों का काम ही दूसरों की ज़िंदगी में दखल देना होता है। पर हमें हमारे परिवार को देखना है।

माँ ने ज़िंदगी भर पापा की बेरुखी सही है, प्यार को तरसती है, उनका मन नाजुक है। दिल में दबी आस को वाचा मिलेगी तो सब ठीक हो जाएगा। हम दोनों अपनी ज़िंदगी और काम में व्यस्त है माँ को सहारे की जरूरत है। एक ऐसे इंसान की जो उसे समझे, प्यार दे, बातें करे, समय दे और उसमें बुराई क्या है उम्र के इस पड़ाव पर ही इंसान को इन सब चीज़ों की ज़्यादा जरुरत होती है।

अब सुशांत के गले बात उतर रही थी उसने भी सोचा की रिया की बात सोचने लायक है माँ को कई बार गुमसुम बैठे देखा है। हम तो अपनी ज़िंदगी में इतने उलझे है की समय ही नहीं दे पाते। माँ को भी उनकी अपनी ज़िंदगी अपने तरीके से जिनेक पूरा हक है।

फिर भी रिया लोग क्या सोचेंगे, समाज ये परिवर्तन स्वीकार करेगा की एक बेटे-बहु ने माँ की शादी करवाई ? रिया ने कहा सुशांत हमें समाज से ज़्यादा हमारे अपनों कि फ़िक्र होनी चाहिए जब हम अपनाएँगे तो समाज भी धीरे-धीरे अपना लेगा। माँ कि खुशी और ज़िंदगी का सवाल है माँ ने हमें सबकुछ दिया है अब उनकी खुशियों का ख़याल रखना हमारा फ़र्ज़ है ।

बस फिर क्या था सुशांत और रिया ने ऑनलाइन खोजबीन शुरू कर दी।  कोई अच्छा सा समझदार और जो माँ की तरह ही अकेला हो ऐसे इंसान की। और कुछ दिन में बहुत सारे प्रतिभाव भी मिले, उनमें से एक रिटायर शिक्षक श्रीमान अमर तिवारी रिया और सुशांत को अच्छे लगे। दोनों उनसे मिले बात चित की, अमर तिवारी जी ने शादी नहीं की थी अकेले ही थे, और अब इस उम्र में वो भी किसी अपने का साथ ढूँढ रहे थे।

तो बस सब तय करके रिया और सुशांत ने अब कुसुम से बात की। पहले तो कुसुम ने साफ़ मना कर दिया ये कहकर की मुझे अब किसी से कोई उम्मीद नहीं बहुत सह चुकी, जिसे ज़िंदगी समझा उसी ने मुझे नहीं समझा तो अब और कोई मुझे क्या समझेगा? 

पर रिया और सुशांत ने जब अमर तिवारी और कुसुम की मुलाकात करवाई तो दोनों को लगा की शायद अब दोनों की तलाश खतम हुई। अपने ने अपने को पहचान लिया और स्टैम्प पेपर पर हस्ताक्षर करके अदालत में बाकायदा शादी कर ली।

आज सब खुश है कुसुम और अमर तिवारी मानों सालों से एक दूसरे को जानते हो ऐसे घुल-मिल गए है। माँ के चेहरे पर सालों बाद हँसी और रौनक देखकर सुशांत को एक संतोष मिल रहा है। नई सोच अपनाकर परिवर्तन के साथ कदम मिलाते अपनी माँ को नई ज़िंदगी देने का।।

भावना ठाकर 'भावु' बेंगलोर 

स्वरचित, मौलिक 

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