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लघु कथा _ झाड़ी में जिंदगी

**लघु कथा **_ "झाड़ी में जिंदगी।"

 

औरते बड़े बुजुर्गो में काना फूसी हो रही थी।बोलो पता नही किसके पाप की गठरी पड़ी है बेचारी झाड़ियों में।कितनी सुंदर लड़की है।लगती है किसी बड़े बाप की बेटी की करतूत है ये।

जिस बेटी को पालना में मखमल की चादर में लिपट कर झूलना चाहिए उस बेचारी को अब झाड़ियों में चींटियां और कीड़े मकोड़े  खाने वाले थे ।वो तो अच्छा हुआ बच्चो का जिनको गेंद ढूंढने के चक्कर में  वो दूध मुंही बच्ची मिल गई।

वहा पूरा मोहल्ला जमा हो गया उस लड़की को देखने के लिए।लड़की उन्ही में से किसी की होगी जिसने अपनी ममता का गला घोंट कर और अपने सीने पर पत्थर रख कर अपने लोक लाज की रक्षा खातिर रात के अंधेरे में उसे वहा अकेले मरने के लिए छोड़ दिया होगा ।लेकिन किसी ने उसे अपनाया नही।

अंततः पुलिस आई और रिपोर्ट लिखकर उस नन्ही फूल सी बच्ची को पुलिस थाना ले गई।

किसी ने कहा कुकर्म करने में तो लोक लाज नही जाती है लेकिन अपनी ही कोख की बच्ची को अपनाने में इज्जत चली जाती है।कैसा घोर कलयुग आ गया है ।

 

लेखक _ श्याम कुंवर भारती

बोकारो,झारखंड

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