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रसोई घर में सावधानी

एक दिन, 

 दोपहर का वक्त हो चला था। 40 वर्षीय रमोला जब रसोई घर में गयी, तो उसने देखा कि गैस पर उसकी बहू रीना ने दाल चढ़ा कर रखा था।

 अचानक न जाने रमोला का क्या हुआ, वों घबराते हुए जोर - जोर से आवाज लगाते हुए अपनी बहू को पुकारने लगी   - कहां चली गयी , जल्दी आओ....बहु ....! रीना बहू.. कहां हो तुम?

 अपने कमरे से निकलते हुए रीना, अपने बालों का जुड़ा बनाते हुए रसोई घर में आई और बोली  - ऑफ़... हो..! क्या बात है माजी, आप इतना क्यों चिल्ला रही हैं..? घर पर ही तो हूं।

रमोला एक नजर अपनी बहू की आंखों में देखा और चिंतित होते हुए उससे बोली - "मैंने तुम्हें कहा था ना कि रसोई घर में खाना बनाते वक्त इस तरह से बाहर नहीं जाना चाहिए, वह भी दाल को बिना ढके हुए।"

रीना गोल गोल आंखें करते हुए अपनी सासू मां की तरफ तिरछी नजरों से देखी और उन्हें बोली - "पर माजी, मैं तो अपने कमरे में थोड़ी देर के लिए ही गई थी, इसमें कौन सी बड़ी बात हो गई? आप ही दाल को ऊपर से ढक देती।"

रमोला अचानक भावुक होते हुए, उदास मन से बोली - " ऐसी बात नहीं है बहु।इसके पीछे एक वजह थी। इसलिए मैं डर के मारे चिल्ला कर तेरा नाम लेने लगी।"

 अपनी सासू मां के चेहरे को बार-बार पलके झपकाते हुए देख, रीना बोली  - "लो..इसमें उदास होने वाली कौन सी बात है..? आप इस तरह से मायूस क्यों हो गई?"

रमोला दाल को ढकनी से ढलते हुए, प्यार से समझाते हुए रीना से बोली  - "इसके पीछे एक कहानी है बहु।"

रीना हैरान होते हुए रमोला से बोली - "दाल को ठीक से नहीं ढकने के पीछे क्या कहानी हो सकती है, बोलिए।"

रमोला रोते हुए बोली - "गांव मे मेरे मौसेरी भाई संभु की पत्नी आंचल, एक बार रसोई घर में दाल बना रही थी। उसके दो छोटे-छोटे बच्चे स्कूल से घर आने वाले थे। थोड़ी देर के लिए आंचल दाल को बिना ढके हुए अपने आंगन में चली गई थी।

घर मे बच्चों के आने के बाद, उसकी मां घर के अंदर आई और अपने बच्चों से कहा - "बच्चों तुम लोग कपड़े बदल कर, मुँह -हाथ धोकर  होकर खाना खाने के लिए बैठ जाओ, मैं खाना परोस रही हूं।"

दोनों बच्चे अपनी मां की बात मान गए। और मुंह हाथ धोकर खाना खाने के लिए बैठ गए। 

थोड़ी देर के बाद जब रमोला ने अपने बच्चों के लिए खाना लाई। बच्चे बड़े चाव से खाना खाने लगे। 

परंतु थोड़ी देर के बाद ही उन दोनों बच्चों के मुंह से झाग निकलने लगा। यह देख आंचल डर गई। और उसी वक्त आंचल की आंखों के सामने उसके दोनों बच्चे ने प्राण त्याग दिया। आंचल को यह सब देखा नहीं गया। अचानक अपने बच्चों को अपनी आंखों के सामने तड़पते हुए मरता देख वह बदहवासी की हालत में चिल्लाने लगी - "ये... ये क्या हो गया मेरे बच्चों को?"

वह फटाफट अपनी किचन के अंदर गई और अपने सारे खानों को ध्यान से देखने लगी और आंखों से आंसू बातें हुई बोली "अचानक मेरे बच्चों ने यह खाना खाते ही प्राण क्यों त्याग दिए?"

 उसे वक्त उसके आंखों से झर झर आंसू बह रहे थे। उसके घर पर कोई भी मौजूद नहीं था। जब उसने दाल चेक किया तो देखा कि उस दाल में दो छिपकली गिरी हुई थी। उसकी आंखें फटी की फटी रह गई, उसका दिल धक से रह गया।


यह देख आंचल जोर-जोर से रोते हुए कहने लगी -"मेरे बच्चे मेरी वजह से मारे गए। अब मैं जी कर क्या करूंगी।"

 उसका रो-रो कर हाल बुरा हो रहा था। वह डर के मारे थर थर काँपने लगी। उसने अपने बच्चों को बहुत उठाने की कोशिश की पर उसके बच्चे दुनिया से चल बसे थे।

 उस वक्त पास पड़ोस में भी कोई मौजूद नहीं था क्योंकि पड़ोस के सभी लोग दूर कीर्तन में गए हुए थे। उसका दिमाग बिल्कुल भी काम नहीं कर रहा था। उसकी सिसकियां थमने का नाम नहीं ले रही थी। अपने बच्चों की मौत की जिम्मेदार को वह खुद मान रही थी।

उसके बाद आंचल ने कागज में सब कुछ लिख डाला और कुछ देर के बाद उसने भी वह दाल पीकर अपने प्राण त्याग दिए यह कहकर-
" मेरी एक गलती की वजह से मेरे बच्चे मर गए तो मुझे जिंदा रहने का कोई हक नहीं है।अब मैं अपने पति को क्या जवाब दूंगी।"

कुछ देर के बाद, जब मेरे मौसी का लड़का शंभू,   अपने घर गया तो उसने देखा कि उसकी पत्नी के साथ उसके दोनों बच्चे मरे पड़े थे और उनके मुंह से गांज निकली हुई थी। यह देख वह खूब जोर जोर से रोने लगा। तब तक मोहल्ले के लोग कीर्तन से अपने घर आ चुके थे।

वों घबराते और रोते हुए घर से बाहर निकला और दो-तीन घरों में जाकर  सबको कहने लगा। उसकी दर्द भरी आवाज धीरे-धीरे मोहल्ले में गूंजने लगी। सारे पड़ोस वाले वहां आ गए। सभी पड़ोस वालों ने देखा कि संभू की तो दुनिया ही उजड़ गई थी।

थोड़ी देर के बाद, जब उसकी पत्नी की लिखी हुई कागज मिलीं । जब उसने उस कागज को पढ़ा तो, वो खूब जोर -जोर से रोने लगा। सारे गांव वालों को कहने लगा- " खाने में छिपकली गिर गई थी.. हे भगवान! एक ही झटके में मेरा पूरा परिवार खत्म हो गया। "

और इस बात से संभु आज भी रोता है।'

इसलिए मैंने तुम्हें जोर-जोर से पुकारा।"

रीना कभी दिल धक से रह गया जब उसने अपनी सासू मां के मुंह से असलियत जानी। वों भावुक होते हुए बोली - "ओह..! बहुत बुरा हुआ, शंभू जी के परिवार के साथ । अब से ऐसी गलती कभी नहीं होगी माजी। मूझे माफ कर दीजिए। आबसे मैं इस बात का ख्याल रखूंगी। और रसोईघर में सावधानी से सारे काम किया करुंगी।"

 "कब किसके भाग में क्या हो जाए, यह कोई नहीं जानता। इसलिए हमें हर कार्य में सावधानी बरतनी चाहिए। " - रमोला ने अपनी बहू को प्यार से समझाया।


" रसोई घर के सारे कार्य मैं अच्छे से करूंगी।" रीना ने अपनी सासू मां से कहा।

उसके बाद रमोला ने अपनी बहू को गले से लगा लिया।

सोनम शर्मा ✍️


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