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गली का कालू

मेरा बेटा 10 वीं क्लास की परीक्षा देने के बाद लॉकडॉउन में कसरत करके नए सुपरस्टार सोनू सूद की तरह 6 पैक ऐब बनाने की कोशिश कर रहा है । वो जब 2 साल का था तब खाना खाने में बहुत नखरे किया करता था । उसे कुछ भी खिलाने के लिए हम उसे अपनी लॉबी की खिड़की पर बैठा देते थे और खाने को रख देते थे । घंटे भर में आखिरकार खाना खत्म हो ही जाता था । काफी समय बाद हमें ये पता चला कि हमारे साहबजादे ज्यादातर खाना तो नीचे फेंक देते थे जिसे न जाने कहाँ से आया एक काला कुत्ते का बच्चा खा लेता था । इसी तरह आसपास से भी खाना पानी मिलने लगा और वो कुत्ता बड़ा हो गया । यहीं से कहानी शुरू होती है हमारी गली के कालू की ।


कालू एक तंदरुस्त काले रंग का जबरदस्त एवं बेहद वफादार कुत्ता था । उसके रहते किसी दूसरे कुत्ते या किसी चोर आदि की भी हिम्मत नहीं होती थी हमारी कॉलोनी में घुसने की ।हमें अच्छी तरह से याद है कि जब भी हम देर से आते तो कालू पहली ही गली के मोड़ पर खड़ा हमारा इंतज़ार करता था ।

देर से आने पर कालू बहुत नाराज भी हो जाता था और भले ही घर में बीवी की नाराजगी पर उन्हें कभी न मनाया हो लेकिन उसे मनाना ही पड़ता था ।


रात को जब भी देर होती थी तो हम भी यही सोचते थे कि अगर पहली गली के मोड़ पर ही कालू नहीं मिला तो दूसरे कुत्ते हमारा क्या हाल करेंगे । हालात हमारे भी वैसे ही होते थे जैसे बहुत से कुत्तों से घिरने के बाद बाकी आम लोगों के होते हैं । हम ऊपर से खुद को बहादुर साबित करने की कोशिश करते हुए आगे बढ़ते थे लेकिन अंदर का डर हमारी चारों तरफ घूमती आँखों में साफ नजर आता था । बस अब इस कुत्ते ने काटा और बस अब उसने काटा यह सोचते हुए मोटर साइकिल से धीरे धीरे आगे बढ़ते थे । तभी अचानक दूर से तेज़ आवाज़ में भौंकता हुआ कालू दौड़कर आता दिखता था और हम फिर शेर बन जाते थे । उसकी आवाज़ सुनते ही सारे कुत्ते तुरंत भाग जाते थे और हमें अपने साथ दौड़ते कालू को देखकर लगता था जैसे बाहुबली के साथ शेर दौड़ रहा है । अब यहाँ कौन शेर है और कौन कुत्ता इसका फैसला आप खुद कीजिये लेकिन शेर , शेर ही होता है ।


एक रात जब हम देर से घर लौटे तो कालू कहीं नजर नहीं आया । बाकी कुत्तों से किसी तरह बचकर हम कालू को ढूंढते हुए दूसरी गली में आ गए , अपने घर से कुछ ही दूर हमें खुशी में पूँछ हिलाता कालू दिख गया और हम आश्वस्त हो गए । इतने में किसी ने कालू को आवाज़ दी और वो थोड़ी दूर पर रखे ईंटों के चट्टे के पीछे चला गया । ये देखते ही हमारी एकक्षत्र सत्ता का सिंहासन डोलने लगा कि आखिर ये कौन है जिसने कालू को इतनी जल्दी सम्मोहित कर लिया । जिज्ञासा वश आगे जाकर देखा तो कालू सड़क पर बैठा बहुत ध्यान से सुन रहा था । कालू के सामने बैठकर प्रवचन देने वाला कोई महान ज्ञानी प्रतीत हो रहा था । उसने अपने एक हाथ में टूटी चप्पल उठा रखी थी और दूसरा हाथ कालू को आशीर्वाद देने की मुद्रा में उठा रखा था । ज्ञानी पुरुष का एक पैर पास में ही बहती नाली में पड़ा था और दूसरे पैर पर उन्होनें कुछ खाने का सामान रखा हुआ था । हम समझ गए कि यह शराबियों का स्टॉफ है जिसके सिर चढ़कर अंगूर की बेटी नृत्य कर रही है । हमें वहाँ रुककर कुछ भी कहना या करना बेकार लगा सो हम अपने घर की तरफ लपक लिए ।कालू हमें देखता और उस अजनबी पुरुष पर भौंकता , मानो हमसे कुछ कहना चाहता हो लेकिन हम घर में घुस गए ।


अगले दिन सुबह ही हम अखबार उठाने जब बालकनी में आये तो नजर ईंटों के चट्टे पर पड़ी , लेकिन वहाँ न वो रात वाला स्टॉफ था और न ही कालू । घर से काम पर निकलते वक्त भी कालू कहीं नजर नहीं आया । शाम को जब हम फिर देर से वापस लौटे तो गली के मोड़ पर ही कालू याद आने लगा लेकिन सभी कुत्तों से बचकर घर आते आते भी कालू कहीं नजर नहीं आया । हमने दो तीन बार उसे आवाज़ देकर बुलाया भी , वो हमेशा आवाज़ सुनकर आ जाता था लेकिन इस बार नहीं आया ।


अब तो हमें भी कालू की चिंता होने लगी थी । पड़ोस वाले त्रिपाठी जी , भटनागर जी , शर्मा जी , वर्मा जी और अरोड़ा जी भी अब कालू को ढूँढने लगे थे । हम भी दिन भर इधर उधर नज़रें दौड़ाकर काम के साथ ही कालू को भी ढूँढ रहे थे । आज घर भी जल्दी चल दिये और करते रहे कैसे कालू ने मंदिर के पंडित जी के बेटे को खूँखार कुत्तों से बचाया था । उस लड़ाओ में उसकी गर्दन पर गहरा घाव हो गया था जिसपर हमनें दावाई लगाकर बहुत मुश्किल से ठीक किया था । सभी पड़ोसियों ने भी उसका बहुत ध्यान रखा था । वो कालू के लिए बहुत कठिन समय था लेकिन सभी की प्रार्थनाओं और मेहनत से वो ठीक हो गया था ।


हमें याद आ रहा था कि हमारे दोनों बच्चे जब भी घर से कहीं बाहर जाते तो कालू उनके साथ ही जाता और आता था , इस वजह से हम बेफिक्र भी रहा करते थे । लेकिन अब तो कालू को गायब हुए 3 दिन हो गए थे । यही सब सोचते हुए घर पहुँचे तो पड़ोसी वर्मा जी ने एक और खबर सुना दी कि आज दिन में ही हमारे घर से छोटे बेटे की साइकिल चोरी हो गयी । हमने घर जाकर अपने कैमरे चेक किये तो हमें बहुत जोर का झटका लगा । हमने देखा कि एक आदमी छोटे गेट के बाहर से हाथ अंदर डालकर चेन काटकर साइकिल चुरा रहा है और वो वही है जिसपर 3 दिन पहले रात को कालू भौंक रहा था । कालू हमसे कुछ कहना चाहता था लेकिन हमने उसकी कोई बात नहीं सुनी थी ।


अब हमारी और सभी पड़ोसियों की भी चिंता बढ़ चुकी थी लेकिन कालू अभी भी लापता था । अगले दो दिन भी उसका कुछ पता नहीं चला लेकिन हमारी कॉलोनी से एक स्कूटी और हमारे ही घर से एक और साईकल चोरी जरूर हो गयी थी । कैमरे में एक फिर वही शराबी स्टॉफ नज़र आया था जिसपर कालू भौंक रहा था । शायद वो बताना चाहता था कि यह कॉलोनी में चोरी के इरादे से घूम रहा है लेकिन हमने उसकी बात सुनना जरूरी नही समझा था । अगले दिन सुबह ही त्रिपाठी जी ने फोन करके हमें नीचे बुलाया । हम गली में पहुँचे तो सफाई कर्मचारी भी खड़े थे , उन्होंने  बताया कि देवीसिंह की डेरी के बराबर वाले नाले की सफाई में कालू की लाश मिली है । उन्होंने बताया कि उसे किसी ने जहर देकर मार दिया और लाश नाले में फेंक दी । अब हमारे सामने सब कुछ साफ हो चुका था कि कालू को चोरों ने अपने रास्ते का रोड़ा मानकर उसकी हत्या कर दी थी । लेकिन था तो वो सिर्फ गली का कालू न ही किसी के घर में पलने वाले पालतू इसलिए हमने उसकी हत्या की कोई रिपोर्ट नहीं कराई । सिर्फ ठीक तरीके से उसका क्रिया कर्म करवाकर ही अपने कर्तव्य पूरे कर लिए थे ।


अब हम रोज़ ही घर वापस लौटते समय कालू को याद करते हैं , हालांकि अब कालू कभी नज़र नहीं आएगा । आपकी गली में भी ऐसा ही कोई कालू , भूरी , लंगड़ा , शेरू , टॉमी आदि जरूर होंगे लेकिन आपके लिए भी वो सिर्फ गली के कालू जैसे ही होंगे । हम और आप शायद कभी समझ ही नहीं पाऐंगे की ये कुत्ते पालतू न होकर भी हमारे कितने वफादार होते हैं । मुझे आज भी याद है जब एक बार देर रात को अचानक हमें कोई जरूरी दावा लेने घर से जाना पड़ा था । शहर में सिर्फ एक ही दुकान ऐसी थी जो रात भर खुलती थी लेकिन उस वक्त शहर में आवारा कुत्तों का आतंक इतना ज्यादा था कि अकेले निकलने की हिम्मत नहीं होती थी । रोज़ अखबार की सुर्खियों में इन आदमखोर हो चुके आवारा कुत्तों के हमले में किसी न किसी की मौत की खबर जरूर होती थी । उस रात हम घर से अपनी स्कूटर पर निकले लेकिन एक अनजाना डर भी हमारे साथ चल दिया ।

कुछ दूर जाते ही हमारे मोहल्ले के कुत्तों का झुंड नज़र आया और अब माथे पर शिकन आना भी लाज़मी था । लेकिन तभी तेज आवाज़ में भौंकते कालू को देखकर मानो हमारे अंदर नई जान आ गयी । उस दिन कालू सारे रास्ते दूसरे कुत्तों से लड़ता भिड़ता हमारे साथ दवा की दुकान तक गया था और वापस भी आया था । उसे काफी चोटें भी लगी थीं लेकिन हमें सही सलामत घर पहुँचाकर वो खुशी में पूँछ हिलाकर हमारे चारों तरफ घूम रहा था मानो अपने दर्द का एहसास ही नहीं था ।

हमें याद है कि हमारे बुज़ुर्ग पड़ोसी शर्मा जी भी कालू से बेहद लगाव रखते थे । कालू की सुबह भी शर्मा जी को देखकर ही होती थी । उनकी एक आवाज़ पर कालू पूँछ हिलाता खुशी से दौड़ता हुआ आता था । एक दिन अचानक वो बीमार पड़े और पास के साईं अस्पताल में उन्हें भर्ती कराया गया । कालू ने उस दिन के बार घर से अस्पताल और अस्पताल से घर के चक्कर लगाए थे । 3 दिन तक काफी कोशिशों के बाद भी कालू ने खाना नहीं खाया था । 3 दिन बाद कालू अस्पताल के बाहर ही बैठ गया मानो हर आने जानेवाले से शर्मा जी का हाल पूछना चाहता था । 4 दिन तक इसी तरह कालू अस्पताल के बाहर ही बैठा रहा लेकिन शर्मा जी फिर कभी बाहर नहीं आये और उनकी मृत्यु हो गयी ।  सभी घरवालों ने मोक्ष धाम में उनका अंतिम संस्कार कर दिया लेकिन किसी ने नहीं देखा कि वहाँ कालू दूर बैठा न जाने कब तक रोता रहा । हमें याद है कि एक महीने से ज्यादा दिनों तक कालू ने शमशान घाट के चक्कर लगाए थे । एक दिन शर्मा जी के घर एक लड़की अपने परिवार सहित मिलने आयी थी और उस दिन कालू ने भौंक भौंककर सारा मोहल्ला सर पर उठा लिया था । बाद में पता चला कि वो शहर विधायक की छोटी बहन थी जिसकी आँखें एक हादसे में चली गईं थीं । शर्मा जी ने नेत्रदान किया था और उनकी आँखें इस लड़की को लगाई गईं थीं । उस लड़की ने काफी कोशिश करके अपने नेत्रदाता का पता लगाया था और उनके परिवार वालों को धन्यवाद देने आए थी लेकिन कालू ने उसकी आँखों में शर्मा जी को पहचान लिया था । इससे ज्यादा वफादारी और कहाँ हो सकती है ?


लेकिन गली के ये कालू बहुत वफादार होते हैं और किसी से कोई उम्मीद भी नहीं रखते । अंतर सिर्फ इतना होता है कि ये कालू तो सबको अपना परिवार मानते हैं लेकिन क्या हम भी इन्हें अपना परिवार मान पाते हैं ? हम अपने घर की बालकनी में बैठकर नींबू की शिकंजी पी रहे थे और दूर कहीं से गाने की आवाज़ आ रही थी ,,,,, इक जानवर की जान आज इंसानों ने ली है , चुप क्यों है संसार ???????

कुछ दिन बाद हमारे घर के गेट के पास एक लावारिस कुत्ते का बच्चा बैठा था , लेकिन इस बार उसका रंग भूरा था , तो अब हमारी गली में भूरा आ चुका था ।


लेखक

अतुल सिन्हा


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