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पानी में भीगी रोटी







पानी में भीगी रोटी


मुरादाबाद का रेलवे स्टेशन जिसका अभी अभी जीर्णोद्धार किया गया है , या यूँ कहें कि नई नई लिपाई पुताई की गई है । लेकिन अब स्टेशन बहुत अच्छा लग रहा है साथ ही मुरादाबाद का नाम भी हिंदी , अंग्रेजी और उर्दू में बिजली के साथ जगमगा रहा है । स्टेशन के बाहरी प्रांगण में एक रौशनी से जगमगाता पीले रंग का नारियल का दिखावटी पेड़ भी लगाया गया है जो रात में बहुत खूबसूरत लगता है । लेकिन सबसे अच्छा और सच्चा जो लगता है वो है मेरे देश का 100 फुट ऊँचा ध्वज जो बहुत शान से लहराता हुआ हमें देश के स्वाभिमान की याद दिलाता है ।


वैसे भी पिछले कुछ सालों में राष्ट्रवाद के साथ ही देशभक्ति भी अपने शिखर पर होने का एहसास लगातार कराती रहती है । जो देशभक्ति सिर्फ तारीखों पर जागती थी और बाकी दिन घरों की किसी अलमारी में सोती रहती  थी वो अब अक्सर जागने लगी है । अब हम राष्ट्रवाद के हवाई जहाज़ पर सवार होकर देशभक्ति के सागर के हवाई चक्कर लगाते ही रहते हैं । कभी पाकिस्तान की वजह से और कभी चीन की वजह से हम अक्सर देशभक्त बनने लगे हैं । यहाँ यह बताना भी बेहद जरूरी है कि हमारे देश की तरक्की अब देशभक्ति की डोर से बंधी है । उसका प्रमाण देने के लिए हमें पाकिस्तान को गाली देना और चीन के सामान का बहिष्कार करना भी नितांत आवश्यक हो गया है ।


रोज़ हमारे देश के बड़े बड़े नेता टी वी पर आकर हमें देश की इस तरक्की से रुबरु कराते हैं । उनके बताने से हमें इस बात का बोध भी हो जाता है कि हम कितने अज्ञानी हैं , अगर हमारे नेता यह न बताएँ तो हमें कैसे पता चले कि देश तरक्की के रास्ते पर कितनी तेजी से दौड़ रहा है । हमारे घर अब तरक्की करके फ्लैट बन चुके हैं और हमारे रेलवे स्टेशन अब एयरपोर्ट की बराबरी करते हैं ।


आज हमारे मित्र वर्मा जी की वजह से हमारा भी ज्ञानवर्धन हो रहा है और रेलवे स्टेशन देखकर देश की तरक्की का एहसास भी ।

हम अपने मित्र के साथ एक चाय की दुकान पर खड़े अंतरराष्ट्रीय परिवेश पर अपना ज्ञान पेल रहे थे , तभी वर्मा जी बोले कि ट्रेन आ रही और उन्हें किसी को कुछ सामान स्टेशन पर देना है । वर्मा जी हमें भी अपने साथ चलने को कह रहे थे , इसी बीच उन्होनें चाय के पैसे भी दे दिए । अब तो हम उन्हें किसी भी तरह इनकार करने की स्थिति में नहीं थे और बोझ तले दब चुके थे । उन्हीं के साथ हम स्टेशन आ गए थे और यहाँ के इस अनुपम सौंदर्य का ज्ञान भी  हमें उन्होनें ही कराया था ।


ऐसा नहीं है कि हम पहले कभी स्टेशन नहीं आये थे लेकिन तब हमें हमेशा ही इस खूबसूरती से पहले स्टेशन के कोने कोने में  बिखरे पड़े वो गरीब जो अक्सर अपने आस पास की गंदगी को अपना घर मान लेते हैं , वो ही ज्यादा दिखाई देते थे । ये स्टेशन वाले गरीब भी अलग तरह के गरीब होते हैं क्योंकि देखने में तो यह भी गरीबों की तरह ही होते हैं लेकिन इनकी भूख अलग तरह की होती है । यह अपना पेट भरने के लिए आसपास के होटलों पर निर्भर नहीं होते और न ही ये किसी से खाने को माँगते हैं बल्कि ये आपसे पैसा माँगते हैं क्योंकि  इनकी भूख नशे की होती है । इनके हाथों की सूजन और उनमें जगह जगह बने घाव खुद बताते हैं कि नशे के इंजेक्शन लेते लेते अब इनका शरीर भी इनका साथ छोड़ रहा है ।


लेकिन आज वर्मा जी के स्टेशन सौंदर्य ज्ञान के आगे हमें कुछ दिखाई नहीं दे रहा है । हम चलते हुए दो नंबर प्लेटफार्म पर आ गए और गाड़ी का इंतज़ार करने लगे । वैसे आपको बता दें कि हमने कोई प्लेटफार्म टिकट नहीं लिया था लेकिन अक्सर ऐसी गलती आपकी जेब पर भारी पड़ जाती है । स्टेशन पर अलग अलग तरह के शोर में आपसी बातचीत मंद पड़ गयी थी और अचानक हमारी आँखों के आगे ऐसी मार्मिक तस्वीर आ गयी जिसने हमें अंतरात्मा तक झकझोर दिया । पास की ही एक पानी की टंकी के पास एक बुजुर्ग , उम्र लगभग 60 से 65 साल होगी , हाथ में सूखी रोटी लिए खड़ा था । उसका शरीर उसके कुपोषण की गवाही चीख चीखकर दे रहा था । तभी उसने एक हाथ से रोटियाँ अलग कीं जो गिनती में तीन ही थीं और उसमें से एक रोटी को पानी से भिगोकर खाना शुरू कर दिया । हड्डियों के उस पुतले को शायद सूखी रोटी गले से नीचे उतारने में तकलीफ हो रही थी । धीरे धीरे एक रोटी खाने के बाद उसने दूसरी और तीसरी रोटी भी ऐसे ही भिगोकर खायीं और हम निःशब्द उसे बस देखते रह गए । अब हमें एयरपोर्ट जैसा रेलवे स्टेशन और वो खूबसूरती दिखाई देना बंद हो चुकी थी ।


अचानक वहाँ कोई अनाउंसमेंट हुई जिसे सुनकर वर्मा जी ने हमसे कुछ कहा लेकिन हम समझ नहीं पाए । वर्मा जी भी अब तक उस बूढ़े को देख चुके थे और हमारी मानसिक स्थिति का अंदाजा भी लगा चुके थे इसीलिए हमें वहीं बैठा रहने को बोलकर खुद आनेवाली ट्रेन की तरफ बढ़ गए थे । हमसे अब रहा नहीं गया तो उठकर उस बूढ़े के पास गए और पूछा कि और भूख तो नहीं लगी या कोई मदद चाहिए हो तो बताएं । उस बूढ़े हड्डियों के ढाँचे वाले बाबा ने बहुत प्यार से हमें आशीर्वाद देते हुए कहा कि ये पैसे अपने पास रखो तुम्हारे काम आएंगे , रही बात मेरी तो मेरा पेट भर गया है शाम को फिर ऊपरवाला कोई जुगाड़ कर देगा ।


इतना कहकर बूढ़े बाबा तो अपनी अलग दुनिया में मस्त सीढ़ियों के नीचे बने अपने आरामगाह की तरफ चले गए । लेकिन अब हमें अपने देश की तरक्की और आधुनिकता का लाबादा ओढ़े खड़े मुरादाबाद रेलवे स्टेशन की खूबसूरती का टी वी पर बखान करते नेता याद आने लगे थे । आज हमें उस रफूगर की सच्चाई भी याद आ गयी जिसे राजा ने अपनी गलतियों को रफू करके जनता की आँख में धूल झोंकने के लिए रखा था । इतने में वर्मा जी अपना काम निबटाकर आ गए और हमें फिर उसी चाय की दुकान पर ले आये । एक एक चाय और हो जाए कहकर जैसे उन्होंने हमें अपनी मनोदशा से बाहर आने का इशारा किया । बोले अरे यार अब छोड़ भी उस बूढ़े को और ज्यादा जज़्बाती मत बन , ले चाय पी । हमने भी चाय पीना शुरू कर दिया लेकिन इस खूबसूरत रेलवे स्टेशन के पीछे की उस मार्मिक तस्वीर ने हमें किसी लेखक की बात फिर याद दिला दी कि " झूठ का पर्दा उठाओ तो सच नंगा बैठा नज़र आता है " ।


लेखक

अतुल सिन्हा


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