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जड़ विहीन

वक्त , मुठ्ठी की रेत की तरह कब सरक गया मालूम ही नहीं हुआ ! दिक्षा आज बीस साल की हो गईं !

दिक्षा के आज के कथन से मुझे यूं लगा जैसे वक्त मेरी तरफ अपने भयानक मुख और पैने दांतो से काट खाने को उद्धत हो रहा है , दिक्षा ने जबसे अमित के बारे में बताया कि वह अन्य जाति  से है तबसे मेरी रातों की नींद उड़ी हुई है , दिक्षा सारा दिन अमित के गुणों और उसकी योग्यता का बखान करती रहती है लेकिन मैं तो जैसे पत्थर की हो चुकी हूं , बस मुझे केवल अतीत के अलावा कुछ नहीं दिखाई दे रहा है !

काश ! नानी ने मुझे उस दिन डांट दिया होता जिस दिन पहली बार  मेने सोमेश्वर की योग्यता और गुणों का बखान किया था , तो आज मुझे अपना अतीत, वर्तमान और भविष्य की मिंमासा नहीं करनी पड़ती !

शाम को सोमेश्वर जब आफिस से घर आए तो मेने दिक्षा और अमित के बारे में बताया तो उन्होंने बड़े ही सहज भाव से कह दिया , इसमें चिंता की क्या बात है अमित हर तरह से योग्य है और सबसे बड़ी बात अपनी दिक्षा से प्यार करता है ! और आजकल जातियों का कोई महत्व नहीं रहा , और करवट बदल कर सो गये , लेकिन मेरी आंखो मे तो पच्चीस साल पहले का वो मंजर घूमने लगा , जब मेने सोमेश्वर के साथ अपने प्रेम संबंधों के बारे में मां को बताया था , रक्षाआआआ ! मां इतनी जोर से चिल्लाई कि सारा मकान गूंज गया ! कुछ देर बाद मां संयत हुईं तो मुझे लगभग घसीटते हुए कमरे में ले गयी और बेड पर बैठा दिया और तमतमाते हुए बोली ! रक्षा अगर अपनी और हमारे  परिवार की जिंदगी चाहती है तो आगे से ये बात भूलकर भी अपने आप से भी मत कहना ! समझ गई ना ! तेरे दादाजी और तेरे पापा तुझे , मुझे और तेरे प्यार को काटकर फेंक देंगे , में तो तेरी मां हूं और मेने तेरी बकवास सुन भी ली , नहीं मेरी बच्ची ऐसा सपने में भी मत सोचना ! अरे बेटी हमारे परिवार में तो लड़की के शादी विवाह के बारे में लड़की से पहले पूछना तो दूर की बात , विवाह के बाद में लड़की को मालूम होता है कि उसका विवाह फंला फंला लड़के और परिवार में हुआ है , और तूं अंतर्जातीय विवाह के बारे में सोच रही है , भूल जा बेटी भूल जा , भूल जा और बड़बड़ाते हुए कमरे से बाहर चली गई ! में बिल्कुल जड़वत की स्थिति से बाहर आई और सोचा , मुझे अपने परिवार और कुटुंब से क्या लेना मुझे तो अपना प्यार चाहिए बस!! और उसी रात अपने प्यार सोमेश्वर के साथ अपने माता-पिता और परिवार से दूर बहुत दूर पंहुच गई और वहां की स्थानीय अदालत में विवाह कर लिया चूंकि मैं बालिग थी इसलिए कोई कानूनी समस्या भी नहीं हुई ! पांच दिन बाद एक सुबह घर के सामने एक जीप रुकी और उसमें से मेरे माता-पिता और भैया रोहित उतरे में भागकर उनकी तरफ गयी तो मां ने हाथ के इशारे से मना कर दिया और चिल्लाई , रक्षा ! तूं हमारे लिए अछूत हो चुकी है और हमेशा-हमेशा के लिए मर चुकी है , तूं यह मत समझना कि हम तुमसे मिलने या तेरी खैर खबर लेने आए हैं , अरी निगोड़ी हम तो तुझे अपनी जड़ों से उखाड़ने आए हैं और तुझे बताने आए हैं कि आज के बाद तेरी कोई मां नहीं , तेरा कोई बाप नहीं और ना तेरा कोई भाई नहीं आज से तूं जड़ विहीन है " जड़ विहीन " समझ गई ना !!!! और तीनों वापिस जीप में बैठकर चले गए , मकान के भीतर से सोमेश्वर और उनके परिवार वाले जब तक बाहर आए तबतक जीप धूल के गुब्बार उड़ाते गुम हो चुकी थी ! में पत्थर की शिला की तरह हो गई, सोमेश्वर मुझे सहारा देकर भीतर लेकर गये , धीरे धीरे में सामान्य हुई लेकिन तब तक एक  वर्ष का समय व्यतीत हो चुका था ! इस एक साल में बहुत कुछ हो गया , सोमेश्वर को एक कंपनी में नोकरी मिल गई , मेरा आईआईटी करने का सपना मेरे अंधे प्यार में धरा का धरा ही रह गया , हम दोनों लखनऊ आ गये , दिक्षा का वजूद मेरी कोख  में पलने लगा , दूसरा वर्ष खत्म होते होते दिक्षा मेरी गोद में आ गयी , सबकुछ सामान्य भी हो गया , लेकिन " में " केवल में " जड़ विहीन " ही रही और आज भी जड़ विहीन हूं ! सोचते सोचते कब सुबह हो गई मालूम ही नहीं हुआ , लेकिन मैं " रक्षा " अपने मन में दृढ़ संकल्प कर चुकी थी कि " रक्षा " तो जड़ विहीन हो गई थी अपने अंधे प्यार में , लेकिन अपनी " दिक्षा " को जड़ विहीन नहीं होने दूंगी , कभी नहीं कभी नहीं !!!!!!

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