एक प्यार ऐसा भी
एक प्यार ऐसा भी
देश की राजधानी या यूं कहें कि भारत का दिल दिल्ली।
दिल्ली का एक खास इलाका जिसे कूड़े का कुतुबमीनार भी आप कह सकते हैं।
जी हां आपने सही पहचाना, ये है दिल्ली का गाज़ीपुर इलाका।
कुतुबमीनार की उंचाई अगर 73 मीटर है तो दिल्ली के इस इलाके के कूड़े के कुतुबमीनार की उंचाई भी 65 मीटर तक पहुंच चुकी थी। लेकिन कुछ सुत्रों के मुताबिक सरकार के निरन्तर प्रयास से 12 मीटर की उंचाई कम हुई है।
सितंबर 2017 में इस लैंडफिल साइट पर एक ज़ोरदार धमाका हुआ और कूड़े का ढेर इतनी तेजी से नीचे आया कि वहां से गुज़र रही दो कारें हिंडन नहर में जा गिरी, और कई बाईक और स्कूटी भी कूड़े के ढेर के बहाव से नहर में जा गिरी।
कूड़े का बहाव इतनी तेज़ी से आया कि शहर के किनारे बनी लोहे की रेलिंग भी टूटकर नहर में जा गिरी। तीन साल बाद नवम्बर 2020 में फिर से यहां ऐसी भयानक आग लगी कि 10 दमकल गाड़ियों के लिए भी काबू पाना मुश्किल हो गया।
ख़ैर ये एक अलग मुद्दा है, लेकिन हम बात करने जा रहे हैं वहां पर रहने वाले लोगों की।
चलिए हम अपनी कहानी पर आते हैं, जैसा ये हादसा हुआ, ऐसा ही हादसा लगभग 20 साल पहले यानि कि 1997 में भी हुआ, तब मोटर साइकिल पर जाते हुए एक आदमी के साथ एक बच्चा भी था जो उस समय महज 2.5 या 3 साल का रहा होगा।
जब ये हादसा हुआ वो इस अचानक झटके से उछलकर कूड़े के ढेर के दूसरी तरफ जा गिरा जिस पर किसी सुरक्षाकर्मी की नज़र नहीं गई और वो दो दिन तक वहां बेहोश पड़ा रहा।
दो दिन बाद जो लोग कूड़ा बीनने का काम करते हैं, अर्थात कूड़े में से प्लास्टिक या गत्ता, रद्दी इत्यादि छांट कर ले जाते हैं, और कबाड़ी को बेचकर इससे उनकी रोजी-रोटी का जुगाड़ हो जाता है।
वही कूड़ा बीनने वाला एक शख्स आया और कूड़ा बीनते हुए उसे कूड़े में से हरकत सी महसूस हुई, उसने कूड़ा हटाकर देखा तो वहां एक बच्चा अर्धचेतनावस्था में पड़ा है।
उसे उठाकर वो अपनी झोपड़ी में ले गया, उसे देसी टोटके द्वारा जब होश आया तो पहले उसे नहला-धुला कर खाना खिलाया और फिर उससे पूछा, " बेटा तुम कौन हो ? और यहां कूड़े में कैसे आए? कहीं दो दिन पहले के बहाव में तो नहीं"?
बच्चा पापा-पापा कह कर बच्चा रोने लगा।इतना छोटा बच्चा ना तो अपने बारे में कुछ ज्यादा बता पाया ना घर का अता-पता!
उस शख्स जिसका नाम हरी था बच्चे को प्यार करके चुप कराया और उसे आश्वासन दिया कि उसके पापा को ढूंढेगा।
लेकिन इतना छोटा बच्चा सही तरह से घर का पता ना बता सका, हरी को मन में भी मोह और लालच जागा, उसने उसके माता-पिता को खोजने की कोशिश भी नहीं की।
और उसे अपना बेटा मानकर अपने पास रख लिया। वैसे भी हरी का इस दुनियां में कोई नहीं था, पत्नी और एक बच्ची दो साल पहले ही हैज़ा के कारण दम तोड चुकी थी। तो उसे भी ज़िंदगी का सहारा मिल गया।
हरी उसे राजा कह के बुलाने लगा, और अपने बच्चे की तरह पालने लगा, धीरे-धीरे राजा भी हरी से घुल-मिल गया। दोनों एक -दूसरे का सहारा बन गए।
हरी पढ़ा-लिखा नहीं था, वो चाहता तो था कि राजा को पढ़ाए लेकिन रोटी-सब्जी के अलावा तन ढकने का गुज़ारा भी मुश्किल से होता, उसे किसी स्कूल में कैसे पढ़ाता।
जहां ये झोपड़-पट्टी थी वही सड़क के दूसरी तरफ जो घर बने हुए थे उनमें एक घर में युसुफ मियां और उनकी बेगम फातिमा रहते थे शादी के 6 साल बीतने पर भी गोद सूनी थी।
सामने सड़क पार जब राजा को देखा तो प्यार उमड़ पड़ा। राजा देखने में राजकुमारों सा लगता, कभी-कभी फातिमा बेगम राजा को बुला लेती और उसके साथ समय व्यतीत करना उसे अच्छा लगता।
लेकिन अब फातिमा बेगम उम्मीद से हो गई तो वो राजा को और भी ज्यादा प्यार करने लगी, कहती," राजा के कदम मेरे घर में पड़े तो अल्लाह ने मेरी सूनी गोद भर दी, राजा मेरे लिए खुशियों का ख़ज़ाना बन कर आया है"
फातिमा बेगम ने चांद सी बेटी को जन्म दिया, घर में खुशियों की लहर छा गई। बेटी का नाम सितारा रखा गया क्योंकि युसुफ मियां और फातिमा बेगम की ज़िंदगी का सितारा बन कर आई थी।
युसुफ मियां ऑटो रिक्शा चलाते थे, ठीक-ठाक ही कमाई हो जाती, बच्ची के लिए सपने देखने लगे कि उसे एक अच्छे और बड़े स्कूल में पढ़ाएंगे, चाहे इसके लिए उसे दूंगी मेहनत करनी पड़े।
बड़ा होने पर राजा भी हरी के साथ कूड़ा बीनने जाने लगा, राजा बचपन से तो खूबसूरत था ही मगर जैसे-जैसे बड़ा हो रहा था, और भी स्मार्ट होता जा रहा था।
राजा को पढ़ने का बहुत शौंक था मगर हरी उसे पढ़ा नहीं सकता था, इसलिए मन मार कर रह जाता और बाबा संग काम पर जाने लगा।
सितारा भी अब बड़ी हो रही है, युसुफ मियां ने उसे एक अच्छे स्कूल में दाखिला दिला दिया। पढ़ने में होशियार स्कूल में हमेशा अव्वल रहती और स्कूल की तरफ से वजीफा मिलने लगा।
सितारा राजा को अपनी किताबें देती और खाली समय में उसे पढ़ाया करती थी। इस तरह से राजा कुछ-कुछ पढ़ना सीख गया था।
कब दोनों का बचपन बीता और कब जवानी की दहलीज पर कदम रख लिया पता ही नहीं चला।
राजा एक खूबसूरत नौजवान बन चुका था, लम्बा- ऊंचा कद, घुंघराले बाल, गोरा-चिट्टा रंग, बलिष्ट बाहें। और सितारा भी तो माशा-अल्लाह बला की खूबसूरत, शहजादी को भी मात कर दे।
राजा के मन में एक खास जगह बन गई थी सितारा के लिए, और सितारा भी शायद राजा को चाहने लगी थी।
शायद, हां शायद।
लेकिन ये कैसे पता चले कि वो भी राजा को चाहती है या नहीं, चलिए देखते हैं कि आगे कहानी क्या रूख लेती है।
सितारा 10 वीं पास करके आगे की पढ़ाई के लिए कालिज जाना चाहती थी।
युसुफ मियां ने सितारा को एक बहुत ही अच्छे और बड़े कालिज में एडमिशन दिलवा दिया, क्योंकि सरकार की तरफ से वजीफा भी मिलता था, होशियार भी थी, तो एडमिशन में कोई परेशानी नहीं हुई।
लेकिन सितारा जाने से पहले राजा की ज़िंदगी के बारे में कुछ ठोस कदम उठाने के लिए सोचने लगी।
सब कूड़ा बीनने वाले साइकिल-रिक्शा वालों को कूड़ा बेचते और वो साइकिल-रिक्शा वाले आगे बड़े कबाड़ी को बेचते।
सितारा ने सोचा इस तरह इन बस्ती वालों को कुछ खास कमाई तो होती नहीं, जिससे उनका रोटी का ही गुज़ारा मुश्किल से होता है।
एक दिन सितारा राजा से कहती है, " राजा अगर तुम ये कूड़ा- रद्दी सीधे बड़े कबाड़ी को बेचो तो तुम्हें वहां से ज्यादा पैसे मिलेंगे, और जिससे तुम पढ़ाई का खर्च भी निकाल सकते हो"
राजा को पढ़ने का शौंक तो था ही, उसे ये आइडिया अच्छा लगा। उसने बस्ती वालों से बात की तो बस्ती वालों को भी सुझाव पसंद आया, उन्हें भी लगा कि उन्हें भी अपने बच्चों को पढ़ाना चाहिए। सब बस्ती वालों ने ये ज़िम्मेदारी राजा को ही सौंप दी।
अब समस्या ये कि बड़े कबाड़ी के पास शहर तक इस कूड़ा-करकट को कैसे पहुंचाया जाए।
तो सितारा ने अब्बू से कहा," अब्बू आप राजा को एक टेम्पो किराए पर ले दिजिए, जिससे राजा सारा कूड़ा-करकट शहर में बेचने जा सकता है, जिससे सब बस्ती वालों को भी अच्छा मुनाफा होगा, ताकि वो अपने बच्चों को पढ़ा सके"
" बेटी मशवरा तो सही है, चलिए, मेरा एक दोस्त है टेम्पो वाला, मैं उससे बात करके कहीं से इंतज़ाम करवाता हूं"
युसुफ मियां ने टेम्पो का इंतजाम कर दिया और सितारा ने ओपन बोर्ड से राजा की पढ़ाई का इंतजाम।
लेकिन अब हाॅस्टल जाने का वक्त आया तो सितारा का दिल मानो इसके लिए गवाही नहीं दे रहा, यही हाल राजा का था।
सितारा," राजा, ना जाने क्यों तुमसे दूर जाने के नाम पर मुझे घबराहट क्यों हो रही है, ऐसा लग रहा है मानो शायद हम बिछड़ कर फिर ना मिले"
राजा," सितारा मेरा भी यही हाल है, ना जाने तुम्हारे जाने के नाम पर दिल बैठा जा रहा है, ऐसा क्यों हो रहा है हमारे साथ"
दोनों ना समझ सके कि आखिर उन्हें हुआ क्या है।
ख़ैर सितारा हाॅस्टल चली गई, लेकिन जाते-जाते एक निश्चय करके गई कि इस लैंडफिल साइट को खत्म करवा के रहेगी, क्योंकि वो राजा के बारे में जान चुकी थी। जब राजा बड़ा हुआ तो हरी ने उसे उसके जीवन की सच्चाई बता दी थी।
सितारा,' राजा एक दिन मैं इस लैंडफिल साइट को खत्म करके रहूंगी, ऐसे इलाके शहर से दूर कहीं होने चाहिए, कितने लोग यहां इसकी बदबू से दम घुटने से मर जाते जाते हैं, कितने इसके विस्फोट से"
राजा," हां सितारा हमें हर हाल में इस समस्या का समाधान निकालना ही होगा"
सितारा कालिज के लिए रवाना हुई, इधर राजा दिन-रात मेहनत करके पढ़ाई में अव्वल पे अव्वल आता रहा, उसने बी.ए. कर लिया, और बस्ती के बच्चों को भी स्कूल में एडमिशन दिलवा दिया, साथ में खाली समय में उन्हें खुद भी पढ़ाता।
धीरे-धीरे राजा ने टेम्पो में कूड़ा-करकट का काम छोड़कर दूसरे माल ढोने लगा, क्योंकि वैसे भी इस तरफ अब सरकार भी थोड़ा सा ध्यान देने लगी थी कि इस लैंडफिल साइट को कम किया जाए ताकि जान-माल के नुकसान से बचा जा सके।
उधर ग्रेजुएशन करने के बाद सितारा ने आई.ए.एस. की तैयारी शुरू कर दी, यू पी एस सी( UPDC exam.) का इम्तिहान दिया जिसमे सितारा अव्वल नम्बर पर आई। अब वो आई. ए. एस. बन गई और लैंडफिल साइट को खत्म कराने की कोशिश जारी रखी।
सितारा की इस कामयाबी पर जितना राजा खुश था शायद ही कोई हो। सितारा आई.ए.एस. बनने के बाद जब घर आई तो एक दिन सितारा और राजा बैठे बातें कर रहे थे," सितारा आज तुम्हारी वजह से मैंने बी.ए. कर लिया और टेम्पो का काम भी अच्छा चल निकला, मैंने कभी सपने में भी नहीं सकता चा था कि कभी मैं पढ़ पाऊंगा"
"राजा ये तुम्हारी अपनी मेहनत का फल है"
अच्छा ये बताओ कोई लड़की पसंद आई ?
"किसलिए"?
" बुद्धू शादी के लिए और किसलिए"
"पहले तुम बताओ,तुमने लड़का पसंद किया कोई"
"मुझे नहीं करनी शादी-वादी"
" मुझे कौन सा करनी है"
लेकिन दोनों में मन में एक ही बात चल रही है, कि दोनों एक-दूसरे के बिना नहीं रह पाएंगे।
राजा को बाबा ने शादी के लिए कहा तो राजा ने बाबा से साफ कह दिया," बाबा मैंने सितारा को ही अपना मान लिया है, उसके सिवा मैं किसी और का नहीं हो सकता"
" लेकिन बेटा युसुफ मियां नहीं मानेंगे"
"बाबा इस जन्म नहीं तो अगले जन्म सही, मैं जन्म-जन्मांतर सितारा का इंतजार कर सकता हूं"
बाबा जानते थे राजा सितारा के सिवाय किसी का नहीं हो सकता, इसलिए उन्होंने ईश्वर के भरोसे छोड़ दिया।
सितारा अपने अब्बू के ख़्यालात जानती थी, उसे मालूम था, किसी भी हालत में अब्बू राजा से उसकी शादी नहीं करेंगे, इसलिए उसने अब्बू से कुछ ना कहा।
" राजा तुम चाहो तो गवर्मेंट की नौकरी के लिए अप्लाई कर सकते हो, इसमें मैं भी तुम्हारी मदद कर दूंगी" सितारा राजा को मशवरा देती है।
राजा ने जाॅब के लिए अप्लाई कर दिया, ईश्वर का खेल सितारा के महकमे में ही राजा को ड्राईवर की नौकरी मिल गई, सितारा को थोड़ा सा अटपटा तो लगा, मगर दिल में एक सुकून भी जगा कि राजा हर पल उसकी आंखों के सामने रहेगा।
एक प्यार ऐसा भी हो सकता है क्या, जैसे इन दोनों का मूक प्यार है, बस दोनों इसी में संतुष्ट हैं कि दोनों एक -दूजे की नज़रों के सामने है।
प्रेम बजाज ©®
जगाधरी (यमुनानगर)