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अनोखा बंधन

 

समस्त मानव जाति बंधनों में बांधी हुई है। कभी कभी ये बंधन सुखांत होते हैं,और कभी कभी ये बंधन दुखांत भी होते हैं जब यही बंधन  दो प्यार करने वाले के बीच में आ खड़ा होता है, तो यही बंधन दुखांत का रूप ले लेता है।और एक नया अनुभव दे जाता है ऐसी ही एक कहानी पनपी कानपुर के एक प्रेमी और आगरा की एक प्रेमिका के बीच

दोनों के रिश्तों की दूरियां तो थी परन्तु रिश्तों में दूरियां नहीं दिखती थी।  प्रेम न तो रिश्ता देखता है और न तो रंग रूप ये सिर्फ विचारो की देन हैं।प्रेम खुद एक रिश्ता स्थापित करता है।उस लड़के का नाम मोहन और लड़की का नाम राधा था। बहुत समय की बात है।जब मोहन की उम्र लगभग 12 वर्ष की होगी और राधा की उससे १-२ कुछ  साल कम। मोहन की  दादी मोहन को रोज रात कहानियां सुनाया करती थी जिनकी उम्र लगभग 70- 75 वर्ष की होगी।एक रात दादी ने मोहन को कुछ अपनी दास्तान सुनाई।जिसमें उनकी बहन का विवाह जयचंद्र के साथ एक धनाढ्य परिवार में किया था। किसी भयंकर बीमारी के चलते उनकी बहन का निधन हो जाता था। उसी से दोनों के परिवारों में आना जाना भी बंद था। कुछ समय गुजरा एक दिन जयचंद्र उस टूटे हुए रिश्ते को जोड़ने का प्रयास किया।हालांकि उनकी कोशिश कामयाब होती है ।दो परिवार फिर से एक हो जाते है।दोनों परिवारों में खुशी की लहर दौड़ जाती है।एक परिवार की खुशी का इजाफा तो बच्चो को देखने को मिलता है। कुछ वर्ष बीतने के बाद मोहन जब जयचंद्र के घर गया वह घर के अन्य सदस्यों से मुलाकात करता है। जिनमे से एक मोहन का इतना खास बन जाएगा ये बात शायद मोहन को भी नहीं मालूम थी

उनके पड़ोस में रहने वाले लड़की जिसका नाम था राधा वाह झील सी नीली बड़ी आंखे जैसे मानो एक दूसरे से बात कर रही हो सुंदरता की बात करे तो उसे चांद का टुकड़ा कहा जाए ,तो उसका अपमान सा लगता है ।बल्कि ये कहा जाए चांद खुद उसका टुकड़ा है

स्वाभाव- हाय बस!! इसी पर तो मर मिटा था मोहन बहुत ही सरस स्वभाव की नायिका। जहां विद्वता की बात की जाए तो दोनों की टक्कर बराबरी की होती थी। कभी - कभी नायक को चकित कर देते वाली तर्क कर देती थी नायिका ,अगर एक लाइन में कहा जाए तो रूप में मां शक्ति बुद्धि में मां सरस्वती थी। नायक क्रॉस तर्क करके स्वयं को बचा लेता था

मोहन अपनी दादी से कहानियां सुनता था।इसलिए उसे बहुत सी कहानियां याद भी थी। वाह मोहन की बात बड़े ध्यान से सुनती थी अब मोहन उसे कविताएं  शायरियां भी सुनाता । दोनों एक दूसरे की बात बड़े ही ध्यान से सुनते थे।अब वो जाने अनजाने एक पवित्र रिश्ते में जुड़ते जा रहे थे।इस तरह दिनों परिवारों में आना जाना भी होता रहा।राधा से मिलने मोहन कई बार उसके घर गया पर राधा मोहन के घर एक बार भी उसके घर नहीं गई न जाने क्यों मोहन से वो एक बहाना बना दिया जाता था कभी - कभी फोन पे उसकी बेरुखी की बाते सुनकर मोहन के मन में हलचल मचा देती थी एक गुल्थी थी जिसे मोहन न सुलझा पा रहा था। ये बेरुखी की बाते मोहन को परेशान कर दिया करती थी।अगर प्रेम है तो इस तरह की दूरियां क्यों??

एक राज था जिसे मोहन न समझ पा रहा था।लेकिन हर बात सभी नहीं समझ सकते।कुछ तो चल रहा था राधा के मन में?

राधा मोहन के प्रति इतनी दिलचस्पी होने के बावजूद मोहन को ये  राधा की बेरुखी अच्छी न लगी। जब मोहन को लगा कि उसके रिश्ते वाले उस देखने के लिए  आने लगे।इस बात को सुनकर उसे पाने की सारी अभिलाषाएं त्याग कर कुछ दूरी बनाना उचित समझा क्योंकि  अब वो समझ चुका था कि शादी करने का कोई विकल्प उसके पास न था।सिर्फ एक ही विकल्प था उससे दूर हो जाना ही उचित विकल्प था  उन दोनों के लिये।कुछ फर्क जरूर पड़ा ।धीरे धीरे फोन पे बाते भी कम होने लगी अब वह नौकरी के सिलसिले में दिल्ली आ गया और उसने एक प्राईवेट कम्पनी में जॉब कर ली ।लेकिन कहते हैं अगर सच्चा प्रेम  किसी को हो जाए तो फिर चाहे कितनी भी दूर चले जाओ उसकी यादें पीछा नहीं छोड़ती वो पकड़ कर रखती हैं जैसे पुलिस के हाथ लगा सबूत फिर अपराधी चाहे जहां छुपके के बैठे वो खोज ही लेती हैं।मोहन उसे भूलने की कोशिश की पर भूल न सका। मोहन एक ही महीने में नौकरी छोड़ कर घर आ गया। वह राधा से मिलने को सोच ही रहा था, तभी अचानक उसको  दिल को दुखती हुई घटना की जानकारी मिली हां उसकी शादी थी महज १५ दिन बाद

कहते है जिसके बिछड़ने में आंसू न निकले उसके हृदय में कितनी पीड़ा होती है यह वो ही बता सकता है या शायद वो भी नहीं क्योंकि कुछ चीज़े सिर्फ महसूस कि का सकती है।ये लफ्जो से बयां नहीं होती बस महसूस  की जा सकती हैं

कैसे देखेगा उसे और की दुल्हन होते हुए यह सब सोचकर मोहन उसकी शादी में न जाने का फैसला किया अतः उसने राधा को फोन करके कह दिया कि वो उसकी शादी में नहीं आ पाएगा

यह बाद सुनकर राधा की जैसे शैली ही बदल गई वह बोली क्यों नहीं आ सकते

क्योंकि मुझे छुट्टी नहीं मिल रही

                          मोहन ने कहा.........

 

बस यही एक बहाना था पास

 

राधा ने फिर कहा - मुझे तुमसे ये उम्मीद कतई न थी

 मोहन ने कहा- मुझे किसकी जरूरत

 राधा ने फिर कहा - किसी को हो या न हो हमे तो है और हम तुमसे कुछ कहना चाहती थी। खैर छोड़ो

    (एक गहरी सांस लेकर भावुक हो गईं)

तभी मोहन बोला - बोलो क्या बोलना था

राधा ने कहा- छोड़ो जो आज तक नहीं कहा अब कहने से क्या फायदा।

तभी अचानक फोन कट जाता है,वो कल जिस दिन उसकी बारात थी उस दिन भी मोहन ने फोन किया पर उसे कहा फुरसत थी। मोहन से बात करने के लिए  लेकिन  उसके मन में कुछ तो चल रहा था।कुछ तो कहना चाह रही थी पर आखिर क्या??

 

आखिर क्या था जो अभी तक अपने मन मे बसाए हुए थी

कहीं वो प्यार का इज़हार तो नहीं करना चाहती थी

अगर ऐसा था कहा क्यों नहीं क्यों इतने दिनों तक छिपाए थे

फिर अब इन बातों का अब मतलब क्या? फिर क्यों उसके घर नहीं  आयी ।फिर बातो में इतनी बेरुखी क्यों?  आखिर क्या चल रहा था उसके मन में

          ये सारे प्रश्न मोहन के ह्रदय को झकझोर रहे थे।

अब राधा की शादी हो गई थी हां शायद मार्च का महीना था वो चली गई वो बन गई किसी और की दुल्हनिया ।

सुबह मोहन जागता है तब उसे महसूस होता है

जैसे कोई तूफान किसी की जिंदगी उजाड़ के चला जाए

वह जब सुबह जागा तो उसकी दुनिया उजड़ चुकी हो कुछ भी तो नहीं बचा था उसके पास। समय बीता रंगो की मस्ती से सराबोर रंगो का त्यौहार आ गया।उसकी यादों की बौछार अभी भी मोहन के पास आ रही थी। मोहन ने राधा से रंग खेलने का वादा भी किया था पर पहुंच न पाया ।अब मोहन के पास बचा ही क्या था उसकी यादों के सिवा मोहन ने सिर्फ एक ही होली खेली वी थी विरह की होली ।

 

तभी उसे मालूम पड़ता है कि उसकी शादी किसी अच्छे खानदान में हुई है उन लोगो का स्वभाव भी अच्छा है

मोहन ईश्वर को धन्यवाद देता है और ईश्वर से प्रार्थना करता कि उसे इस विश्व की महानतम खुशी हासिल हो

 

 

 


 

 

अनोखा बंधन भाग 2

 

कुछ समय बाद जब राधा वापस ससुराल से मायके आई

तब उसने मोहन को फोन किया और कहा मै तुमसे एक बार मिलना चाहती हूं।और वह राधा के अनुरोध पर  उससे मिलने जब उसके गांव गया जब वह राधा से मिला।जैसे ही उसको देखा वह स्तम्भ सा खड़ा  रह गया।जैसे कोई घर तूफान में खंडहर में तब्दील हो गया हो,और फिर काफी समय बाद अचानक दिख जाए बिल्कुल वैसी ही स्थिति थी मोहन की बहुत कुछ बदल गया था अब। जिसको अपनी पत्नी बनाने का ख़्वाब देखने वाला आज वो किसी और की पत्नी बन चुकी थी।

कुछ दिन व्यतीत किए मोहन ने राधा के घर

 

एक शाम एकांत में राधा ने मोहन का हाथ पकड़ कर बोली -

मोहन दुनिया चाहे जो भी कह ले दुनिया ने तुम्हारी बातो पर विश्वास किया हो।पर ना जाने मुझे ऐसा  क्यों  लगा रहा है कि बारात में छुट्टी न मिलने का सिर्फ एक बहाना था ।

मोहन हमने तुम्हारे हर बात पे यकीं किया पर इस बात पे यकीं करने को जी नहीं करता।

         प्लीज हमसे कुछ छुपाए नहीं...

देखिए मोहन जी व्यक्ति चाहे जितने भी झूठ  क्यों न बोले

उसकी आंखे कभी भी झूठ नहीं बोलती और आंखो को पढ़ने का तरीका मुझे बहुत अच्छी तरह से आता है।झूठ पढ़ने का तरीका मैंने खुद तुम्हीं से सीखा है।

 

बोलते बोलते  राधा का गला रूंध गया अभी तक जो पानी रोक रखा था , वह बहने लगा। जैसे दो बड़ी सुराही से पानी टपक रहा हो।

 

तब मोहन ने कहा- आज तक आप झूठ पर झूठ बोलती रही और आज मुझे एक झूठ बोलना पड़ा तो आपको पीड़ा होने लगी।क्या तुम जानती हो एक झूठ सामने वाले व्यक्ति के साथ विश्वासघात होता है।और तुमने कई बार विश्वासघात किया है मेरे साथ, हमे तुम्हे सच जरूर बताएंगे  लेकिन पहले तुम्हे हमे कई प्रश्नों के उत्तर देने होंगे

  

 


 

 

      अनोखा बंधन पार्ट 3

 

राधा सहमत हो जाती हैं मोहन प्रश्न करता है-,,,

 

राधा जी क्या आप बता सकती हैं आप हमारे घर न आने का कारण क्या था  ।और हां तुम अपनी शादी में कुछ कहना चाह रही थी वह बात अभी तक अधूरी है बताओ वो बात अधूरी क्या थी।क्या कहना चाह रही थी।

इन प्रश्नों ने मानो राधा के पैरो तले जमीन खसक गयी।

जो बाते आज तक राज थी वो उस राज से पर्दा कैसे उठाएंगी वो बाते जिनका अब कोई निष्कर्ष नहीं उन बातो का जिनका अब कोई मतलब नही।ऐसा लग रहा था जैसे मानो मोहन ने भी सच जनाने की जिद पकड़ रखी हो।

(और क्यों न हो एक आधी अधूरी बात इंसान को परेशान कर देती हैं।जब तक उस बात का हल न निकले  उसका सच जानना भी स्वाभिक ही था।)

लेकिन राधा नहीं चाहती थी। मोहन  किंचित मात्र भी

 परेशान हो। अब राधा भी दोराहे पर खड़ी थी,अब न ही वो उसे परेशान करना चाहती थी,और न वह अब झूठ बोलना चाहती थी।

 अब सारा वृतांत राधा मोहन को सुनती हैं-

 

" मोहन हमने जब से होश सम्हाला है तब से मैंने आपको अपने पति रूप में देखा था,लेकिन जब मैंने अपने पिता से इस विषय मे बात की तभी एक जोरदार थप्पड़ ने हमे ये सीखा दिया गया। कि हम ऐसे बंधनों मै बंधे है जिसे तोड़कर कर जाना बहुत बड़ा गुनाह है। लेकिन दोस्त तुम्हे ये शिकायत जरूर रही होगी कि मै आपके घर कभी नहीं गयी

क्योंकि मै नहीं चाहती थी कि तुम भी मेरी तरह हमारे प्यार के बंधनों में पडो और तुम अपने लक्ष्य से भटक जाओ

क्योंकि मै जानती थी तुम उभरते हुए सूर्य के समान हो।

ये बाते तुम्हे अपने लक्ष्य से भटका सकती थी।इसलिए मै तुमसे बेरुखी से बाते किया करती थीं लेकिन मै यह भी नहीं चाहती थी। कि मै तुम्हारे नफरत का शिकार बन जाऊ

मैंने इस बात को विष की तरह पान किया ,शायद विष भी इतना कड़वा नहीं होगा।

 

 

 


 

 

अनोखा बंधन भाग 4

 

अभी तक आपने पढ़ा कि इधर राधा की शादी हो जाती जब राधा अपनी ससुराल से मायके आती है।तो राधा के अनुरोध पे मोहन भी उससे मिलने जाता है राधा मोहन की बात होती है  अब आगे ,,,,,,,,,

राधा - इसलिए मैंने कभी भी तुमसे प्रेम का इजहार नहीं किया।

हमने तुम्हारे द्वारा ही सुना था कि," एक स्त्री का स्वभाव होता है कि वह दूसरे घर जाकर अपने प्रेमी को भूल जाती हैं।"

लेकिन मुझे लगता है ,मै उन स्त्रियों से अलग हूं।मै तुम्हे भूल नहीं पाई हूं और न ही शायद भूल पाऊंगी।अगर तुम्हे फिर भी लगता है कि मेरा कोई अपराध है ,तो मै हर सजा को  तैयार हूं।

तभी बोलते बोलते राधा की आंसुओ की धार निकल पड़ी तभी मोहन उसके आंसुओ को साफ कर उसे अपने गले से लगा लेता है

मोहन बोला

राधा तू धन्य है तेरा त्याग सर्वपारी है

मै तेरी इच्छा को पूरी करूंगा मै तुझे अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार करता हूं। क्योंकि रिश्ता विचारो की देन है। अगर

हर बार की तरह अगर इस बार भी साथ मिला तो हम अनोखा  रिश्ता बनाएंगे।एक अनोखा प्यार करेंगे। जो किसी ने न किया हो। क्युकी रिश्ते दूर रह कर निभाए जाते है और बंधन दूर रह कर भी बंधन का काम करते हैं।

राधा ने प्रश्न किया यह सब कैसे होगा ?

 

अब तुम्हे दो पति मिलेंगे एक जिससे तुमने शादी की दूसरा जिससे तुमने प्रेम किया।मै तुम्हे पत्नी के रूप में चाहता रहूंगा। लेकिन ये बाते गुप्त रखनी होगी ताकि दोनों के घर में शांति रह सके ।अब हम कभी मिलेंगे नहीं ।लेकिन जब कभी तुम्हे हमारी जरूरत हो तो बिना किसी संकोच के हमारे पास चले आना। मै तुम्हारी हर सम्भव मदद करेंगे।

और पता है तुम हमारे भाग्य में न होते हुए भी हो

राधा अब सारी बाते समझ चुकी थी ।उसने मोहन का फैसला मान लिया था।

 

अगली सुबह जब मोहन की नीद खुली सामने राधा थी।उसके चेहरे पे एक  मधुरिम सी मुस्कान थी,हाथ में चाय की प्याली लिए वाह सामने खड़ी थी।  धूप की पहली किरण उसके बदन को निखार रही थी।धूप की पहली किरण अच्छी लगती है।

ऐसा लग रहा था जैसे मानो रात में एक भयंकर तूफान गुजर  गया हो और मौसम  सुहाना हो गया हो।

मोहन ने चाय पी और वापस घर आ गया

बस इतनी सी है कहानी

 

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