रहस्यमई इमारत
(एक प्रेम कथा)
एक आलीशान मकान की पार्किंग में बना एक ऑफिस
उस इमारत का संरक्षक था अमित कभी ये इमारत लोगो से भरी रहती है थी लेकिन आज वही इमारत सुनसान सी नजर आती है। उस इमारत में अमित के अलावा और वहां पे नही रहता क्योंकि आज से पांच वर्ष पूर्व एक लड़की इसी इमारत की पांचवी मंजिल से गिर पड़ी थी। उस लड़की वही ऑन स्पॉट डेथ हो गई थी। तभी से उस इलाके में डर का माहौल है आस पास के लोग भी उस जगह से पलायन कर चुके है।कहते है आज भी उस लड़की की आत्मा वहीं उस इमारत में निवास करती है।जो उस अमित को छोड़कर और किसी को रहने नही देती और हो भी क्यों न वो सबसे पहले उसी को तो मिली थी।कितना अजीब सा रिश्ता बन गया था, उन दोनो के बीच जब अजीत सर ने अपना ऑफिस खोला था शाम को अमित को ऑफिस की चाभी देकर कहा कि कल सुबह से एक लड़की आयेगी उसे चाभी दे देना।
कितनी अजीब थी वह सुबह जब अमित से उसकी पहली मुलाकात हुई थी।
आह कितना सौम्य था उसका चेहरा !
वो चमकदार तेज आंखे नेत्रों की धार ऐसी की की कटारी की धार भी कम पड़ जाए
चेहरे से काफी मैच्योर (परिपक्व) दिखने वाली लड़की लगता था जीवन की अच्छी खासी कठिनाइयों से निकल कर एक अच्छा अनुभव प्राप्त किया हो ।कहते एक चुलबुली लड़की से कही ज्यादा बेहतर होती है एक मैच्योर लड़की ऐसी लड़की हर मुकाम पे साथ देती है ।क्योंकि वो अच्छा बुरा सब देख चुकी होती है।
एक हल्की सी मुस्कान के साथ पूछा अमित से
लड़की - सर चाभी आपको को दे गए है क्या ??
अमित - जी हां मेरे पास है चाभी ये लीजिए,,,,
लड़की चाबी लेकर ऑफिस जाने लगी कुछ दूर जाने के बाद वो मुड़ कर अमित को थैंक्स बोला अमित ने भी मुस्कान के साथ स्वीकार कर लिया।
एक ही नजर में दिल दे बैठा था अमित।
कुछ देर बाद जब लड़की ऑफिस से बाहर निकली और अमित को देखकर असहज होकर कहा
लड़की - मुझे चाभी मिल गई है अब आप जा सकते है
अमित एक व्यंग भरी मुस्कान के साथ कहा ,,,
अमित - अब आना जाना तुम्हारा होगा मेरा नही
लड़की - क्यों??
अमित - क्योंकि मैं यही रहता हूं मैं इस बिल्डिंग का संरक्षक हूं अगर कोई दिक्कत हो तो बेधड़क बता देना आपकी सेवा में हमेशा हाजिर हूं । वैसे आपका नाम क्या है??
लड़की - दीप्ति
अमित - नाइस नेम
मेरा नाम अमित है
दीप्ति - आपका नाम भी अच्छा है
इतना कह कर वो अपने रूम में चला गया लड़की भी अपना काम करने लगी
आज अमित हल्का सा तनाव महसूस करने लगा,वो प्यार करने लगा था उससे पर अपनी बात इजहार कैसे करे?
प्रेम में सबसे खतरनाक वही होता है जब जिसको हम प्यार करते है। उसको ये बात बताना कि हम उससे प्यार करते है।फिर अमित के लिए बहुत ही मुश्किल था जब वो अपने साथ पढ़ने वाली अनन्या से अपनी बात न कह सका जबकि वो बचपन से उसके साथ पढ़ रही थी खूब समय था उसके पास ।फिर इसका क्या भरोसा ये कब तब साथ रहेगी,वैसे कहा जाए तो चेहरे से व्यक्ति का स्वभाव का पता नही लागया जा सकता है लेकिन अगर अच्छे से पढ़ने वाला हो तो चेहरे से ही स्वभाव का पता लगाया जा सकता है।
अगली सुबह,,,अमित चाय लेकर दीप्ति के पास गया
अमित - ये चाय लीजिए मैडम,मैने बनाई है
दीप्ति - अरे इसकी क्या जरूरत थी
अमित - अकेले पीने से अच्छा साथ में पिए
कही तक सही भी है जब आप अपने चाहने वाले के साथ चाय पीते है तो चाय का स्वाद और भी बढ़ जाता है।
शेष आगे ,,,,,,,
रहस्यमई इमारत
एक प्रेम कथा (भाग 2)
दोस्तो अभी तक आपने पढ़ा एक आलीशान मकान जहां कोई नही रहता सिर्फ अमित को छोड़कर ये कहानी जुड़ी भी उसी से लेकिन केवल अमित को छोड़कर ही क्यों ?? यही तो रहस्य है ।
इस कहानी में दीप्ति नाम की एक लड़की से अमित की मुलाकात हुई थीं।अमित उसे पसंद करने लगा पर इजहार करने की सोच रहा अब आगे ,,,,,,
अगली सुबह ,,,
दीप्ति - अरे अमित मेरा फोन का रिचार्ज खत्म हो गया जरा पास वाली दुकान से करवा दो प्लीज ये लो मैने इस पर्चे पे अपना नंबर लिख दिया और ये पैसे लो
अमित - ठीक है लाओ
अमित रिचार्ज की पर्ची लेकर निकल जाता है अब जो लड़के को करना चाहिए उसने सबसे पहले इस नंबर को अपने फोन में सेव किया फिर रिचार्ज कराया कही न कही ये गलत था। पर करना तो था ही नंबर सेव करने से भी बात कहां बनती है।बात करने की हिमत भी तो होनी चाहिए। अगर वो फोन करके ये बताए की उसने उसका नंबर चुपके से ले लिया है तो जो भी इज्जत सम्मान है वो तो मिट्टी में मिल जायेगा अभी फिलहाल चुप रहने में भलाई थी।
अमित हर रोज मिलता था घंटो बात होती थी पर हर रोज सोचता था। इजहार करने की सारी हिम्मत उसके सामने धरी की धरी रह जाती थी
एक शाम उसके फोन की रिंग बजी देखा दीप्ति की कॉल वो आश्चर्य से फोन को उठाया
दीप्ति (फोन पे) हेल्लो अमित मैं दीप्ति बोल रही हूं ।
अमित - हां बोलो क्या बात है
दीप्ति - कल किसी पल्मबर को बोला देना मोटर सही करानी है आज वो गड़बड़ कर रही मैं तुम्हे वही बताने वाली थी पर मुझे ध्यान नहीं रहा अभी मैने हिमांशु सर से तुम्हारा नंबर लिया था
अमित - ओके ठीक है मैं अभी बात करता हूं।
रहस्यमई इमारत
एक प्रेम कथा भाग 3
अगली सुबह अमित ने पलंबर बुला के मोटर सही करा दी थी ।
एक दिन अमित दीप्ति से बात करते हुए पूछा ।
अमित - तुमने किसी से प्रेम किया था
दीप्ति - हां था एक लड़का मेरे कॉलेज में जिससे मैं प्रेम करती थी ,लेकिन मैने उससे कभी भी कहा नही समय बदला हम लोगो की क्लास भी पूरी हो गई और हम दोनो जुदा हो गए। तब से वो कभी हमे मिला ही नहीं ।
एक हल्की सी मुस्कान के साथ खैर छोड़ो तुम बताओ तुम तो काफी गंभीर दिखते हो। केवल जरूरी बातों का ही जवाब देते हो, वैसे तुम्हारी गंभीरता हमे अच्छी लगती है ज्यादा बकबक करने वाले लड़के हमे अच्छे नहीं लगते है।।
अमित - हां कोई थी पर अब कुछ नहीं है। मेरे साथ बिल्कुल आपकी जैसी ही घटना घटी। मैने भी अपने गांव में रहने वाली लड़की से प्रेम किया था। मैने बड़ी मुश्किल से उससे प्रेम का इजहार किया था। पर उसने कहा कि हम दोनो दोस्त ही अच्छे है। तब से किसी से हिम्मत नही हुई इजहार करने की।एक तो हम लड़के बड़ी मुश्किल से हिम्मत करके किसी से अपने प्रेम का इजहार कर पाते है।फिर वो न कर दे तो कमी खल ही जाती है।पिछले साल उसकी शादी हो गई है अब कोई मतलब नही उससे मेरा।पर अब न जाने क्यों किसी और से प्रेम का इजहार करने का मन कर रहा है।
दीप्ति - किससे?? कौन है वो ??
अमित है कोई
दीप्ति - अरे बताओ तो सही
अमित - बताओ तो सही तुम्हे मेरी कसम क्या मुझे इतना भी हक नहीं।
अमित - अबकी बार अमित दिल के जज्बात नही रोक सका उसने बोल दिया "तुमसे "
इतना बोलते के साथ अमित की धडकने तेज हो गई थी जो सामने वाले को सुनाई दे रहे थी
दीप्ति (झल्लाके ) तुम पागल हो क्या तुम्हे पता है तुम क्या कह रहे हो तुम नशा तो नही करते हो। मैने ऐसा कुछ तुम्हारे बारे में नहीं सोचा। मुझे नहीं पता था तुम ऐसे हो । जाओ अपने रूम में अब कभी भी मुझसे बात मत करना।
अमित - स…..सॉरी
दीप्ति - क्या सॉरी गलती करने से पहले सोचना था। देखो अमित इससे पहले कुछ गलत हो जाए मैं अपना आपा खो दूं ।मुझे अकेला छोड़ दो प्लीज!....
रहस्यमई इमारत
एक प्रेम कथा ( भाग 4)
अमित (गुस्से में ) - मैने क्या गलत किया सब को अपने दिल की बात कहने का अधिकार है। मैने उस लड़की से भी अपनी बात कही थी ,उसे मैं नहीं पसंद था। उसने मना कर दिया मैंने भी उसकी बात मानी। तुम भी मना कर सकती थी। सोचो अगर तुम्हे भी हमसे प्यार होता और तुम भी मुझसे इजहार करती।अगर मैं ऐसा करता जैसा तुम कर रही हो तब क्या करती तुम??
प्रेम का इजहार करने वाला प्रेमी आवारा नही होता। अरे गलत तो तब होता जब हम तुम्हारे मना करने के बाद भी तुम्हारे पीछे पड़ते।फिर मैंने तो मना किया था तुम्हे बताने को लेकिन तुमने ही जिद की थी जानने की,वो भी अपनी कसम दिला के ।
और जाने से पहले एक बात बता दे मैडम हम आशिक जरूर कुत्ता नही जरा तमीज से बात करो ।
इतना कहकर अमित अपने रूम में चला गया दीप्ति भी उसे देखती रही,,,,,,,,
अगली सुबह
अमित नीचे पार्किंग में आया दोनो बगल बचा के निकल गए। दोनो की आपस में कोई बात नही हुई। जैसे कोई अजनबी पथिक रास्ते से गुजर जाते है ठीक उसी प्रकार वो दोनो अपने अपने रास्ते गुजर गए । लेकिन आज भी दोनो की एक चीज सेम थी , वो थी आंखे।
दोनो की सुर्ख शायद दोनो सो नही पाए
अमित ठेकेदार से बात करने लगा और उन्हे काम समझाकर जैसे ही पीछे मुड़ा देखा पीछे दीप्ति खड़ी थी जैसे वो उसका पीछे मुड़ने का इंतजार कर रही हो।
जैसे ही अमित दीप्ति को नजरंदाज करके आगे बढ़ा पीछे से दीप्ति की आवाज सुनाई दी।
दीप्ति - अभी भी नाराज हो क्या। सॉरी कल के बर्ताव के लिये मैं शर्मिंदा हूं।
अमित - शर्मिंदा ! वो किस लिए तुम्हे जो कहना था तुमने कह दिया हमे जो कहना था हमने कह दिया। हिसाब बराबर बर्ताव तुम्हारा भी सही नही था तो बर्ताव मेरा भी सही नहीं था। अब तुम मुझे माफ करो
दीप्ति - लगता है सारी रात तुम सो नही पाए हो आंखे देखो तो कितनी सुर्ख है मेरी बाते बहुत खल गई तुम्हे
अमित - आंखे तो तुम्हारी भी सुर्ख है
दीप्ति - अरे कल मेरी आंख में कीड़ा चला गया था चलो आज तुम्हें हम चाय पिला के लाते हैं। टपरी से बहुत मजा आएगा।
अमित नही ,नही
दीप्ति अमित का हाथ खींचते हुए ले गई अमित न चाहते हुए भी जाना पड़ा ।
पुरुष कितना भी बैरागी क्यों ना हो। माया अगर अपनी जिद पर आ जाए तो वो हार ही जाता है।
दीप्ति अमित का हाथ अपने कंधे पे रख लिया
दीप्ति (बड़ी नजाकत से ) पता है अमित तुम बिलकुल बुद्धू हो मेरी जगह कोई और लड़की होती न तो तुम्हें पीट देती है तुम्हें तो बिल्कुल इजहार करना ही नहीं आया। डायरेक्ट कोई लड़की से इजहार करता है भला!
मुझे तो बिल्कुल ऐसी उम्मीद नहीं थी कि तुम इस तरह डायरेक्ट इजहार कर दोगे तभी मुझे गुस्सा आ गया था
पहले प्यार की फीलिंग जगानी पड़ती है तब इजहार होता हैं।
अमित - देखो! तुम्हें तो पता है- मुझे घुमा फिरा कर बातें करना पसंद नहीं है । वह आशिक और होते होंगे जो ऐसी बातें करते हैं मैं उन सब से अलग हूं।
दीप्ति - खैर छोड़ो कल रात मैंने तुम्हारे बारे में कुछ सोचा तुम मुझे अच्छे लगे हो अमित मुझे तुम्हारा प्रस्ताव मंजूर है लेकिन याद रहे किसी प्रकार का धोखा हमे मंजूर नहीं।
अमित क्या - मैं तुम्हें धोखेबाज लगता हूं! प्यार में सबसे बड़ी चीज होती विश्वास अगर विश्वास ही नहीं तो फिर प्यार नहीं टिकता है। मैं धोखेबाज नहीं हूं,यहां रूह से रूह का नाता होता है हम दोनो का फिर हमे गर्लफ्रेंड बॉयफ्रेंड वाला रिश्ता नहीं चाहिए। हम सीधे एक महीने के बाद शादी करेंगे। धोखेबाजी का मतलब ही नहीं।
दीप्ति - अच्छा जी
चलो ठीक है। सब कर पाओगे इतनी जल्दी
अमित - हां हो जायेगा चलो चाय पीके ऑफिस चलते है ।
दोनो चाय पीके वापस आ जाते है । कहते है कितना भी प्रयास कर लो कितने भी सपने सजा लो लेकिन जो होना होता है वो होकर रहता है।
एक दिन अमित पांचवी मंजिल की छत पे काम ठेकेदार से बात कर रहा है कुछ और लेबर लोग भी कुछ कम शुरू होने वाला था वही काम समझा रहा था तभी अचानक दीप्ति भी पहुंच गई
अमित - दीप्ति तुम यहां ।
दीप्ति - अरे आज तुम नीचे दिखे नही काफी देर मैं तुम्हारा नीचे इंतजार कर रही थी तुम्हे फोन भी किया पर न तो फोन उठा रहे हो न ही कोई जवाब
अमित - हां वो नीचे चार्जिंग पर है। तुम जाओ यहां पे काम चल रहा है मैं अभी आता हूं
दीप्ति अमित को नजरंदाज करके आगे बढ़ी वाउ कितना अच्छा लगता है न यहां से कितना अच्छा व्यू आ रहा है।तभी एक जोरदार आवाज से सब चौक गए धड़ाम
सभी लोगो ने जैसे देखा दीप्ति पांचवी मंजिल से गिर चुकी थी
अमित समेत सभी लोग नीचे दौड़ के पहुंचे नीचे पहुंच के देखा दीप्ति सर से काफी रक्त प्रवाह हो चुका था। अमित उसे निजी नर्सिंग होम में ले गया। लेकिन दीप्ति की मौत हो चुकी थी। डॉक्टर ने उसे मृत घोषित कर दिया था।पुलिस को सूचना देकर पचनामा करा के उसके घर को भेज दिया गया।
एक पल में ही सबकुछ खत्म हो गया वो सपने वो इरादे अमित के भी आंसू सूख चुके थे। लेकिन वो जख्म जो जिंदगी ने दिए थे। वो शायद कभी भी नहीं भर पायेंगे
अब उसकी मौत हुए 3 हो गए थे।आसपास के लोगो से आवाजे आना चालू हो गई थी।लोग तंत्र मंत्र भी करा रहे थे पर कोई फायदा नही था। उन लोगो का कहना ये वही लड़की है जो अभी मर गई थी ।यानी दीप्ति जो सबको परेशान कर रही अंत में सभी लोगो ने पलायन कर दिया
एक रात अमित को दीप्ति की छाया दिखी
कैसे हो अमित मुझे बहुत दुख मैं तुम्हारे साथ नही रह पाई काश उस दिन मैं तुम्हारी बात मान लिया होता मेरी एक नासमझी मेरी मौत का कारण बनी लेकिन चिंता न करो मैं तुम्हारे साथ हूं मैं हमेशा तुम्हारे साथ रहूंगी तुम मुझे हर हवा के और प्रकृति में महसूस करोगे मुझे ही पाओगे। और किसी को मैं यहां टिकने नहीं दूंगी।क्योंकि मैने कहा था हमारा रूह का साथ है रुह तक रहेगा ।l
अमित ने भी हां में सर हिला दिया जैसे मानो उसे स्वीकृति दे दी हो।
तब से अभी तक कहते है वहां अब कोई नही जाता अमित और दीप्ति की रोज बात होती है।
बस इतनी सी थी कहानी आपको कैसी लगी ये आपकी समीक्षा का इंतजार है
रचनाकार
कवि भरत मिश्रा
सफीपुर जिला उन्नाव । उत्तर प्रदेश