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अपनापन

मिस्टर खन्ना कुछ ढूंढ रहेथे।
अचानक उनकी नजर दीवार पर तस्वीर पर पड़ी तस्वीर को देखकर
अपने चश्मे को साप करते हुए अपने आप से बात कर रहे थे।
मन में कहीं ग्लानि, कहीं खुशी महसूस कर रहे थे। ग्लानि इसबात की थी कि 70 साल की उम्र में उसे अकेला रहना पड़ रहा है। खुशी से बात की थी कि उसका परिवार आज एक प्रतिष्ठित और खुशहाल जीवन जी रहा है।

एक सागर की लहरों की तरह अचानक बचपन से लेकर आज तक के जीवन का सफर उसकी आंखों के सामने पानी की सफेद चादर की तरह तैरने लगा। बचपन गरीबी में बीता लेकिन मिस्टर खन्ना के पिता जी दिल के बड़े अमीर थे। बस उनका एक ही सपना था किसी तरह उसका बेटा अच्छी सरकारी नौकरी हासिल कर सके। मिस्टर खन्ना का बचपन का नाम अजय था प्यार से पिताजी उसे अज्जू के नाम से पुकारते थे अज्जू पढ़ाई मैं बहुत होशियार था। वह अपने पिताजी के खेती के काम में भी हाथ बटाता था। बचपन से ही वह धार्मिक प्रवृत्ति का था। सुबह -शाम भगवान की पूजा अर्चना करता और स्कूल में जाकर खूब पढ़ाई में ध्यान लगाता था। सभी अध्यापक उसकी इस प्रगति से बहुत खुश थे। उस स्कूल में सभी जाति के बच्चे पढ़ने जाते थे। अज्जू सभी का चहेता था। अज्जू कक्षा दसवीं में अपने आस-पास के गांव में प्रथम स्थान प्राप्त किया तो उसके पिताजी को बहुत खुशी हुई। दसवीं के बाद अब उसके सामने विषय चुनने का ऑप्शन था लेकिन यह ऑप्शन औरअज्जू की आर्थिक स्थितिया अलग-अलग थे फिर भी हिम्मत से
बहुत पहले उन्होंने विज्ञान के विषय पढ़ाई करना चाही ।पर स्कूल घर से 40 किलोमीटर दूर होने की वजह से शहर में रहने का खर्चा उठाने में पिताजी असमर्थ थे अतः अज्जू ने गांव के पास में अभी शुरू है 12वीं तक के स्कूल में कला संकाय में दाखिला लिया और उसका सपना था कि कॉलेज मैं असिस्टेंट प्रोफेसर बनने का ।

अज्जू ने जी लगाकर मेहनत की और कक्षा 12 में स्कूल में प्रथम स्थान प्राप्त किया आसपास के सभी गांव में अज्जू के चर्चे होने लगे। अज्जू के पिताजी बहुत खुश थे। अब सवाल था की बच्चे को शहर भेजा जाए या फिर गांव से ही कॉलेज की पढ़ाई की जाए लेकिन आज भी वहीं आर्थिक परिस्थिति सामने आ रही थी अतः कॉलेज में दाखिला लेने के बाद अज्जू ने अपने पिताजी की साइकिल से कॉलेज जाना शुरू किया जब अज्जू कॉलेज जाता तो पिताजी के द्वारा खेतों में उपजाए गई सब्जियों को ले जाकर सब्जी मंडी में बेचकर फिर कॉलेज जाता। पिताजी के कहे अनुसार सब्जी बेचकर वह रोज 100 ग्राम जलेबी खाता और बहुत खुश हो जाता और खुशी- खुशी से कॉलेज जाता। कक्षा दसवीं के बाद उसको क्रिकेट खेलने का बहुत बड़ा शौक था कॉलेज। की क्रिकेट टीम में हिस्सा लेना था लेकिन सवाल यह था कि उसे सुबह शाम प्रैक्टिस करने के लिए शहर में रहना होगा अतः उसका यह सपना अधूरा रह गया। उसका मित्र क्रिकेट टीम का कैप्टन था। अब अज्जू ने कॉलेज में एनसीसी और स्काउट के रोवर ग्रुप में तथा एन. एस. एस के सीवरो में हिस्सा लिया और वहां के बहुत सारे प्रमाण पत्र प्राप्त किए। इन सभी गतिविधियों से अज्जू के जीवन में एक अच्छे व्यक्तित्व का विकास हुआ वह वह अपने गांव, शहर और देश के विषय में सोचने लगा।

स्नातक उन्होंने प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण की । पिताजी बहुत खुश थे।
आगे की पढ़ाई के लिए पिताजी ने अज्जू को शहर भेजने के लिए कमर कस ली और आखिरकार उसका दाखिला विश्वविद्यालय में हो गया।
अब अज्जू के ऊपर बहुत बड़ा दबाव था ।एक खुशी थी कि वह यहां आकर असिस्टेंट प्रोफेसर बनने के सपने को पूरा कर सकेगा ।

लेकिन वक्त को तो कुछ और ही मंजूर था। बेरोजगारी का दबाव सबसे बड़ा दबाव था अज्जू बेरोजगारी को खत्म करने के लिए और भी परीक्षा देने लगा। असिस्टेंट प्रोफेसर के लिए अज्जू ने नेट की योग्यता हासिल कर ली। कॉलेज में साक्षात्कार देता लेकिन निकाल दिया जाता है। इसी दौरान अज्जू के जीवन में काफी उतार-चढ़ाव आए।
इनका का सामना। करते हुए
आखिर अध्यापक के रूप में अज्जू को। सरकारी। नौकरी मिल ही गई उसके परिवार के सभी सदस्य खुश थे। अज्जू ने भी अपने सपनों के महल की जगह मिली है झोपड़ी को से सहर्ष स्वीकार किया और अपने कर्म क्षेत्र में उतर गया। इसी दौरान उनका विवाह एक होनार युक्ति रज्जो से हुआ रज्जो भी सरकारी अध्यापिका थी। दोनों का विवाहित जीवन उतार-चढ़ाव के दौरान और सरकारी नौकरी की बाध्यता तथा आपसी बिछड़न का सामना करते हुए रेल की दो पाटरियो की तरह समानांतर चलता रहा क्योंकि यह दूरियां सरकारी नौकरियों की वजह से थी और यही सरकारी नौकरी दोनों परिवारों की खुशी का आधार थी। अज्जू को रज्जो से पुत्र और पुत्री के रूप में दो संतानों की प्राप्ति हुई दोनों ने कठिन संघर्ष से परिवार का पालन पोषण करते हुए और अपने नौकरी को संभालते हुए बच्चों का पालन पोषण किया।
पत्नी ने पुत्री और पुत्र को चारित्रिक और आदर्श रूप से सत्य और ईमानदारी के। पथ पर चलने की सीख दी और

अच्छी शिक्षा दिलाते हुए दोनों को योग्य बना दिया।
सरकारी नौकरी की वजह से अभी भी दोनों के जीवन में दूरियां बनी हुई थी। और जैसे कि बचपन से ही अज्जू धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे तो परिवार से दूर रहकर वह परमेश्वर में लीन रहते थे। उन्होंने समझ लिया की यही मार्ग नेकी का मार्ग है ।अपने कर्तव्य का पालन करते हुए परमेश्वर का भजन करना ही मोक्ष का मार्ग । अतः वह हर समय परमपिता परमेश्वर के ध्यान में लीन रहने लगे उधर पत्नी अपने बच्चों के साथ खुशी खुशी रहते हुए अपना जीवन यापन कर रही थी।
पुत्र -पुत्री दोनों ही प्रतिष्ठित सरकारी सेवाओं में उच्च पद पर आसीन हुए तथा अंजू और रज्जो की खुशी का कारण बने।
अब अज्जू और रज्जो दोनों ही सरकारी सेवा से निवृत्त हो चुके हैं लेकिन दूरियां अभी भी है ।अज्जू परमपिता परमेश्वर की भक्ति में लीन है और हिमालय की तलहटी में पवित्र नदियों के किनारे प्रकृति की गोद में पक्षियों के कलरव से प्रशिक्षित होकर अपना जीवन यापन कर रहे हैं। अज्जू अक्सर नदी के किनारे चट्टानों पर बैठकर चार-पांच घंटे तक परमेश्वर के ध्यान में लीन रहते हैं इसके बाद पक्षियों और पशुओं के साथ बातचीत करते हुए खाना खिलाते हुए अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं। अब उनका एक ही उद्देश्य है की परमेश्वर के दर्शन और परमपिता परमेश्वर की शरण मिल जाए तो उनका यह जीवन सार्थक हो जाएगा। इन्हीं नदी कितने टीके पास पर्वत की कराओ में एक विशाल गुफा है कहा जाता है कि यहां पर पौराणिक काल में महान मनीषियों ने रहकर परमपिता परमेश्वर की साधना की थी और परमेश्वर के दर्शन कर परमपिता के बैकुंठ लोक में शरण प्राप्त की थी।
अतः अज्जू भी उसी परमेश्वर की शरण में स्थान पाने के लिए रात दिन साधना में रत रहते हैं और मन वचन कर्म से परमपिता परमेश्वर को समर्पित है।
अब प्रकृति ही उसका परिवार है और पशु पक्षी उस परिवार के सदस्य अक्सर अज्जू को अपनी बेटी और मां की याद आ जाती है लेकिन मां भगवती की साधना करके, आराधना करके उस में खो जाता है और मां भगवती मैं ही मां और बेटी के दर्शन हो जाते हैं।
खुशी इस बात की है की आज वह अपने को परम पिता परमेश्वर से जुड़ा हुआ महसूस करते हैं। रात दिन परमेश्वर के एहसास को महसूस करते हैं।

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