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कहानी... डंक

          डंक

      शाम से ही बादल घिर आए थे ,रात होते होते तेज बारिश शुरू हो गई। लग रहा था, मानो बादल फट पड़े हो।और सब  कुछ तबाह हो जाएगा।


मार्चुरी के बाहर ऑफिस के दरवाजे पर खड़े शंकर को लगा कि जैसे आज कुछ अनहोनी होने वाली है।

 रात के करीब दस बजे अस्पताल के बाहर एंबुलेंस की तेज आवाज के साथ पुलिस की गाड़ी का सायरन भी सुनाई दिया।

 अस्पताल में  एक ही वार्ड बॉय ट्रॉली स्ट्रेचर लेकर बाहर निकला। वह अकेला ही था। उधर एंबुलेंस का ड्राइवर जल्दी मचाने लगा 'जल्दी खाली करो मुझे अगला कॉल आ रहा है।'

    वार्ड बॉय ने इधर-उधर देखा जब भीतर से कोई वार्ड बॉय ना आया तो उसने मार्चुरी ऑफिस के दरवाजे पर बाहर खड़े शंकर को आवाज दी।

   'भैया शंकर दो मिनट हाथ लगा दे, पप्पू पता नहीं कहां गायब हो जाता है। कामचोर…..'

    बारिश हो रही थी,  शंकर बारिश में भी दौड़कर हॉस्पिटल के पोर्च तक गया

   एंबुलेंस में बुरी तरह तड़पती हुई एक घायल लड़की थी जिसकी सांसे कुछ पल की मेहमान थी। एंबुलेंस से स्ट्रेचर खींचते समय, जब शंकर एंबुलेंस में चढ़ा तो उस लड़की ने मृत्युभय से मानो बचने के लिए, उसका हाथ कसकर पकड़ लिया। 'भैय्या वही दोनों ही….'  बस, आगे कुछ ही बोल पाती वह बेहोश हो गई। उसके हाथ की पकड़ इतनी मजबूत थी कि, बड़ी मुश्किल से शंकर ने अपना हाथ छुड़ाया। फिर वार्ड बॉय और शंकर उसे स्ट्रेचर पर सीधे इमरजेंसी में ले गए। पर उस लड़की की सांसे तो वहां पहुंचते पहुंचते उखड़ चुकी थी।

 अंदर  डाक्टर साहब ने उसे चेक किया और कहां 'शी इज नो मोर' । उन्होंने उस लड़की के साथ कोई था क्या , इसकी पूछताछ की; तो पुलिस ने बतलाया की एक सज्जन ने फोन पर बताया, वह लड़की उन्हें शहर के बाहर,रास्ते के किनारे पड़ी हुई मिली। साथ में कोई नहीं था । तब डॉक्टर और पुलिस ने शिनाख्त के लिए उसे मार्चुरी में रखने की सलाह दी।

 शंकर ने मर्चुरी के रजिस्टर में जरूरी जानकारी दर्ज करवाई ।

पुलिस  के जाने के बाद, उसने मार्चुरी का दरवाजा खोला। भीतर से ठंडी हवा के झोंके के साथ एक अमंगल गंध का भभूका बाहर आया।अंदर  शवो के स्ट्रेचर भरे पड़े थे। उसी के बीच उस लड़की की लाश रख दी, और  लड़की के शव के पैर के अंगूठे में रजिस्टर का टोकन नंबर लिखकर, अस्पताल का एक पीला टैग बांध दिया।

 उसे एक बार लगा की लड़की का अंगूठा हिला। वह  पहली बार चौक उठा। उसने आदतन, शव की नब्ज देखी ….. नहीं कुछ नहीं, शरीर भी बिल्कुल ठंडा हो गया था। फिर भी उसने पहली बार शरीर में भय की एक अज्ञात झुरझुरी महसूस की! वह लगभग दौड़ते हुए मर्चुरी की ठंडी हवा से बाहर निकला। दरवाजा बंद कर उसने      बाहर की ताजी  हवा में एक तेज गहरी सांस ली। वह वहीं ऑफिस में कुर्सी पर बैठ गया। आंखें बंद की तो फिर उसी लड़की का चेहरा सामने आया ''भैय्या वही दोनों ही….भैय्या वही दोनों ही….", उसे भय के मारे फिर एक तेज झुरझुरी आई। उस विचार से बचने के लिए उसने सिर जोर से झटका। और बारिश में भी अस्पताल के कैंटीन की तरफ चाय पीने चल पड़ा।

    वह सोचने लगा, क्या जिंदगी है देखो,

 "एक का आना,

 एक का जाना,

 यहां तो हरदम का,

 यही है 'फसाना।" 

 कितने ही नामचीन शरीफ लोग यहां अपनी पहचान खो बैठे हैं और केवल एक नंबर बनकर रह जाते हैं। सबकी अपनी-अपनी कहानी होती है।             

        कभी-कभी कोई रिश्तेदार, पुलिस के साथ शिनाख़्त करने आते हैं ; अपना कोई हुआ तो आकर ले जाते हैं। फिर अंतिम संस्कार से उन्हें मुक्ति मिल जाती है।


     कई साल हो गए शंकर को यहां काम करते-करते ,बापू के एक दोस्त ने काम पर लगा दिया। जब शादी की उम्र हुई तो लड़की वालों को यही बताया की अस्पताल में वार्डबाॅय  है,अगर उन्हें मुर्दाघर की नौकरी का पता चलता  तो पता नहीं शायद, शंकर अनब्याहा ही रह जाता । शंकर के लिए तो वह सिर्फ एक नौकरी; रोटी की सुविधा; बन के रह गई थी। अस्पताल में आने वाले कुछ ठीक होकर, चले जाते, मरने वाले अगर बेसहारा होते हैं अथवा उनके दूर के रिश्तेदार या पड़ोसी होते,तो वे या बेटे बेटी या भाई बहन के आने में समय रहता है, तो उन शवों को यहां मर्चुरी में ही रखा जाता था ; यहां  बस इतना ही फर्क है। यह सब देखते देखते, अस्पताल के लोगों की, धीरे-धीरे सारी संवेदनाएं  नष्ट होती जाती हैं।

      वहां की एक अजीब सी,- शायद मृत्यु कीअप्रिय सी - गंध से शंकर को लगता है कि उसके  शरीर में स्थाई रूप से चिपक गई हो। इसीलिए आदतन वह हर दिन सुबह जब घर जाता है,तो खूब साबुन मल-मल के नहाता है। घर भर में धूप-अगरबत्ती जलाता। शरीर पर बॉडी स्प्रे, डिओडरेंट छिड़कता है। पत्नी बड़ी प्रभावित होती है कि कितना भक्ति-भाव और कितनी साफ-सफाई से रहने की आदत है! पर शंकर जानता है कि वह उस अनजानी, अनचाही गंध से छुटकारा पाने के लिए यह सब करता है। 


शादी के  कई महीनो बाद उसने अपनी पत्नी को अस्पताल में उसके असली काम के बारे में बताया। शुरू में वह बुरी तरह घबरा गई। पर बाद में, मान  गई,। शंकर ने उसे समझाया अस्पताल में , मर्चुरी में उनको रखते हैं जिनकी शिनाख्त नहीं हो।। तब जाकर वह धीरे-धीरे प्रकृतिस्थ हुई। फिर पूछने लगी, 'आपको डर नहीं लगता वहां हरदम मुर्दे देखकर?'

   तब उसने  कहा 'शुरु  में डर लगता था पर वहा सब कुछ काफी शांत रहता है।'।   

 'क्या वहां भूत दिखते हैं?'  पत्नी ने हैरत से पूछा।

'अरे नहीं ऐसा कुछ नहीं होता,आज तक तो नहीं देखा। हां, शुरू शुरू में मुझे भी डर लगता था, अब आदत सी हो गई है।'

     उसने अपनी पत्नी को आश्वस्त किया और कहा,'चलो अब तुम लोग सो जाओ। मैं ड्यूटी पर निकलता हूं।'इस तरह उस दिन तो बात आई गई हो गई।

       मार्चुरी के दरवाजे पर पहुंचते शंकर को कल वाली घटना याद आई उसमें दरवाजा खोला और अंदर जाकर उस लड़की की लाश को देखा,अचानक उसका ध्यान उसके बाहर निकले हुए हाथ की तरफ गया उसे आश्चर्य हुआ उस लड़की के हाथ पर एक टैटू कलाई के पास लगा था जिस पर एक बिच्छू बना हुआ था। उसे लड़की के हाथ की पकड़ और आंखों की आर्तता, उससे भूले भुलाई नहीं जा रही थी। उसने उस हाथ को चादर के अंदर कर दिया दरवाजे तक पहुंच कर उसने मुड़ कर देखा हाथ  बाहर निकला हुआ लगा वह डर गया।

   घर पर अगले दिन सारे समय उसके दिमाग में लड़की के विचार आ रहे थे। ऐसी बेचैनी उसने पहली बार महसूस की थी।

दुसरे दिन एक युवती इंस्पेक्टर के साथ  लाश कि शिनाख्त करने आती। इंस्पेक्टर के पूछने पर उसने बताया वह और रेशमा यानी यही लड़की हॉस्टल में साथ में रहती थी 2 दिन से वह हॉस्टल में नहीं आई। पेपर में  खबर पढ़ कर वह देखने आई ।

रेशमा के बारे में उसने ज्यादा कुछ नहीं बताया। बस उसे इतना पता है कि वह बिहार के किसी गांव की रहने वाली है और यहां पढ़ने के साथ-साथ नौकरी भी कर रही है उसकी बातों से पता चलता था कि उसे पैसों की सख्त जरूरत है।

 तब इंस्पेक्टर ने पूछा "क्या किसी लड़के या से उसके रिश्ते थे?"

 इस पर वह  इतना ही कह पाई 'दो दिन से बहुत कुछ परेशान से लग रही थी मैंने पूछा तो बोली नया काम मिला है उसी की तैयारी में हूं!"

 इस पर इंस्पेक्टर ने कहा 'ठीक है अभी शिनाख्त कर लो और जाओ,अगर जरूरत होगी तो बुलाएंगे।'


 शंकर ने मर्चुरी का दरवाजा खोला। 

  शंकर उन्हें उसे स्थान पर ले गया जहां पर उसे लड़की की लाश रखी हुई थी। जैसे ही शंकर ने उस लड़की के शव के सर से चादर हटाई 

  'हां यही है, परसों रविवार को वह हास्टल से गई थी।

ठीक है तुम जा सकती हो कहकर लड़की के साथ पुलिस इंस्पेक्टर चला गया।

    शंकर उस लड़की के चेहरे को देखते हुए अपने स्कूली दिनों में पहुंच गया।


   शंकर को स्कूल की सहपाठी नित्या याद आई वह भी इसी के समान खूबसूरत थी शंकर यही कोई 10 वी11वीं में था जवानी अभी-अभी उस पर मेहरबान हुई थी। नित्या उसे अच्छी लगती थी और उसे भी। शंकर की ओर देखकर अक्सर मुस्कुरा देती थी दोनों के बीच कुछ पनप रहा था पर अचानक एक दिन नित्या के मौत की खबर ने पूरे क्लास को सकते में डाल दिया। सुना था उसके साथ जबरदस्ती हुई थी शंकर उसके अंतिम दर्शन करने नहीं गया कितना मायूस चेहरा था उसका, उसकी प्रेम कहानी का इतना बड़ा अंत उसने सोचा भी नहीं था उसे अंदाजा था कि यह घिनौना काम किसने किया पर उस समय वह मजबूर था पैसे वालों की ताकत के सामने।


 2 दिन से शंकर छुट्टी पर है दोपहर में उसकी बेटी ने कहा उसे स्कूल की प्रोजेक्ट में कुछ स्टीकर खरीदने हैं तो शंकर उसे लेकर बाजार निकला एक दो दुकान खंगाल ने पर बेटी को मनचाही स्टीकर मिले। वहां खड़े-खड़े शंकर की नजर एकाएक  एक स्टीकर पर गई, उस पर बिल्कुल वैसा ही बिच्छू बना देख वह चौक गया। मार्चुरी में रखी लड़की के हाथ पर बना टैटू और यह बिच्छू सेम टू सेम। उसने दुकानदार से उसे टैटू के बारे में पूछा।

" आपको भी लेना है क्या?"

" क्यों बहुत मांग है क्या?"

 हां साहब अभी चार दिन पहले दो लड़के 10 - 12 ले गए मेरे पास चार-पांच  ही थे।  पर उनको और चाहिए थे तो मैंने उन्हें दो दिन बाद लाकर देने का वादा किया।"

  "कौन थे वह? क्या तुम उनके बारे में कुछ बता सकते हो?"

 वह उनका फोन नंबर देकर गए थे ,शंकर ने फोन नंबर ले लिया और लड़कों का हुलिया नोट कर लिया।

'पापा क्या मै भी एक टॅटू लगा लू अपने हाथ पर आजकल बहुत फैशन है टैटू लगाने का?' यह थोड़ा डिफरेंट है।

' कोई जरूरत नहीं अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो' बेटी की बात सुनकर शंकर घबरा गया ,उसे फिर वही मर्चुरी वाला दृश्य याद आया।

पूरे दिन शंकर इसी उधेड़बुन में था कि क्या करें?उस फोन नंबर वाले का पता करें या ना करें। कहीं इस चक्कर में वह खुद फंस ना जाए, उसका अपना परिवार भी है कहीं नौकरी या जान से हाथ ना धो बैठे यही सोच कर वहां 2 दिन तक चुपचाप रहा। पर दूसरे ही दिन अखबार में एक और युवती के मौत की खबर देख कर उसने निश्चय किया की वह इन मौत के सौदागरों को सजा दिलवा कर ही रहेगा।


अगले ही दिन उसने अस्पताल के ऑन ड्यूटी पुलिस वाले को पूरा वाकया बताया तो उसने अपने बड़े साहब को फोन लगाया शंकर ने उन्हें पूरी कहानी सुनाई फिर तो उन लड़कों की खोज शुरू हुई पुलिस ने उस नं कि लोकेशन पता कि और ये नं किस व्यक्ति का है इस बारे में जानकारी ली,

पता चला ये  नं उनलड़को का है जो कालेज के आसपास मंडराते रहते हैं।

उन दोनों को पुलिस ने पकडा , शुरू में तो वे अंजान बने रहे पर पुलिस की खातिर दारी से घबराकर उन्होंने अपना मुंह खोल दिया।वे तो केवल मोहरे है असली खिलाड़ी तो शहर के रईस सेठ राधेश्याम है।

उनकी एक पूरी गैंग है जो ड्रग्स का काम करवाती थी जिसमें उन्हें सुंदर लड़कियों की जरूरत होती थी।वे दोनों कालेजों और स्कूल के आसपास मंडराते रहते हैं और लड़कियों पर नज़र रखते हैं। कोई जरूरत मंद लड़की नज़र आ जाती है यही उन्हें रेशमा मिली जिसे पैसों कि सख़्त ज़रूरत थी। 



 कस्टमर की  पहचान के लिए बिच्छू वाला टैटू लड़की के हाथ पर लगा दिया जाता था रेशमा को भी उसशाम ऐसे ही काम के लिए भेजा था। उसे ब्रीफकेस लेकर होटल सन एंड शाइन में जाना था। वहां पहुंचते ही कस्टमर  के आने से पहले ही वह वहां से  गायब हो गई। शायद उसे ब्रिफकेस में रखे ड्रग्स का पता चल गया था,

उसने चालाकी दिखाई और उसने वह ब्रिफकेस वहां नहीं पहुंचाई और भाग निकली।कही वह पुलिस तक न पहुंचे इसी वजह से  लड़के उसके पीछे  गए थे।

 भागते समय लड़की को गाड़ी से टक्कर मार कर वे ब्रीफकेस और उसका फोन लिए भाग गए ।


लड़की गाड़ी की नीचे आकर अधमरी हो गई ।


किसी अंजान ने पुलिस को  इत्तिला  दी। अब सारी गुत्थी सुलझ गई। दोषी को सजा दी गई। शंकर के मन का बोझ कम हुआ। 



शंकर ने सोचा इस तरह से खूनी अपने ही बिच्छू के डंक से घायल होकर पकड़ा गया, 

 और मरने वाली लड़की के साथ साथ नित्या की आत्मा को भी शांति मिल गई।

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लेखिका प्रतिभा परांजपे




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