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वो ट्रेन का सफर

वो ट्रेन का सफर

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यात्री गण कृपया ध्यान दें,यात्रियों से निवेदन है अपने सामान का विशेष ध्यान रखें, दिल्ली से जाने वाली ट्रेन प्लेट फार्म नम्बर 2 से 10 मिनट में रवाना होने वाली है... आदि आदि...

यही चलता था हर दिन स्टेशन पर,अपनी ट्रेन को आता देखकर मेरी खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा पहली बार ट्रेन का सफ़र जो था । साथ में थे तो केवल दो बैग और पानी की एक बोतल, क्योंकि सफ़र में जितना कम हो सामान मिलता है उतना ही आराम। 

बस के सफर भी बहुत किए थे, वो भी कितने सुहाने,

कितने लुभावने होते हैं। शुरू करते सफर अपने शहर से, आप सभी ने भी किया जरूर होगा ।

मेरी ट्रेन आ गई और मैं ट्रेन में चढ़ जाता हूं , कुछ ही देर में ट्रेन को हरी झंडी मिलते ही अपनी पूरी स्पीड से ट्रेन दौड़ने लगती है। ओर लोग भी  चढ़ते हैं सब झट पट से लड़ते झगते सीट पर बैठने को वो भी खिड़की पर,जिससे सारी हवा का लुत्फ खिड़की से दिखता था हरा नीला रंग, व रंग बिरंगे पहाड़ मानो स्वयं प्रकृति ने भरे हो खुद में कई रंग रूप खेत खलियान निकलते जाते, जैसे वो हमें पीछे छोड़ते जा रहे हो। फिर भी हम अपनी मंजिल की और बढ़ते जाते हैं। ट्रैन मुड़ते देखना, बाहर ताकना। ट्रैन में बैठते ही लगने लगी जोरों की भूख। खाने लगा मां के हाथों से बनी घर की सब्जी पूड़ी। तभी मेरी नज़र सामने बैठी एक बूढ़ी ओरत पर गई जिसके तन पर मात्र एक फटी पुरानी धोती जगह जगह से फटी हुई। लगता था जैसे बहुत दिनों से कुछ खाया भी नहीं शायद मेरी ही ओर निहार रही थी। मगर मैंने अनदेखा किया ओर पहला निवाला तोड़ा जैसे ही खाने लगा मेरी नजर फिर उसी बूढ़ी माई पर पड़ी वो अभी भी मुझे ही देख रही थी।

मुझसे खाया न गया । मैंने उनसे पूछा क्या आप खाना खायेंगी ..? वो जैसे यही कहना चाहती थी हां में सिर हिला दिया , मैंने उन्हें सारा भोजन दे दिया । खाना वो खा रही थी पेट मेरा भर रहा था। मुझे जो खाना खाने में आंनद आता उससे कहीं ज्यादा उस भूखी माई को खिलाने में आया। भूखे को खाना खिलाने में जो सुख मिलता है उसका आंनद ही कुछ अलग है।

तब से मेरा जीने का सलीका ही बदल गया। जब भी मैं किसी सफ़र पर ट्रेन हो या हो बस मैं अपने खाने के संग कुछ खाना ज्यादा लेकर चलता हूं ओर किसी न किसी एक भूखे को वो भोजन किसी स्थान पर बैठाकर आराम से खिलाता हूं । मुझे जो सकून मिलता दोस्तों आप भी करके देखना आपको भी कितना सुख मिलेगा। ऐसे ही यदि हर एक इंसान एक भूखे को खाना खिला दें तो कोई भी भूखा नहीं रहेगा। 

पहला ट्रेन का सफर हमेशा याद आता है

चला था मैं अकेला अनोखा अनुभव रहा।

भूख से लिपटा होता है अपना पराया

जब याद करूं वो ट्रेन का सफर बहुत सुख देता है।


---- विनोद रेखा शर्मा

         दिल्ली




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