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प्रेम पहली नजर में

लवपहली नजर का प्रेम*


एक बाकया याद आ रहा है , रेलगाड़ी में एक लड़की अपनी कोचिंग के लिए दिल्ली आ रही थी और उसी डिब्बे में एक सेना का  जवान भी बैठा हुआ था। लड़की की नज़रें जवान से मिलीं और उसे लगने लगा कि यही है वह व्यक्ति , जिसे ईश्वर ने सिर्फ और सिर्फ उसी के लिए बनाया है। यदि वह शादी करेगी तो इसी से , वरना नहीं। दीवानगी की हद तक वह उसके सौंदर्य,सौष्ठव के मोहपाश में बंध चुकी थी।

  लड़की अपने हाॅस्टल चली जाती है और जवान अपने हैडक्वार्टर। लड़की के व्यक्तित्व पर उस अजनबी जवान का जादू कर गया था। वह  इतनी बैचेन हो गयी कि कोचिंग को भूल गयी और वहाँ की सेना के हैडक्वार्टर जाकर जवान  को ढूंढने की कोशिश करती,पर उसे कोई जानकारी नहीं मिलती। क्योंकि उसे सिर्फ उसका नाम ही पता था जो बर्दी के ऊपर नेम बैज पर लिखा था। ‘कर्नल डाक्टर डी डी’. इसके अलावा कुछ भी नहीं। हर समय डिक्सनरी से उस नाम के नंबर डायल करती रहती। अंततोगत्वा नतीजा यह हुआ कि साथ रहने वाली अन्य लड़कियों ने उसकी गतिविधियों को समझने की कोशिश की । जब नैना को यह पता चला कि उसके साथ कोचिंग जाने वाली सुबुद्धि अब कहीं और जाने लगी है तो उसने जानना चाहा , "कहाँ जाती हो सुबुद्धि तुम अकेले-अकेले ? क्या तुम्हें किसी से प्यार हो गया है?"


"  प्यार तो तब होगा न जब उससे मिलूँगी नैना ! अभी तो बस एक चाहत ने जन्म लिया है और ऐसा लगता है जैसे अब उसके अलावा इस दुनिया में कुछ भी नहीं है मेरे‌ लिए। "


     "लगता है दिल्ली का पानी लग गया है तुझे। एक बार घर से बाहर क्या निकल आए कि समझने लगते हैं हम खुद को आजाद पंछी। अरे भई कुछ बनने के लिए यहाँ आयी हो या मस्ती करने के लिए ?"


     ‌"देख नैना तू भी यहाँ कुछ उद्देश्य लेकर आयी है और मैं भी उसी के लिए यहाँ घर से इतनी दूर हूँ। मैं यह भी जानती हूँ कि अपने पांव पर खड़े होना कितना जरूरी है आज के समय में । ऊँची शिक्षा लेकर मैं यहाँ तक पहुँची हूँ और आज तक कभी भी मेरे दिल पर किसी ने कब्जा नहीं किया था ,पर ये रेल वाला फौजी तो जैसे मेरा दिल ही ले गया है निकाल कर...तू ही बता अब मैं कैसे उससे अपने दिल को वापस लाऊँ ? कोई पता नहीं मालूम और न ही कोई जानकारी ...न जाने कैसा जादू कर गयी हैं उसकी आँखें,उसका कद, उसकी मुस्कान और उसके बैठने का ढंग ..यूं समझ जैसे जंजीर फिल्म के अमिताभ बच्चन।"


"हा हा हा यार! ये प्यार का रोग ऐसे लगता है , मुझे तो बिल्कुल भी नहीं पता था , अच्छा तो क्या तूने उसकी आंँखों में देखा था ? हो सकता है प्रेम उसी रास्ते से प्रवेश किया हो.. "बेचारी सुबुद्धि ! " रोग लग गया रे...


    "मजाक नहीं है नैना ! तेरा कहना भी सही हो सकता है, मैं तो नहीं देख पायी उसकी आँखों में पर हो सकता है उसने देखा होगा और उतर गया होगा मेरे दिल के महल में।"


   नैना ने एक मुस्कान के साथ सुबुद्धि की आँखों में देखा...।


   " अरे ये  क्या मजाक है, नैना ! यहाँ मेरी धड़कनें बेकाबू हो रही हैं और तुम को मजाक सूझ‌ रहा है।"


    " मजाक करने की मेरी आदत नहीं है सुबु! मैं तो बस तेरी आंखों के जरिये तेरे दिल में उतरने की कोशिश कर रही थी। पर हाय वह तो कर्नल साहब ले गए, पर यार धड़कनें कहाँ चल रही होंगी तेरी। चल उठ और शेखचिल्ली जैसे ख्वाबों से बाहर आ , नहीं तो ये दिमाग भी चोला छोड़ कर भाग जाएगा और फिर लोग कहेंगे पगली लड़की...संभाल खुद को और आज की क्लास कर लें अब । कुछ अच्छा सा पहन , मैं भी पहनती हूँ । पता है यहाँ भी एक से एक स्मार्ट लड़के हैं। बस थोड़ा सा लटके-झटके का तड़का लगा फिर देख सब भूल जाएगी।"


पर उसे पाकर ही रहूँगी या फिर ..."


" नैना तू जा , अब मैं नहीं पढ़ सकूँगी। हर कीमत पर उसे पा कर ही रहूँगी या फिर ?”


“ या फिर से मतलब ? अपने सपने अपना बजूद कुछ भी नहीं हैं तेरे लिए क्या ?


"हांँ शायद  ऐसा ही समझ ले शायद।”


    " देख सुबुद्धि ! तेरे भैया और पिता जी चलते समय मुझसे कह कर गये थे कि मैं तेरा ख्याल रखूँ । अब इतना तो हक बनता है न , कि मैं तुझे समझाऊँ या फिर तेरे घर पर खबर कर दूँ। यहाँ क्यों हास्टल का पैसा देंगे वे , वैसे भी आसान तो नहीं है बच्चे को बाहर भेज कर पढ़ाना। हम सामान्य मिडिल क्लास के लोग हैं । कुछ कमाने लायक बन जाएंगे तभी खाना मिलेगा और दूल्हा भी ..समझी कि नहीं ?"


   "नैना ! समझती हूँ मैं भी, पर दिल का क्या करूँ"?


  "घर लौट जा और घरवालों की पसंद‌ से शादी कर ले , इसके अलावा कोई विकल्प नहीं है लड़कियों के लिए। दुल्हन बनो, चूड़ी, कंगना,पायल, बिंदिया  से संवर कर अपने पिया के घर जाओ। चल ठीक है तुम अपने दिल को सम्भालो और मैं चलती हूँ‌ क्लास करने।"

  

"बुरा मत मानना नैना! मैं मजबूर हूँ।” 


      नैना सुबुद्धि की ओर तिरछी नज़र से देखते हुए उसके रूम से बाहर आ गयी और सोचने लगी कि क्या इसके घर खबर कर दूँ , कहीं कुछ ग़लत कदम उठाए यह , इससे बेहतर है थोड़ा सा प्रयास कर लेना ही ठीक रहेगा शायद ।

  कोई अनहोनी न हो जाये कहीं। यह सोचकर उसने सुबुद्धि के घर का नंबर अपनी फोन लिस्ट से निकाला और मिला दिया। उधर से रिंग टोन पर गीत बज रहा था...मौसम है आशिकाना...ऐ दिल कहीं से उनको ढ़ूंढ़ लाना.....।

 मन को पक्का करके उसने सुबुद्धि के घर पर फोन कर तो दिया ,पर उसकी धड़कन बढ़ गयी थीं। पता नहीं क्या सोचेंगे सभी। 

उधर से सुबुद्धि के भाई ने फोन रिसीव किया तो नैना ने कहा , भैया ! आंटी हैं क्या , उनसे बात करनी थी। उधर सुबुद्धि की मम्मी ने पूछा, “कैसी हो ‌नैना सब कुछ ठीक है ‌न?”


नैना ने गहरी सांस ली और कहा, "आंटी ! आप कैसी हैं ? आपकी सुबुद्धि से बात होती है क्या?"


"नहीं बेटा! करीब चार दिन से उसने बात नहीं की है।”


  "ठीक है आंटी ! वह कोचिंग क्लास करने नहीं जा रही है। इसलिए मैंने फोन किया है। आप पता कर लीजिए कि वह जा रही है या नहीं। प्लीज़ मेरे बारे में कुछ मत कहिएगा।"


"ठीक है नैना मैं बात करूँगी , उसकी तबियत ठीक न हो शायद। तुम भी पता कर लेना , हो सके तो दवा दिलवा देना। "


" जी आंटी ! मैं पता करती हूँ।" नैना ने अपनी धड़कनों को काबू करते हुए कहा। एक गिलास ठंडा पानी अपने फ्लास्क से निकाल कर पीने लगी और अपनी क्लास करने चली गयी।

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दो दिन बाद उसकी रिश्ते की दीदी जिन्हें लोकल गार्जियन बताया था ,सुबुद्धि ने ...मिलने आयीं और उसकी पूरी दिनचर्या की जानकारी ली तो वह भी अचम्भित रह गयीं। क्यों कि सुबुद्धि चाहती थी कि वह भी उसके काल्पनिक प्रेम की तलाश करने में मदद करें। वह अपने तरीके से उसे समझाती रहीं और कुछ दिन के लिए उसे अपने साथ लेकर चली गयीं।

एक सप्ताह बाद हाॅस्टल आकर उसके भैया और पापा उसका सामान लेकर रूम खाली करके चले गये। एक महीने बाद जब नैना को सुबुद्धि के ‌बारे में कोई खबर ‌नहीं मिली तो उसने फिर डरते-डरते उसके घर फोन मिलाया तो पता चला कि वह अपने घर पहुँच गयी है।  उसकी शादी करने की तैयारियां शुरू हो गयी हैं। उसके पिता जी आर्मी में कार्यरत लड़के की तलाश कर रहे हैं। तब तक के लिए वह फिर से वापस आकर अपनी कोचिंग ज्वाइन करना चाहती है । वह फिर से आयी और एक फर्म में ज्वाइन कर लिया। सुबह जाती और शाम को वापस आती। काम के साथ-साथ पढ़ाई नामुमकिन जैसी ही बात थी। अतः वह अपने काम में ही व्यस्त हो गयी और अपना एक छोटा सा फ्लैट लेकर अलग रहने चली गयी। कभी-कभी उसकी बात होती रहती थी नैना से। उसने बताया कि पापा तो देख ही रहे हैं। मैं भी मैट्रीमोनियल साइट पर तलाश कर रही हूँ अपने लिए सपनों का राजकुमार। पर सब के सब बड़े ही मतलबी हैं यार। एक के बारे में उसने बताया कि वह  है तो आर्मी में ही और एक बार एक रेस्टोरेंट में मुलाकात भी की है पर वह क्या है कि वह चाहते हैं कि मैं यह नौकरी छोड़ कर उनके माता-पिता, भाई-बहन के साथ रहूँ और उनकी जिम्मेदारी उठाऊँ। मतलब देखभाल करूँ... पागल समझते हैं यार ये लोग लड़कियों को शायद... ठीक कह रही हूँ न मैं? अरे कुछ तो बोल नैना.!”


  "तुम्हारे घरवालों की क्या राय है ?"


"वह कहते हैं कि ऐसा तो होता ही है। लड़कियों का भविष्य ससुराल वाले ही तय करते हैं। वह क्या कर सकते हैं ? अगर मैं हाँ करती हूँ तो वे आज ही शादी कर देंगे। मैं तो जैसे झुनझुना हूँ जिसे कोई भी बजा लेगा।” कहकर जोर से हंसना शुरू कर देती है वह...।


   " हम ये झुनझुना न बनें , इसीलिए तो हमारे मम्मी- पापा हमें आत्म निर्भर बनाना चाहते हैं। पर इसमें बड़ी मेहनत लगती है सुबु ! सबसे आसान होता है दुल्हन बन कर पिया घर चले जाना और बच्चे पैदा करके मम्मी बनना। इंजायमेंट की उम्र तो बनने बनाने में ही निकल जाती है और हम हो जाते हैं थोथे चने...जिसकी आवाज घनी होती है पर सुनवाई कहीं नहीं..! डिसाइड कर ले यार ! मैं तो जोगन बन जाऊंगी अगर कहीं हिल्ला नहीं लगा तो...घर लौट नहीं सकते क्योंकि हवा में हर ओर पद पर पहुंचने की घंटियां बज रही हैं।"


   " देख मैंने तो जाॅब ढूंढ़ ली है और मेरा प्यार सच्चा होगा तो वह मुझे मिलेगा जरूर, मुझे पूरा विश्वास है। "नैना !


   " मैं भी दुआ करूंगी तेरे लिए। "


      "कल पापा आ रहे हैं ,शायद फिर कोई लड़का दिखाएंगे। कह रहे थे ,आर्मी में डाक्टर है ,इसी साल फाइनल किया है। पर मैं जानती हूँ कि डाक्टर को डाक्टर लड़की ही चाहिए होती है। बात नहीं बनेगी...हाँ अनुभव तो मिलेगा ही और फिर किसी रेस्टोरेंट में एक अच्छा सा लंच।"


" लड़का आधुनिक हुआ तो चाकलेट लाएगा अगर मम्माज बाॅय हुआ तो लाएगा पतीसा।  दोनों एक साथ जोर से हंसने लगती हैं...."


" तुझे अनुभव है,ऐसा लग रहा है नैना...! कुछ बता न अपने बारे में।"


"क्या सच में सुनना चाहती है तू‌ ?"

"हाँ! बता ना"


याद है वह लड़का जो हमारे सामने वाले घर में  हर समय पढ़ता दिखाई देता था। वही जो नीली बनियान और पाजामे वाला बंदा। एक दिन मैं गली में झांक रही थी तो वह बाहर ब्रश करने के लिए निकला था। मुझे देख अपने आप ही बोला,  " हेलो ..!  क्या नाम है आपका ? आपको ब्रज सर की क्लास में देखा है मैंने।"


 " मैंने कहा, हाँ मैं करती हूँ उनकी क्लास.".. "कहने लगा कि मुझे कुछ नोट्स चाहिए क्योंकि कुछ दिन मैं उनकी क्लास नहीं ले पाया था। " 


" अब आगे भी बता नैना ! क्या तूने नोट्स दे दिए थे ?"


   " मैंने उससे कहा, सनी फोटो स्टेट पर मिलना दोपहर बारह बजे। "


" फिर गयी थी तू वहाँ पर ?”


  " हाँ , वह भी पहुँच गया था, मैंने कहा , जो चाहिए फोटो स्टेट करवा लेना , तब पता है ? वह अपनी जेबें टटोलने लगा। बोला ,ओ तेरे की बटुआ तो रूम पर ही छूट गया।"


  "ऐसे बहुत से फ्लाप शो का अनुभव है मुझे ,आराम से बताऊंगी।"


" चालू होते हैं यार, मैं ऐसे लोगों को अच्छी तरह जानती हूँ नैना  "।


" मैंने भी कह दिया , कल करवा लेना , रोज-रोज ही आना होता है हमें यहाँ।"


" अगर आज हो जाता तो ठीक रहता , मेरे भाईसाहब आने नहीं देंगे ।"


  " फिर मेरी ठुक गयी पच्चीस रुपए की,अब वह बगलें झांकने लगते हैं मुझे देखकर। "


" हा हा हा, मन में लड्डू तो फूटे होंगे तेरे नैना,सच बताना ..."


" हाँ यार!  कोई उम्मीद नहीं दिखाई पड़ रही , सोचा था कोई अपना होगा इस अंजान शहर में तो आराम से कटेगी अपनी भी पर यह तो घुटा हुआ निकल गया। पर कोई बात नहीं अब आगे से तो धोखा नहीं खाऊंगी। सिमी को देखो कैसे उसने अपने ब्याय फ्रेंड को अपना कार्यकर्ता बना रखा है। चीनू ! आलू ले आना। चीनी,चाय,दूध पाउडर सब घर बैठे मंगवा लेती है। चीनू .. रिजर्वेशन करवा देना चीनू रेलवे स्टेशन आ जाना और‌ वह बंदा भी बैग उठाए आनंद की गंगा में गोते लगाते हुए सुरक्षा गार्ड की तरह हाॅस्टल तक दौड़ कर पहुँच जाते हैं।"


" हाँ ! इस मामले में लकी है सिमी "


   " करवाचौथ व्रत का कमाल है  सुबु ! तू भी रखा कर देख ले शायद तेरी भी मुराद पूरी हो जाए। "


"ये तो सही कह रही है नैना ... मुझे भी ऐसा ही लग रहा है।"


   "पता है ..? वह उसकी गाड़ी से ही कभी-कभी घर भी आती-जाती रहती है।‌ घर में उसे ट्रेवल एजेंसी का ड्राइवर बताया है तो मम्मी-पापा भी कुछ नहीं कहते हैं उसके।"


"काश ! कि कुछ होशियारियाँ हमने भी सीख ली होतीं न,तो ये घरवालों के सिर पर मेरी शादी का भूत नहीं सवार होता।"

" कोई बात नहीं सुबु! अपना ख्याल रखना और कोई समस्या हो तो डिस्कस कर लेना। अपनी ग्रूमिंग करले , फेशियल करवा , रिलेक्स होकर अपने भावी हमसफ़र से मुलाकात करना और फिर मुझे फोन करके बताना।" बाय बाय। 


बाय- गुडनाईट....किसी नज़र को तेरा इंतज़ार आज भी है। सम्हाला जितना इसे मैंने, बेकरार आज भी है। गुनगुनाते हुए नैना ने अपनी ट्यूब लाइट बंद कर दी और सोने की कोशिश करने लगी।

‌......................


"दिन रविवार चौदह फरवरी सुबह ही सुबुद्धि के पास फोन आता है। सुबु बेटा मैं दिल्ली पहुंच गया हूँ। एक घंटे में तुम्हारे फ्लैट पर पहुँच जाऊँगा।"


"ठीक है पापा, मैं आपका इंतजार कर रही हूँ।"


लगभग एक घंटे बीस मिनट बाद शिरोमणि जी अपनी बेटी के पास पहुँच चुके थे । सबुद्धि उनसे मिलकर बहुत खुश हुई और अपने भैया के बारे में जानकारी ली तो उसके पापा ने बताया कि वह इस समय नहीं आ सकता था। यह कठिन समय है एक एक दिन उसके लिए कीमती है क्योंकि दो दिन बाद ही उसकी परीक्षा है। इतना कहकर वे वाशरूम गये और आरामदायक कपड़े पहन कर लाॅबी में बिछे दीवान पर बैठ गए। सुबु तब तक चाय और बिस्कुट ले आयी थी।


उसने सामने कुर्सी पर बैठ कर मम्मी के हालचाल पता किए । तब उसके पिताजी ने कहा ,"देखो वह बैग खोल कर ,क्या है उसमें।"


सुबुद्धि ने खोल कर देखा तो बहुत से मसाले ,अचार की डिब्बियां और बेसन के लड्डुओं से भरा हुआ स्टील का 

डिब्बा रखा हुआ था और एक नोटबुक में उसकी परिवार सहित फोटो भी रखी थी। कुछ सर्दी के कपड़े जिनमें ऊनी शाल और हाथ का बनाया हुआ स्वेटर और स्कार्फ था। देखते ही उसकी आंखों में आंसू आ गये । उससे कुछ कहते नहीं बना।


"क्या हुआ बिटिया ? लाओ दिखाओ क्या रखा है तुम्हारी अम्मा ने। "


उसने स्टील का डिब्बा खोल कर दो लड्डू और खजूरे निकाल कर प्लेट में रख दिए और  दोनों मिलकर खाते रहे और बातें करते रहे। 


"पापा ! पेरेंट्स के लिए बच्चे हमेशा छोटे बच्चे ही रहते हैं न, वे कभी बड़े नहीं होते।"


   " हाँ ! यही तो खासियत है। जिनके साथ माँ -बाप रहते हैं वे बच्चे हमेशा अपना बचपन जी लेते हैं। पता है जब तुम्हारी दादी के पास मिल कर आता हूँ तो खुद को बच्चा समझता हूँ मैं। वह हमेशा मुझे पैसे देती हैं और मेरी पसंद का चूरमा बना कर रखती हैं। बड़ी इच्छा है उनकी कि तुम्हारा विवाह अपनी आँखों से देखें।"


" पापा ! ये रिश्ते क्यों बनाए हैं भगवान ने ? मैं आपके साथ ही रहूँगी,अब आपको छोड़ कर कहीं नहीं जाने वाली।”


    "हर पिता का कर्तव्य है कि वह अपने बच्चों को उनके पैरों पर खड़ा करने में मदद करें और अपने उनकी छोटी-छोटी खुशियां उन्हें दें। मैं भी इसी कर्तव्य से बंधा हूँ।" 


" पापा ! आप जिससे भी मिलवाने जा रहे हैं , उनसे कहिएगा कि उनके घर में आप भी उसी तरह से रह सकेंगे जैसे उनके पैरेंट्स।"


"  हाँ ,हाँ पहले लड़का तो देखो तब सब बातें होती रहेंगी न। दोपहर एक बजे तक आ जाएंगे वे लोग । एक बहन और एक भाई भी साथ में हैं।"


" अब उनको यहाँ फ्लैट पर बुलाया है आपने पापा या कहीं और मिलेंगे।"


   "अब यह सब तो तुम्हें बताना होगा क्योंकि जानने समझने के लिए घर से बेहतर कोई जगह नहीं होती है और यदि सिर्फ औपचारिकता पूरी करनी है तो किसी अच्छे होटल में चलते हैं।"


   "आपको क्या लगता है कि इस फ्लैट में बुलाना चाहिए,तो मैं कुछ खाने-पीने का इंतजाम करूँ।"


   " मैं यही चाहता हूँ कि वे यहाँ आकर देख लें कि मेरी बेटी किस माहौल में रहती है और उसका व्यक्तित्व कैसा है, उनको पता चलना चाहिए कि तुम्हारा स्वतंत्र व्यक्तित्व है और तुम्हें किस स्तर से रहने की आदत है। ये पूरे जीवन का सवाल है बिटिया ..."


" ठीक है पापा..! अब मैं कुछ तैयारी कर लेती हूँ।"


    " देखो ,वे लंच नहीं लेंगे , मुझसे बात हो गयी है,पहली मुलाकात में चाय और नाश्ते पर बातचीत ही होगी। उसके लिए मैं हूँ ,सब देख लूंगा,तुम सिर्फ एक मिठाई और दो नमकीन रखना । अच्छे कप ग्लास तो होंगे ही न? अगर नहीं हैं तो मुझे बता दो मैं अभी जाकर ले आता हूँ। अगर खाना बनाने वाली उस समय आ सकती हैं तो बात कर लेना, सहूलियत रहेगी। "


    "ठीक है पापा..! मैं देखती हूँ सब कुछ, पहले तो कुशन कबर आदि बदल देती हूँ और आपके लिए कुछ नाश्ता भी बना लेती हूँ।"


  "अभी कुछ नहीं बनाना सुबु! तुम्हारी अम्मा ने सत्तू के परांठे और भरवां करेले रखें हैं , उनसे ही काम चल जाएगा।"


"ठीक है पापा! "


एक बजे लड़के वालों की ओर से फोन काॅल आ गया कि वे आ चुके हैं।


सुबु के पापा ने फ्लैट का पता और नंबर बताया और उनका इंतजार करने लगे। लगभग एक घंटे में दोनों भाई और बहन उनके घर पहुँच गये। उनको आदर सहित अंदर बिठा कर आपसी बातचीत शुरू हुई और सुबु तब तक पानी और काजू कतली एक ट्रे में लेकर पहुँची। सवाल, जबाव का दौर चला। दोनों भाई हल्की नीली शर्ट और ब्लू पैंट पहने हुए थे। लगभग एक ही कद काठी के थे और बहिन ने सलवार सूट पहना हुआ था जो  गुजरात में किसी कम्पनी में काम कर रही थी। घर में सिर्फ पिता जी हैं,माँ किसी बीमारी से जल्दी ही दुनिया छोड़ चुकी थीं। इसलिए अब बहन ही दोनों भाइयों के लिए सहारा बन गयी है। बातचीत से इतना ही पता चल सका कि एक भाई आर्मी में डाक्टर है और दूसरा अभी तैयारी कर रहा है।


सुबु को अभी तक यह भी नहीं समझ आ पाया था कि शादी किसकी होनी है। वह पशोपेश में नाश्ते की व्यवस्था करने के लिए वहाँ से उठकर चाय बनाने के लिए रसोई में आ गयी। उसके साथ ही बहन भी वाशरूम के लिए उठ कर आ गयीं।


उधर पापा जी पूछ रहे थे," बेटा कुछ याद आ रहा है क्या ?" लड़का मुस्कराया और कहा , "मेरी तरफ से हाँ है अब आप सोच कर अपनी राय बना लीजिए, तो कुछ बात आगे बढ़ाई जाए।"


"इधर सुबुद्वि से लड़के की बहन ने पूछा," क्या विचार बनाया है आपने ? शादी की तैयारियां शुरू की जाएं?"


" पर मुझे शादी किससे करनी है, कुछ तो बताया ही नहीं अभी तक."


" कैसी बातें कर रही हैं आप ? क्या आपने पहचाना नहीं भैया को..?"


"पहचाना..? मैं कैसे पहचान सकती हूँ ? पहली बार ही मिल रही हूँ।"


" क्या आपके पापा जी ने बताया नहीं आपको कि आप जिनसे रेल के बोगी नं===सीट नंबर ===पर जिस जवान से मिली थीं वे मेरे ही भैया हैं। "


" रियली ! मैंने नहीं पहचाना " 


" इतना सुनते ही बहन रीमा ने हंसना शुरू कर दिया और जाकर अपने भाई से कहा, भैया ! हम गलत जगह आ गये हैं ,सुबुद्धि आपको नहीं पहचान रही हैं।"


   डाक्टर डीडी भी सुबु के लिए साफ्ट कार्नर रखने वाले ठहरजब किसी लड़के को यह बता कर पहचान करवायी जाए कि देख समझ लेना मेरी बेटी को तो कुछ जज़्बात तो जन्म लेते ही हैं ।


तब डक्टर साहब ने अपनी बहन से कहा," रीमा! सूटकेस से मेरी ड्रेस निकाल कर देना जरा..अभी बदल लेता हूँ। अब कुछ ही देर में मुझे फ्लाइट भी लेनी है तो जल्दी ही चलना होगा।"


आर्मी की पोशाक पहन कर जैसे ही वह ड्राइंग रूम में आकर सोफे पर बैठे तो सुबु उसे एकटक देखती ही रह गयी। तब उसके पापा ने पूछा, " बिटिया ! कुछ सोचा है आपने डाक्टर जी के बारे में ..?"


सुबुद्धि ने सहमति में अपनी गर्दन नीची करके सहमति में अपनी अनुमति दे दी।


कुछ ही देर में वे सभी चले गये तो मेज पर रखे मिठाई के डिब्बे को जब सुबु ने खोल कर देखा तो पतीसा मिठाई ही थी। उसने तुरंत नैना को फोन मिला कर बताया," यार ! तुझे बड़ा अनुभव है, पतीसा ही लेकर आए हैं ये लोग। "


" फिकर ना कर सुबु ! ये मम्माज बाॅय,सालिड इंसान होते हैं,तूने हाँ तो कर दी है न...?"


" हाँ मैंने सहमति दे दी नैना..!"


   " बहुत अच्छा किया,जीवन भर आर्मी केंटीन की चाकलेट मिलेंगी खाने को... डियर"


   " पापा ! आप बहुत अच्छे हैं पापा! आपने यह सब कैसे किया ? बताइए न।”


     " मैं पापा हूँ बिटिया.. ! मैं सब कुछ कर सकता हूँ पर अपने बच्चों को दुखी नहीं देख सकता।" तुमने हाँ कर दी तो मेरी सब चिंता दूर हो गयी।”


हैप्पी वेलेंटाइन डे !


समाप्त*


मीरा परिहार




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