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सहेली

 सहेली (कहानी) � जितेंद्र शिवहरे

         रीना को जबसे पता चला की उसकी छोटी बहन उसकी देवरानी बनने वाली है, वह तब से बेचेन है। आज रात भी वह सो न सकी। फोन पर नीतू से बात करने पर पता चला की उसे इस शादी से कोई ऐतराज नहीं था। मम्मी-पापा भी यही चाहते थे। दोनों बहनें शादी के बाद एक ही घर में रहेंगी, वे तो इसी बात खुश थे।

 


रीना को यह प्रस्ताव बिल्कुल पसंद नहीं आया। ससुराल में रहकर वह खुलकर इस रिश्तें का विरोध नहीं कर पाई।इसलिए अपने मायके आकर नीतू को समझना उसे ज्यादा ठीक लगा।

 


मायके आते ही वह नीतू से बोली "जो दूर से दिखता है, हमेशा वह सही नहीं होता नीतू।" रीना के स्वर गंभीर थे।

 


नीतू बोली "दीदी! थोड़ा-बहुत कष्ट तो शादी के बाद होता ही है। लेकिन मेरे लिए तो यही खुशी की बात है की तुम वहां मेरी जेठानी बनोगी।"

 


शादी की खुशी किसे नहीं होती? आनंद के उन पलों को नीतू ने अभी से जीना शुरू कर दिया था। रीना उसकी प्रसन्नता कम नहीं करना चाहती थी मगर सच्चाई को उससे छिपा भी नहीं सकती थी। रीना जानती थी की वह अपने ससुराल की मान-मर्यादा पर उंगली उठा रही है। किंतु अपने बहन के भविष्य के लिए यह आवश्यक था। जिस परिवार की बहू बनने के सपने नीतू देख रही थी, रीना उस परिवार की बहू पहले से थी। और उसे अपने ससुराल का माहौल अच्छे से पता था। रीना ससुराल के सभी सदस्यों के व्यवहार से भली-भांति परीचित थी। वह चाहती थी की नीतू को शादी से पहले सब कुछ पता हो, जिससे की उसे अपना निर्णय बदलने में आसानी हो।

 


"नीतू! मैंने हमेशा तुझे खुश देखा है। इसलिए चाहती हूं की तू आगे भी हमेशा खुश रहें।" रीना बोली।

 


"दीदी! किसी दूसरे घर में ब्यहाने से मैं खुश रहूंगी इस बात की क्या ग्यारंटी है!" नीतू का तर्क था।

 


रीना से रहा नहीं गया। उसने नीतू को वह सब बता दिया जो अब तक वह चुपचाप सह रही थी। रीना की आप बीती सुनकर नीतू स्तब्ध थी। बड़ी बहन का असीम धैर्य देखकर वह रीना के गले से जा लगी। दोनों बहनों की आंखें नम हो गईं। नीतू बोली "नारी हृदय की वास्तविक विशालता मुझे आज पता चली।"

 


"अब तू समझी। मैं क्यों इस शादी के खिलाफ़ हूं!" रीना ने पूंछा।

 


शांत खड़ी नीतू बोल उठी "दीदी! अब तो चाहे जो हो जाएं, आप ही मेरी जेठानी बनेंगी!" 

 


इतना समझने के बाद भी नीतू अगर नहीं समझी तो इसमें जरूर कोई बात थी। नीतू मंद ही मंद मुस्कुरा रही थी। मानों सबकुछ सुनकर भी उसने अनसुना कर दिया था। लेकिन रीना की व्याकुलता बढ़ती ही जा रही थी। वह जानना चाहती थी की नीतू उसके ससुराल में ही क्यों शादी करना चाहती है? जबकि वहां के कटु अनुभव वह विस्तार से बता चुकी है।

 


"दीदी! अगर आप मेरे साथ होंगी तब मैं दुनियां का हर दुःख सह लूंगी। और फिर आपका सुख- दुःख बांटने के लिए वहां मैं भी तो रहूंगी न।" नीतू ने समझाया। 

 


घर की सबसे छोटी छुटकी के मुंह से इतनी बड़ी बात सुनकर रीना का दिल भर आया। वह फूट-फूट कर रोने लगी। नीतू ने उसे संभाला। वह बोली- "आज की औरतें देश, दुनियां और समाज को बदल रही है। हम दोनों मिलकर क्या अपने ससुराल को नहीं बदल नहीं पाएंगी?"

 


रीना बोली "मुझे तो लगता है तू बड़ी है और मैं छोटी!"

 


"बहन नहीं सहेली! अपने ससुराल में हम दोनों सहेली बनकर रहेंगी। ऐसी सहेली जो दुःख को बांटे और सुख को सो गुना कर दें।" नीतू बोली।

 


नीतू के शब्द रीना को आश्वस्त करने के लिए पर्याप्त थे।

 


वह बोली- "सच कहा। देवरानी-जेठानी के रिश्तें से बड़कर होगा हमारा ये रिश्ता। सहेली का रिश्ता! जिसके आगे बड़े से बड़ा दुःख भी घुटने टेक देता है।"

 


The End 

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लेखक ~

जितेंद्र शिवहर, इंदौर

Mo.7746842533

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