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प्लेट फॉर्म पर लाश

प्लेटफॉर्म पर लाश

31 दिसंबर की वे बेहद सर्द रात थी। वह एक छोटा सा खूबसूरत हिल स्टेशन था जो घने कोहरे से ढका हुआ था। पेड़ पर्वत सभी कुछ सफेद कोहरे में लिपटे हुए जान प ड  रहे थे। कोहरे की वजह से अंधेरा और घना था। भीषण ठंड पड़ रही थी। ऐसे में जब बर्फीली हवा चलती थी तो हड्डियां तक कांप जाती थी।

रात का तकरीबन 1:00 बज रहा था। हिल स्टेशन के उस छोटे से रेलवे स्टेशन पर खामोशी पसरी थी। तभी रेलगाड़ी का हॉर्न सुनाई दिया। कोहरे में रेलगाड़ी की तेज रोशनी भी टिमटिमाती हुई प्रतीत हो रही थी।ट्रेन के हॉर्न कि आवाज़ नेऔर वहां पसरी गहरी खामोशी में खलल डाली। और फिर देखते ही देखते धड़धड़ाती  हुई  ट्रेन स्टेशन पर आकर रुकी। प्लेट फार्म पर वैसा कोई शोर शराबा नहीं उभरा जैसा अमूमन होता है क्योंकि ट्रेन से बहुत ही कम लोग उतरे थे। उस ट्रेन का वह अंतिम पड़ाव था शायद इसलिए भी।

उस छोटे से रेलवे स्टेशन पर जीआरपी चौकी के बाहर कुछ पुलिस वाले अंगीठी के पास कुर्सियां डाले बैठे थे। बीच में रखी अंगीठी में गर्म कोयला था जिससे वे लोग सर्दी दूर कर रहे  थे।

तभी एक सिपाही चौकी की दूसरी तरफ बने बाथरूम से हाथ धो कर निकला।

"ऐसी ठंड में तो धोने का मन ही नहीं करता!"रुमाल से हाथ पोछते हुए उनके पास आकर खड़ा हो गया। बाकी सब धीरे से मुस्कुराए।

ट्रेन प्लेटफार्म पर आ चुकी थी उस समय।
"जरा एक चक्कर लगा कर आता हूं!"वह सिपाही बोला और ट्रेन की ओर बढ़ गया।

"अरे मनोज और गोविंद गए हैं। तुम हाथ से को रतनलाल!"चौकी इंचार्ज विजय मुस्कुरा कर बोला।
पर रतन लाल ने शायद सुना नहीं और लंबे-लंबे डग भरते हुए प्लेटफार्म पर आगे बढ़ गया। ट्रेन आगे जाकर मुड़कर दूसरे प्लेटफार्म पर खड़ी हो रही थी सुबह वापस जाने के लिए।

वह प्लेटफार्म पर जाकर टहलने लगा। तभी प्लेटफार्म के अंतिम छोर पर पेड़ के नीचे कुछ देखकर वह उस ओर ही बढ़ गया। और जब पेड़ के नजदीक पहुंचा तो उसने सिपाही मनोज को बेंच पर बैठे शख्स पर झुके हुए पाया।
"क्या बात है मनोज?"उसने नजदीक पहुंचकर पूछा।
"यह मेरी बात का कोई जवाब ही नहीं दे रहा है!"मनोज ने फौरन असमंजस भरे स्वर में कहा।

"कौन है? और तुम्हारी किस बात का जवाब नहीं दे रहा!"

"किसी बात का नहीं! मैंने उसे यहां बैठे देखा तो सोचा बता दूं कि प्रतीक्षालय में जाकर बैठे वहां सर्दी कम लगेगी। पर यह तो कुछ बोल ही नहीं रहा।"

"देखूं तो।"लंबा चौड़ा 35 वर्षीय रतनलाल ने फुर्ती दिखाते हुए आगे बढ़कर उस 50, 55 वर्षीय शख्स का मुआयना करना शुरू कर दिया। उसने भी कई बार बेंच पर बैठे शब्द को आवाज दी पर वह बोला नहीं।

"कहीं मर तो नहीं गया सर्दी से!"पीछे खड़े मनोज ने शंका जताई। रतनलाल ने चेक किया।

"लगता तो है!"

"मैं साहब को बुला कर लाता हूं।"मनोज ने जल्दी से कहा और लंबे-लंबे डग भरते हुए जीआरपी चौकी की तरफ बढ़ गया है। और तुरंत ही लौटा तब उसके साथ इंस्पेक्टर विजय, सब इंस्पेक्टर जागेंद्र और दो तीन सिपाही भी थे। इंस्पेक्टर विजय की उम्र 40 साल के आसपास होगी। वह एक बेहद चुस्त दुरुस्त शरीर का मालिक पर पेट हल्का सा निकला हुआ था। चेहरे पर पतली मुझे रखता था। बाकी चेहरा क्लीन रखना उसे पसंद था।

"क्या हुआ?"वहां पहुंचकर विजय के मुंह से निकला।

"यह शायद मर गया!"वहां मौजूद रतनलाल ने जवाब दिया।

विजय ने भी बेंच पर बेंच की पुस्त से सर टिकाए बैठे शख्स का मुआयना किया।

"यह तो सच में मर गया! अभी कुछ मिनट पहले ही तो कर ट्रेन से उतरा  और मर गया।ट्रेन आने के पहले मैंने इस तरफ एक राउंड मारा था तब यहां कोई नहीं था।"मनोज बोला।

"कड़ाके की ठंड ने उसकी जान ले ली ! देखने से ही गरीब लगता है बेचारा। इसके पास तो ठीक ढंग के कपड़े भी नहीं है।"पीछे खड़े एक सिपाही शिवा ने कहा। बेंच पर लेटे शख्स ने साधारण सा पेंट शर्ट वह हाफ बाजू का स्वेटर पहन रखा था। गले में मफलर पड़ा था।

"इसकी तलाशी लो! देखो शायद कुछ मिले जिससे उसकी पहचान हो सके।"विजय ने कहा एक सिपाही ने मृत आदमी के कपड़ों की तलाशी लेना शुरू कर दिया।

"कुछ भी नहीं है।"तलाशी लेने के बाद सिपाही बोला।
"कुछ भी नहीं! पैसा रेल टिकट वगैरा कुछ भी नहीं है जबकि होना तो चाहिए।"

"इसके पास बैग झोला सामान वगैरह भी तो नहीं दिख रहा?"पास में खड़े शिवा सिपाही ने कहा,"लगता है दुनिया में एकदम अकेला था।"दूसरे सिपाही ने हमदर्दी जताते हुए उसका समर्थन किया।"

"बहुत बुरा हुआ बेचा रेे के साथ!"विजय को भी उस से हमदर्दी होने लगी।

फिर उसके कहने पर पुलिस वाले लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेजने के लिए तैयार करने लगे।

पुलिस वाले इस केस को सर्दी में हुई मौत समझ रहे थे पर अगले दिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट होश उड़ाने वाली थी।
पोस्टमार्टम रिपोर्ट अगले दिन शाम को आई। उस समय इंस्पेक्टर विजय सब इंस्पेक्टर जागेंद्र के साथ अपने ऑफिस में बैठा था। एक सिपाही अंदर आया और पोस्टमार्टम रिपोर्ट दे गया। जिसे विजय पढ़ने लगा। रिपोर्ट पढ़ते-पढ़ते उसके चेहरे के भाव तेजी से बदले।जिन्हें देखकर कोई भी समझ सकता था कि रिपोर्ट में कुछ अजीब आया है।

"क्या हुआ सर?"जागेंद्र ने भी यह बात नोटिस की थी इसीलिए उसने फौरन पूछा।

"हम तो समझ रहे थे कि कल रात जो हमें लाश मिली उसकी मौत सर्दी से हुई होगी पर रिपोर्ट में तो लिखा है कि इसकी गला घोंटा कर हत्या की गई।"

"क्या?"जागेंद्र पूरी तरह चौका। फिर कुछ सोचते हुए बोला,"फिर तो हत्यारे ने जरूर उसके मफलर से ही उसका गला कसा होगा और उस बेचारे को मार डाला होगा। पर उस गरीब आदमी को कोई क्यों मारेगा?"

"अब मुझे एक बात सूझ रही है।"विजय गंभीरता से कुछ सोचते हुए बोला।

"क्या?"

"मुझे लगता है मरने वाले के पास सामान वगैरह रहा होगा शायद उसी को लूटने की वजह से किसी ने उसे मारा होगा।तभी तो मरने वाले की जेबों में से भी हमें कुछ नहीं मिला। रेलवे टिकट तक नहीं।"

"रेलवे टिकट का चोर क्या करेगा?"

"लूटते वक्त क्या पता चलता है कि हाथ में नोट आया या टिकट! वह तो बाद में देखा होगा और पैसे रखकर टिकट कहीं दिया होगा।या हो सकता है कि मरने वाले ने टिकट खरीदा ही ना हो।"

"हूं। पर उस गरीब इंसान के पास ऐसा क्या होगा जिसे लूटने के लिए चोर ने उसे मार डाला।"

"आजकल इंसान की फितरत कितनी बदल गई है तुम्हें सब मालूम तो है! लोग सो ₹100 के लिए एक दूसरे का खून कर देते हैं!"

जागेंद्र को जवाब देते नहीं बना क्योंकि विजय ने सच्ची बात कही थी।

"फिर हो सकता है कि साधारण सा दिखने वाले इंसान के पास कुछ कीमती हो!"विजय ने यह संभावना भी व्यक्त कर दी।

"क्या?"

"क्या पता!"

"मुझे कुछ अजीब सा लगता है!"

"क्या ,क्यों?"

"यही कि चोर का चोरी के इरादे से उसे मार डालना। क्योंकि ट्रेन के आने और लाश के पास जाने में मुश्किल से 5 मिनट का वक्त लगा।"

"इंसान को मरने दो मिनट भी नहीं लगते ।ना क मुंह सही से बंद कर दो तो।"

"आपने सही कहा पर। पर यह कैसे हुआ होगा?"

"मतलब?"

"मतलब मान ले कि मकतूल ट्रेन से रात के 1:00 बजे उतरा और चोर ने उसे फौरन ही मार दिया। तो क्या चोर पहले से ही घात लगाए बै ठा था। उसके आते ही उस पर हमला कर दिया उसका सब कुछ लूट लिया ।"

"बिल्कुल! सिचुएशन के हिसाब से तो यही लगता है।"

"चोर को कैसे पता था कि मरने वाला उसी जगह पर आकर उतरेगा।"

"तुम गलत सोच रहे हो शायद! लूटने वाले को तो लूटना था ट्रेन से कोई भी उतरता! अब संयोग  से वह गरीब इंसान फस गया!"

"हूं। वैसे मुझे एक और संभावना नजर आ रही है।"

"क्या?"इंस्पेक्टर विजय ने अपनी नजरें उसके चेहरे पर गड़ा दी।

"कहीं ऐसा तो नहीं कि मकतूल को ट्रेन में मारा गया हो और बाद में यहां प्लेटफार्म पर छोड़ दिया गया हो बेंच पर!"

"ट्रेन में हत्या तो हो सकती है पर कोई उसे मार कर इस तरह प्लेटफार्म पर बेंच पर क्यों छोड़ जाएगा? लाश को ट्रेन के बाहर पटरियों पर नहीं फेंक देता हत्या करने के बाद।"


जागेंद्र को जवाब देते नहीं बना क्योंकि विजय ने सच्ची बात कही थी।


"फिर हो सकता है कि साधारण सा दिखने वाले इंसान के पास कुछ कीमती हो!"विजय ने यह संभावना भी व्यक्त कर दी।


"क्या?"


"क्या पता!"


"मुझे कुछ अजीब सा लगता है!"


"क्या ,क्यों?"


"यही कि चोर का चोरी के इरादे से उसे मार डालना। क्योंकि ट्रेन के आने और लाश के पास जाने में मुश्किल से 5 मिनट का वक्त लगा।"


"इंसान को मरने दो मिनट भी नहीं लगते ।ना क मुंह सही से बंद कर दो तो।"


"आपने सही कहा पर। पर यह कैसे हुआ होगा?"


"मतलब?"


"मतलब मान ले कि मकतूल ट्रेन से रात के 1:00 बजे उतरा और चोर ने उसे फौरन ही मार दिया। तो क्या चोर पहले से ही घात लगाए बै ठा था। उसके आते ही उस पर हमला कर दिया उसका सब कुछ लूट लिया ।"


"बिल्कुल! सिचुएशन के हिसाब से तो यही लगता है।"


"चोर को कैसे पता था कि मरने वाला उसी जगह पर आकर उतरेगा।"


"तुम गलत सोच रहे हो शायद! लूटने वाले को तो लूटना था ट्रेन से कोई भी उतरता! अब संयोग  से वह गरीब इंसान फस गया!"


"हूं। वैसे मुझे एक और संभावना नजर आ रही है।"


"क्या?"इंस्पेक्टर विजय ने अपनी नजरें उसके चेहरे पर गड़ा दी।


"कहीं ऐसा तो नहीं कि मकतूल को ट्रेन में मारा गया हो और बाद में यहां प्लेटफार्म पर छोड़ दिया गया हो बेंच पर!"


"ट्रेन में हत्या तो हो सकती है पर कोई उसे मार कर इस तरह प्लेटफार्म पर बेंच पर क्यों छोड़ जाएगा? लाश को ट्रेन के बाहर पटरियों पर नहीं फेंक देता हत्या करने के बाद।"


जागेंद्र को जवाब देते नहीं बना।


"वैसे सच्चाई जानने के लिए हमारे पास एक जरिया तो है!"अचानक विजय को कुछ याद आया तो उसके चेहरे पर मुस्कान को भरी।


"क्या?"


"सीसीटीवी कैमरा की फुटेज!"


"ओह हां।"


तभी दरवाजे पर किसी को देखकर विजय उस ओर देखने लगा।


"अरे दिनेश आओ! ऐसी सर्दी में गरमा गरम चाय पिलाओ भाई!"


दिनेश की स्टेशन पर ही चाय की दुकान थी। और वे उन्हें अक्सर चाय सर्व करने आता था। 25 वर्षीय हट्टा कट्टा हैंडसम सा दिखने वाला दिनेश उनकी तरफ बढ़ा। उसने एक हाथ में केतली पकड़ रखी थी तथा दूसरे में कांच के गिलास।


"तुम्हारे पैर में क्या हुआ? तुम लंगड़ा क्यों रहे?"दिनेश को लंगड़ा आते हुए देखा तो विजय पूछ बैठा।


"वह ..कुछ नहीं, थोड़ी मोच आ गई थी।"


"ओह ।वैसे तुम्हें सर्दी नहीं लगती?"विजय ने उसके पहनावे को देखकर उससे व्यंग से कहा।


दिनेश ने पेंट और शर्ट ही पहन रखा था। शर्ट के ऊपर ही दो  बटन खुले थे। उसके गले में पड़ी हुई एक माला साफ दिख रही थी जिसमें एक लॉकेट भी पढ़ा था और उसमें किसी की तस्वीर थी।


जवाब में दिनेश केवल मुस्कुराया और कांच के गिलास में चाय उड़ने लगा।


"अरे तुम भी बाबा जी के भक्त बन गए क्या?"विजय उसके गले में पड़ी हुई माला देखकर बोला। माला में एक लॉकेट पड़ा था जिसमें बाबा जी की तस्वीर थी।बाबाजी उस पूरे इलाके में बहुत फेमस व्यक्ति थे। जिनका खुद का बहुत बड़ा आश्रम था और लाखों भक्त थे। हिल स्टेशन से लगभग 60 किलोमीटर दूर उनका वह भव्य आश्रम बना हुआ था।


"उनका तो हर कोई भक्त है!"दिनेश ने बड़ी मासूमियत से कहा।


"सही बोला! उनका तो हर कोई भक्त है।"दिनेश की बात सुनकर जागेंद्र बड़े ही श्रद्धा भाव से बोला।


दिनेश वहां से रुखसत हो गया। वे दोनों पुलिसिए चाय पीने लगे। फिर जब चाय खत्म हुई तो विजय कुर्सी से उ ठते हुए बोला,"चलो सीसीटीवी फुटेज चेक करते हैं। उससे जरूर कुछ ना कुछ हाथ लगेगा!"


जागेंद्र भी उठ खड़ा हुआ।


फिर दोनों उस रूम में साथ साथ ही पहुंचे जहां उन्हें सीसीटीवी की फुटेज प्राप्त हो सकती थी। और हुई भी।

उन्होंने जब फुटेज चेक किया तो देखा की रात के 1:00 बजे ट्रेन स्टेशन पर आकर रुकी। उसमें कुछ यात्री उतरे। पर घने कोहरे की वजह से और प्लेटफार्म का अंतिम छोर सीसीटीवी कैमरा की रेंज से जो अधिक दूर था शायद तभी कुछ स्पष्ट नजर नहीं आ रहा था तीसरे पेड़ की वजह से भी बाधा आ रही थी। मरने वाला ट्रेन से उतरकर पेड़ के नीचे पड़ी बेंच की तरफ गया था अस्पष्ट रूप से ही सही पर उन्हें दिखा। फिर मिनट भर बाद ही उस शख्स के पास कोई जाता दिखा। एक तो घने कोहरे की वजह से ही स्पष्ट नजर नहीं आ रहा था दूसरे उस शख्स ने अपना चेहरा मफलर से ढका हुआ था। पर वह शख्स शीघ्र ही वहां से हटकर दूसरी तरफ चला गया था। वह शख्स लंगड़ा कर चल रहा था।फिर वहां मनोज पहुंचता दिखा। मिनट भर बाद वहां रतनलाल पहुंचा और फिर विजय और उसके साथ कुछ पुलिस वाले वहां पहुंचे फिर उसके बाद क्या हुआ सब कुछ दिखने लगा। जो कि उन्हें पहले से ही पता था।


"यह लंगड़ा कर चलने वाला शख्स ही प्राइम सस्पेक्ट है जागेंद्र!"इसे हमें जल्द से जल्द ढूंढना होगा। इसी ने उस बेचारे को मारा होगा।"


"बिल्कुल पर क्यों? अगर लूटने के इरादे से मारा होता तो उसका सामान वगैरह भी ले जाता पर वह तो ले जाते दिखा नहीं।"


"तुमने लगता है ठीक से देखा नहीं! मरने वाले के पास कुछ सामान नजर नहीं आ रहा जब वह ट्रेन से उतरा! देखो फिर से।"


विजय ने उसे दोबारा रिमाइंड कर के फुटेज दिखाए। घने कोहरे की वजह से स्पष्ट तो नजर नहीं आ रहा था पर फिर भी लगा कि वह शख्स के पास है वाकई कोई सामान नहीं था।


"हूं। सामान तो नहीं लग रहा है उसके पास पर फिर भला उसने उसे क्यों मारा होगा?"जगेंद्र ने पूछा।


"अभी क्या पता उसने किस वजह से उसे मारा? वह मिलेगा तो पता चलेगा । और हमें अब उस लगड़ाते हुए शख्स को हर हालत में ढूंडना है। इसके साथ ही साथ मरने वाले की आइडेंटिटी भी पता करनी है कि आखिर वह कौन है कहां का है क्या करता है वगैरह वगैरह। इससे भी हत्यारों तक पहुंचने में हमें मदद मिल सकती।"


"बिल्कुल सर! वैसे लाश की तस्वीर और कल जिस तरह व प्लेटफार्म पर मिली उसके बारे में तो अखबार में छप ही चुका है! पर कल के अखबार में तो यह तो आयेगा ही कि वह सर्दी से नहीं बल्कि उसे किसी ने मारा है! जरूर कोई ना कोई तो वह खबर पढ़कर हमारे पास आएगा ही।"


"बिल्कुल!"



अगले दिन ही उनकी वह संभावना सच साबित हो गए। दोपहर को 60 वर्षीय एक शख्स उनसे आकर मिला। उसने अपना नाम नरेश बताया। वह हिल स्टेशन के पास वाले गांव में ही रहता था। उसने बताया कि मरने वाले शख्स का नाम करण था और वह उसका छोटा भाई था। उसने पुलिस को बताया कि 2 साल पहले करण घर छोड़कर कहीं चला गया था। वह कहां गया था इस बारे में भी उसे कुछ नहीं पता था। आज उनके गांव में कोई अखबार लेकर आया था और उसी ने उसको वह खबर पढ़वाई थी। वरना उस तो पता ही नहीं चलता करण कि मौत के बारे में।


नरेश ने यह भी बताया कि करण शादीशुदा नहीं था। वह आजाद परिंदे की भांति जीता था। जो मर्जी में आता था वह करता था। अपने जीवन में किसी का हस्तक्षेप उसे पसंद नहीं था। वह अपनी मर्जी का मालिक था और उससे भी अलग रहता था। अपने भाई और उसकी फैमिली से भी कोई मतलब नहीं रखता। उसके नाम 5 बीघा जमीन भी थी जिसकी आमदनी वह अपनी मौज मस्ती में उड़ाता था।


"पर वह 2 साल पहले अचानक कहां चला गया और क्यों?"नरेश की पूरी बात सुनने के बाद विजय ने सवाल किया।


"पता नहीं कहां चला गया था।"


"पर क्यों?"


"वह अपनी मर्जी का मालिक था! क्या पता क्यों चला गया था!"


"आपने अभी बताया था कि वह आपसे अलग रहता था! तो जाहिर है कि आप लोगों से उसकी पटती नहीं थी। वैसे आपके परिवार में और कौन-कौन है?"


नरेश ने बताया कि उसके परिवार में उसकी बीवी और उसका एक 28 वर्षीय बेटा राजेश है।


विजय कुछ सोचने लगा।


"आपका बेटा क्या करता है?"फिर उसने पूछा।


"जी यही हिल स्टेशन पर गाइड का काम करता है!"


"हूं। ठीक है। फिर भी उसके गायब होने के पीछे कोई अनुमान तो होगा आपका।"


नरेश हिचकिचाया।


"यह तो नहीं है पर जब गायब हुआ तो उसकी एक इच्छा जरूर थी।"


"कैसी इच्छा?"


"वह शादी करना चाहता था! वह भी 50 साल की उम्र में।"


"उसने आपसे इस संबंध में बात की थी?"


"हां तभी तो पता चला!"


"पर आप कह रहे थे कि वह आपसे अलग रहता था?"


"हां पर अपने फायदे के लिए कभी-कभी बोल देता था!"



"करा देते। क्या समस्या थी।"


"उसकी उम्र ही समस्या थी साहब? अब 50 साल के इंसान से कौन शादी करता है? कौन अपनी बेटी को कुएं में ढकेल ता है!"


"बहुत हैं!"


विजय की बात पर नरेश हड़बड़ा गया।


"वैसे मुझे तो लगता है कि आप ने जानबूझकर उसकी शादी नहीं करवाई! क्योंकि आपकी मंशा उसकी जायदाद को हड़पने पर थी।"


"अरे नहीं साहब ऐसी कोई बात नहीं!"


"अच्छा जब  वह शादी के लायक था तब क्यों ना की उसकी शादी?"


"तब तो उसने ही नहीं की।"


"क्यों?"


"गांव में एक लड़की को चाहता था पर उसकी शादी कहीं और हो गई तब उसने प्रण कर लिया था कि वह शादी कभी नहीं करेगा। जबकि मैंने उस समय उसे बहुत समझाया था पर उसने मेरी एक ना सुनी।"


"हूं। तो उसकी शादी नहीं हो पा रही थी इसी बात से नाराज होकर तो नहीं चला गया था।"


"पता नहीं!"


"वैसे क्या आपको सच में पता नहीं था कि आपका भाई  करण 2 साल पहले नाराज होकर कहां चला गया था?"विजय को शायद लग रहा था कि नरेश कुछ छुपा रहा है तभी वह बार-बार ऐसे प्रश्न कर रहा था।


नरेश हिचकिचाया।


"यानी पता था।"


"3 दिन पहले तक तो नहीं पता था साहब!"नरेश कुछ सोच कर हिच कि चाते हुए आखिर बोला।


"मतलब 3 दिन पहले आपको पता चल गया था की करण कहां है?"


"हां! मेरे बेटे राजेश ने रात के तकरीबन 12:45 बजे के आसपास मुझे फोन कर बताया था!"


"क्या बताया था?"


"उस वक्त वह हरिद्वार घूम कर लौट कर आ रहा था और ट्रेन में था। उसने बताया था कि उसी ट्रेन में करण भी है। पर उस की करण से कोई बात नहीं हुई थी।"


"क्यों?"


"क्योंकि करण और मैं मेरे बेटे की बिल्कुल भी नहीं पटती  थी। मेरे बेटे को करण की लाइफ स्टाइल बिल्कुल भी पसंद नहीं थी।"


" हूं।और उसी रात उसका कत्ल भी हो गया।"


नरेश कुछ नहीं बोला।


"फिर तुमने अपने बेटे से क्या कहा था?"विजय नरेश के चेहरे पर नजरें गड़ाते हुए बोला।


"यही कि वह करण को माना कर घर ले आए।"


"ठीक ।फिर क्या हुआ?"


"फिर पता नहीं।"


"क्यों?"


"तब से बेटे का फोन बंद आ रहा है। मेरी उससे कोई बात नहीं हुई।"


"कहीं तुम्हारे बेटे ने खुन्नस में आकर ही तो अपने चाचा का खून नहीं कर दिया?"


"अरे नहीं नहीं साहब! मेरा बेटा राजेश ऐसा कभी नहीं कर सकता!"


"अभी आपने बताया तो था कि उन दोनों में बिल्कुल नहीं पटती थी। हो सकता है वह करण से बात करने गया हो और ऐसा कुछ हुआ हो जिसकी वजह से उसे गुस्सा आ गया और उसने उसको मार दिया हो। या फिर उसने जानबूझकर ऐसा किया हो क्योंकि करण तो वैसे भी सबकी नजरों में 2 साल से गायब था उसने सोचा होगा मौका अच्छा है ऐसे में उसे मार दे ताकि बाद में उसकी सारी जायदाद आप लोगों के नाम हो जाएगी। फिर सोचिए क्या उसे करण की मौत के बारे में पता नहीं चला होगा। वह ना तो यहां आया और ना ही आप लोगों को किसी को खबर की। क्या हो सकता है आप लोगों को की हो और आप छुपा रहे हो।"



नरेश के चेहरे पर घबराहट के भाव साफ दिखाई दे रहे थे। पर वह लगातार कह रहा था कि यह सच नहीं है वह या उसका बेटा करण को नहीं मार सकते।"


"अभी तो मेरा अनुमान है! सच्चाई तो बाद में पता चलेगी! खैर आप अपने बेटे का मोबाइल नंबर और यहां का एड्रेस दीजिए।"


नरेश को देना पड़ा।


"वैसे आपको किसी पर शक हो या करण की किसी से लड़ाई झगड़ा दुश्मनी वगैरह हो तो बताइए।"


"मुझे इस बारे में कुछ भी पता नहीं।"नरेश ने पल्ला झाड़ने वाले अंदाज में कहा।


"उसकी कोई तस्वीर वगैरह हो तो दो "


नरेश ने अपने फोन में से अपने बेटे की फोटो दिखाएं जिसे विजय ने अपने फोन में सेंड करवा लिया।


उसके बाद करण की लाश को नरेश को सौंप दिया गया।


"नरेश के बेटे राजेश को फोन लगाओ जरा!"इंस्पेक्टर विजय ने सामने बैठे जागेंद्र से कहा।


उसने तुरंत ही आदेश का पालन किया।


"उसका फोन तो बंद आ रहा है!


"हूं। नरेश ने जो एड्रेस दिया था उस पर जाकर चेक करो। देखो राजेश मिलता है क्या।"


जागेंद्र फौरन आदेश का पालन करने के लिए कमरे से बाहर निकल गया। तकरीबन 1 घंटे बाद जब वह लौटा तो उसके साथ 27,28 साल का हट्टा कट्टा लड़का उसके साथ था। उसकी शक्ल देखकर विजय जान गया कि वही राजेश है। नरेश द्वारा राजेश की दी गई फोटो उसके मोबाइल में अभी भी थी। इतनी जल्दी कैसे भूलता!


"तो तुम्हें राजेश हो नरेश के बेटे?"राजेश को कुर्सी पर बैठ जाने के लिए बोलने के बाद विजय ने उससे पूछा।


"जी!"राजेश के मुंह से डरा सहमा स्वर सुनाई दिया।


"ठीक है। मैं सीधे मुद्दे पर आता हूं। तुम बताओ तुमने अपने चाचा को क्यों कैसे मारा?"विजय उसकी आंखों में देखते हुए बोला। जबकि वह विजय के सवाल पर बुरी तरह घबरा गया।


"मैंने किसी को नहीं मारा सर?"वह फौरन घबराकर बोला।


विजय उसके चेहरे के भावो को गंभीरता से पढ़ने लगा। उसने फिर कहा"तुम कत्ल वाली रात उसी ट्रेन में सफर कर रहे थे जिसमें तुम्हारे चाचा करण सफर कर रहे थे और यह बात तुम्हारे पिताजी मुझे बता चुके हैं।"


"हां यह बात सच है!"


"यह बात सच है तो यह बात भी सच है कि करण को तुमने ही मारा क्योंकि तुम्हारे पास मोटिव भी था। तुमने मौके का फायदा उठाते हुए अपने चाचा को मार दिया क्योंकि उसकी सारी जमीन जायदाद अब तुम सब लोगों की होगी?"


"आप मुझ पर गलत इल्जाम लगा रहे हैं सर!"मैं जिस ट्रेन में था उसमें मैंने चाचा को भी देखा था। जो कि 2 साल पहले पता नहीं कहां चले गए थे। उन्हें ट्रेन में देखकर मैं चौंक गया। क्योंकि वह हम लोगों से मतलब नहीं रखते थे इसीलिए मेरी उनसे बात करने की हिम्मत नहीं पड़ी इसीलिए मैंने अपने पापा को पहले फोन कर उनके बारे में बताया था।"


"करण को मारने का आईडिया उन्होंने ही दिया था क्या?"


"अरे नहीं उन्होंने ऐसा कुछ नहीं कहा था! वे तो चाहते थे कि मैं चाचा से बात करूं और उन्हें घर ले आऊं।"


"क्या पता हो तुम झूठ बोल रहे हो! तुम्हारे पापा ने ही तुम्हारे चाचा को मारने की सलाह दी हो।"


राजेश के चेहरे पर झल्लाहट के भाव उभरे।


"या तुम्हारे दिमाग में ही यह आया हो करण तो वैसे भी सबकी नजर में 2 साल से गायब है अगर उसे इस तरह मार भी दिया जाए तो किसी को क्या पता चलेगा! तुम्हारी उससे बनती भी नहीं थी। उसका कोई है भी नहीं जो पूछताछ करता! और देर सवेर उसका जो कुछ था सब तुम्हें मिल ही जाता!"


"अरे ऐसा कुछ नहीं है सर! मेरा यकीन कीजिए मैंने उन्हें नहीं मारा।"


"हमारे पास सबूत है!"अचानक विजय ने कहा तो राजेश ने हैरत से उसकी ओर देखा।


"हमने कत्ल वाली रात की सीसीटीवी फुटेज चेक की थी। उसमें हमने देखा की करण के पास एक शख्स पहुंचा था जब वह ट्रेन से उतर कर बेंच पर बैठा होगा। और वह लंगड़ा रहा था। अभी तुम अंदर है आए तो मैंने देखा कि तुम भी लंगड़ा रहे थे?"


राजेश बगले झांकने लगा।


"क्या तुम वह शख्स नहीं थे?"


राजेश ने सूखे होठों पर जुबान फेरी।


"बोलो?"


"वह मैं ही था! पर मैं सच कहता हूं मैंने उन्हें नहीं मारा। मैं उनसे बात करने गया था।"


विजय ने उसे तेज नजरों से घूरा।


"ठीक! क्या बात हुई उनसे फिर?"


"कुछ भी नहीं।"


"अरे क्यों?"


"मेरी किसी भी बात का उन्होंने उत्तर नहीं दिया?"


"क्यों?"


वह हिचकिचाया।


"कहीं तुम यह तो नहीं कहना चाहते कि जब तुम उनके पास पहुंचे तो वह पहले से ही मरा पड़ा था!"


"हां मैं यही कहना चाहता हूं! मेरी जब किसी भी बात का उन्होंने उत्तर नहीं दिया तो मुझे बड़ा अजीब लगा। वह वैसे ही बेंच पर उड़के बैठे रहे। मैंने उन्हें हिलाया तो वह कटे पेड़ की तरह बेंच पर गिर गए। तभी मैंने उस और एक सिपाही को आते हुए देखा तो मैं घबरा गया।उन्हें जल्दी से उठा कर बिठा कर वहां से चला गया।"


विजय उसे तीखी नजरों से देखता रहा। शायद अनुमान लगा रहा था कि वह सच बोल रहा है या झूठ।


"तुमने अपना फोन क्यों बंद कर रखा था?"


"उस रात घबराकर भागते वक्त मेरा फोन गटर में गिर गया था और गटर में फोन को ढूंढना मेरे बस की बात नहीं थी।"


"यानी तुम यह कहना चाहते हो कि उसी रात तुम्हारा फोन खो गया जो फिर मिला नहीं!"


"जी।"


"पर तुम्हें अनुमान तो हो ही चला था फिर अगले दिन पेपर में भी पढ़ा होगा फिर क्यों तुमने करण के बारे में घरवालों को इनफॉर्म किया और ना ही यहां पूछताछ कि आकार?"


"मैं कुछ ज्यादा ही डर गया था?"मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं!"


"हूं।"


तभी एक सिपाही एक 40 वर्षीय व्यक्ति के साथ अंदर आया और विजय से बोला,"सर यह आपसे मिलना चाहते? करण के बारे में कुछ बताना चाहते हैं।"


"तुम जाओ अभी। हिल स्टेशन छोड़कर मत जाना। जरूरत पड़ी तो दोबारा बुलाएंगे।"


"जी!"


राजेश वहां से फौरन बाहर चला गया।


विजय ने उस 40 वर्षीय व्यक्ति को राजेश की कुर्सी पर बैठने को कहा और उससे बातचीत शुरू कर दी।


"साहब मेरा नाम राजू है,"उस सांवली सूरत वाले व्यक्ति ने कहना शुरू किया,"यहीं इसी हिल स्टेशन पर रहता हूं। दो रोज पहले प्लेटफार्म पर लाश मिली थी उसके बारे में मुझे कुछ बताना है।"


"बताओ?"


"पता नहीं वह बात इस केस में आपकी कोई हेल्प करेगी भी या नहीं..।"


"वह हम देख लेंगे! तुम बताओ जो बताना चाहते हो?"


"साहब वह हरिद्वार के निकट बाबा जी का आश्रम है।"


"वह फेमस धार्मिक बाबाजी जिन्हें भगवान का अवतार कहते हैं?"उसके बा त बीच में काट कर जागेंद्र बोल पड़ा।"


"जी।"


"उनका तो मैं भी बहुत बड़ा भक्त हूं।"जागेंद्र हाथ जोड़कर बड़ी श्रद्धा भाव से बोला।


"तुम क्या हम सब उनके भक्त हैं।"


"जी सर जी सर!"


"हां तो.. आगे बताओ?"विजय बोला।


"वह प्लेटफार्म पर जिसका कत्ल हुआ था करण वह उन्हीं बाबा जी के आश्रम में रहता था।"

विजय ने जागेंद्र की ओर प्रश्न चिन्ह नजरों से देखा।

"तुम्हें कैसे पता?"

"मैं भी कुछ महीनों पहले वही रहता था। और वहीं पर उससे मुलाकात हुई थी। मुझे लगा आपको यह बात बतानी चाहिए। शायद आपके किसी काम आ जाए।"

"जब दोनों लोग वहां पर थे तो और भी कई बातें हुई होंगी। ऐसी कोई और बात है जिसका जिक्र जरूरी हो?"विजय ने नजरें राजू के चेहरे पर गड़ा सी दी।

"और तो ऐसी कोई बात नहीं!"

"उसने यह नहीं बताया था कि वह आश्रम में क्यों रह रहा था?"

"लोग अपनी मर्जी से ही जाते हैं वहां!"

"ठीक है पर कुछ मजबूर, सताए हुए ,बेबस जिनका कोई आसरा नहीं होता ऐसे लोग भी तो जाते हैं वहां?"

"जी बिल्कुल! वहां तो हर प्रकार के लोग आते जाते हैं!"

"फिर?"

"इस बारे में भी एक बार बात हुई थी तो उसने केवल यही बताया था कि वह दुनिया में बिल्कुल अकेला है। कहने को तो भाई है उसका पूरा परिवार है पर भी सब कहने भर के हैं।"

विजय को नरेश की बातें याद आने लगी।

"तुम अभी भी वही रहते हो?"

"नहीं। 7 महीने पहले ही वापस आ गया था। अब घर पर ही रहता हूं।"

"क्यों?"

"पहले कुछ उलझन  थी दिमाग में! मुझे लगता था आश्रम जाकर सब ठीक हो जाएंगी। और सच में वहां चमत्कार सा हुआ। वहां का सुंदर-सुंदर वातावरण और बाबा जी के अनमोल ज्ञान से मेरी सारी समस्या दूर हो गई। तो फिर मैं वापस घर चला आया।"

"लाश के बारे में तो परसों ही पेपर में छपा था तब क्यों नहीं बताने आए?"

"दरअसल मैं अखबार नहीं पढ़ता। पर आज यूं ही चाय की दुकान पर अखबार पर नजर पड़ गई मुझे लगा की लाश को मैं पहचानता हूं ।दिमाग पर जोर डाला तो याद आ गया। और सीधा यहां चला आया।"

"हूं। ठीक है । शुक्रिया।"

राजू वहां से रुखसत हो गया।

"करण तो शादी करने वाला था फिर यह आश्रम में कैसे?"राजू के जाते ही विजय ने कुछ सोच कर जागेंद्र से कहा।

"मनुष्य का दिमाग है! पल-पल बदलता है ख्वाहिशों के कारण। और यही ख्वाहिश है उसके  दुख का कारण होती है। और दुख के निवारण के लिए ही इंसान बाबा जी के आश्रम में जाता है। जय हो बाबा जी की।"जागेंद्र किसी दार्शनिक की भांति  दोनों हाथ ऊपर उठाकर बोला।
विजय ने उसे गंभीर नजरों से देखा और फिर कुछ सोचने लगा।

"आप क्या सोच रहे हैं सर?"जागेंद्र ने पूछा।

"मैं सोच रहा था कि क्या करण की मौत का संबंध आश्रम से हो सकता है?"विजय तन कर बैठते हुए बोला।

"क्या बात कर रहे हैं सर! भला आश्रम का करण की मौत से क्या संबंध?"जागेंद्र को हैरत हुई।

"ऐसा कुछ जिसने करण की जान ले ली हो।"

"मुझे ऐसा नहीं लगता?"

"मुझे भी। पर वहां जाकर तहकीकात तो करनी ही पड़ेगी।"

जागेंद्र ने हैरत से विजय की ओर देखा।

हिल स्टेशन से बाबा का आश्रम 60 किलोमीटर की दूरी पर था। विजय ट्रेन से वहां पहुंचा।आश्रम में जाने से पहले वहां के लोकल पुलिस के एसएचओ को भी साथ ले गया। बाबा जी का आश्रम बड़ा ही भव्य था। हजारों भक्तों का ताता लगा था। बाबाजी का प्रवचन चल रहा था।आश्रम के प्रमुख हेड वा सेवादार कमल जी से विजय ने मुलाकात की। कमल ने मुलाकात में यही बताया कि करीब 2 साल पहले करण आश्रम आया था। परेशान था। पर बाबा जी की शरण में रहकर सब ठीक हो गया था। वह तन मन से वहां आने वालों की खूब सेवा किया करता था। इसीलिए बाबाजी का खास सेवक बन गया था। बाबा जी को वह बहुत पसंद है। पर एक दिन वह अचानक गायब हो। उसके गायब होने के अगले दिन ही पास जंगल में एक लड़की की लाश मिली जिस की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में आया था उसके साथ रेप भी हुआ था।

कई लोगों का अनुमान था कि लड़की के साथ रेप और मर्डर करन ने ही किया था और इसीलिए वह गायब हो गया था। इस बारे में केवल अंदेशा ही था कोई भी इस बात को पक्के तौर पर नहीं कह रहा था। पर चूंकि करण उसी रात से गायब था इसीलिए उस पर शक तो लगभग सभी कर रहे थे।

आश्रम से निकलकर विजय एसएचओ के साथ कार की तरफ बढ़ रहा था तभी जागेंद्र का फोन पहुंच गया।

"वह क्या मालूम हुआ सर?"जागेंद्र ने उत्सुकता बस पूछा। विजय ने संक्षेप में सारी बात बताई। जागेंद्र की बातों से लगा की लड़की के साथ रेप और मर्डर करके ही कर भागा था और उसे यह अंदेशा सच जान पडा।

"अभी मैं उस लड़की के घरवालों से मिलने जा रहा हूं बाद में बात करता हूं।"विजय ने कहा और फोन काट दिया।
विजय अगले दिन वापस लौटा। इस समय है अपने ऑफिस में जागेंद्र के साथ बैठा था। बाहर अभी भी बहुत सर्दी पड़ रही थी। हालांकि कोहरा कुछ कम था और अन्य दिनों की अपेक्षा।

"मुझे तो लगता है लड़की का रेप और मर्डर करके ही करण भागा होगा। वैसे भी आश्रम में आने से पहले वह शादी करना चाहता था। आश्रम में रहकर सुधर तो गया होगा पर अपनी शादी वाली ख्वाहिश नहीं दबा पाया होगा इसीलिए जैसे ही उसे मौका मिला उसमें काम कर दिया। काम वासना से तो विश्वामित्र जैसा ऋषि भी नहीं बच पाया था फिर भला करण की क्या औकात थी।"जागेंद्र बोला।

"हो सकता है यह बात सच हो पर अभी कुछ भी कहना मुश्किल है। तुम जरा दिनेश को बुलाओ।"

"उसे क्यों?"

"मुझे लगता है कि करण की मौत में वह इंवॉल्व है।"

"क्या?

"पहले बुला कर लाओ से।"

जागेंद्र ने दिनेश को बुलाने के लिए एक सिपाही को भेज दिया। कुछ ही देर में सिपाही दिनेश को लेकर वहां उपस्थित हुआ।

"आपने मुझे बुलाया सर?"

"हां। आओ बैठो जरा तुमसे बात करनी है।"

दिनेश उसकी ओर बढ़ा। विजय उसकी चाल पर बड़े गौर से नजरें टिकाए था। दिनेश लंगड़ा ते हुए उसके पास आया और एक विजिटिंग चेयर पर बैठ गया

उसके चेहरे का डर बहुत कुछ कह रहा था। उसके मन में तमाम आशंकाएं उमड़ रही थी।


"दिनेश मैं सीधे तौर पर तुमसे पूछ रहा हूं और तुम मुझे सीधा सीधा ही आंसर देना।"विजय के स्वर में सख़्ती थी।

"क्या?"वह और डर गया।


"बताओ तुमने करण को कैसे और क्यों मारा?"


"क्या!,"दिनेश तो कुर्सी से उछल पड़ा।,"मैं भला करण को क्यों मारूंगा साहब?"


"दिनेश मुझे सब पता चल चुका है। सीधी तरह अपना जुर्म कबूल कर लो।"


"क्या कबूल कर लू? जब मैं ने कर्ण को मारा ही नहीं.. और फिर भला मैं करण को क्यों मारूंगा मैं तो उसे जानता तक नहीं था।"


"मैं बताता हूं कि तुम ने कर्ण को क्यों मारा?,"विजय दाती पीसते हुए बोला,"तुमने अपने बुआ की लड़की जो रिश्ते में तुम्हारी बहन  लगती थी उसके लिए तुमने करण को मारा। तुम्हारी बुआ की लड़की वही लड़की थी जिस की लाश आश्रम के पास पाई गई थी और उसके साथ रेप भी हुआ था। उसी रात कारण भी आश्रम से गायब हो गया था और यहां हिल स्टेशन पर आ गया था। याद आया कुछ?"

दिनेश के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थी। वैसे उसका चेहरा पीला पड़ने लगा था।


"जिस रात करण का मर्डर हुआ हमने सीसीटीवी फुटेज चेक किया था। उसके ट्रेन से उतरने के 1 मिनट बाद ही एक शख्स लगड़ाते हुए पास पहुंचा था। और वह तुम थे!"


जागेंद्र ने हैरत से विजय की ओर देखा। क्योंकि उसकी जानकारी में तो उस  रात करण के पास लंगड़ा कर पहुंचने वाला शख्स करण का भतीजा राजेश था जिसने वह बात कबूल भी की थी। फिर विजय ने दिनेश से इस बारे में क्यों बात की वह सोच नहीं पा रहा था क्योंकि फुटेज में अन्य और कोई व्यक्ति करण के पास पहुंचता दिखा भी नहीं था। जो दिखा था वह पहले ही कबूल कर चुका था।


"मैं सच कह रहा हूं साहब मैंने करण को नहीं मारा। रही बात मेरी बुआ की लड़की की। तो उसके साथ रेप मर्डर हुआ यह बात सच है पर यह बात मुझे अगले दिन अखबार में पता चली थी।"


विजय ने दिनेश के चेहरे को गौर से देखा। वह पढ़ने की कोशिश करता रहा कि दिनेश सच बोल रहा है या झूठ। पर कुछ समझ नहीं सका।


तभी  एक सिपाही एक दुबले-पतले 40 ,45 साल के व्यक्ति को लेकर अंदर आया।


"साहब एक आदमी आपसे मिलना चाहते हैं। करण से जुड़ी हुई कुछ बात बताना चाहते हैं ।"सिपाही ने कहा

"ठीक है। बुला लाओ।"


सिपाही वापस मुड़ गया



"ठीक है अभी तुम जाओ जरूरत पड़ी तो फिर बुला लूंगा!"


दिनेश उठा और बाहर चला गया।


"आपको कैसे पता चला कि जो लड़की मरी थी वह दिनेश की बुआ की लड़की थी?"दिनेश के जाते ही जागेंद्र ने पूछा।


"मैं लड़की के घर पर गया था उसके घरवालों से मिलने। वही एक तस्वीर नहीं थी जिसमें दिनेश भी था। मेरे पूछ रहे पर घरवालों ने बताया था।"


"इसीलिए आपको लगा कि दिनेश करण को मार सकता है!"


"क्योंकि करण को मारने के लिए उसके पास पुख्ता मोटिव था।"


"पर उसका तो कहना है कि उसे लड़की की मौत के बारे में अगले दिन अखबार में पता चला जबकि करण को मारने के लिए उसे उसी रात में ही पता चलना चाहिए था। ना सिर्फ पता चलना चाहिए था बल्कि उसके दिमाग में क्लियर होना चाहिए था कि लड़की के साथ वह सब कारण नहीं किया था। और कर्ण उस समय हिल स्टेशन पर आ रहा था। यह सारी बातें उसे रात नहीं मालूम होनी चाहिए थी पर वह तो कहता है कि उसे लड़की के मौत के बारे में ही सुबह पता चला। फिर कैसे मुमकिन है कि उसने करण को मारा होगा?"


"क्या पता झूठ बोल रहा हूं!उस सारी जानकारी कहीं से हासिल हुई हो। उस से दोबारा पूछताछ करनी पड़ेगी सख्ती से।"


तभी सिपाही उस आदमी को अंदर लाकर छोड़ गया।

उस दुबले पतले आदमी ने दोनों पॉलिसियों का अभिवादन किया।


"आओ बैठो।"विजय ने कहा।


वह आया और दिनेश द्वारा खाली की गई कुर्सी पर बैठ गया। जागेंद्र उसके पास वाली कुर्सी पर ही बैठा था।


"बोलो क्या बताना चाहते हो?"विजय उसके चेहरे पर नजरें एक आते हुए बोला।


जवाब में उसने फोन निकाला। उसमें कुछ छेड़खानी की और विजय की तरफ बढ़ा दिया।  फोन में एक वीडियो चल रहा था।जगेंद्र अपनी जगह छोड़ कर विजय के पास खड़ा होकर वीडियो देखने लगा।वीडियो देखते देखते दोनों के चेहरों के बदले हुए भाव स्पष्ट बता रहे थे कि वीडियो में जरूर कुछ सीरियस मैटर है।


"यह तुम्हें कैसे मिला?"वीडियो देखने के बाद विजय ने सामने बैठे शख्स से पूछा।


"साहब मेरा नाम मोहनलाल है।  मैं और करण एक ही गांव  के है। यह वीडियो मुझे करण ने ही भेजा था। 2 दिन से मोबाइल की बैटरी चार्ज नहीं थी क्योंकि गांव में लाइट नहीं आ रही थी। आज आई तो मैंने फोन चार्ज किया और जब इसे खोला तब मुझे पता चला इस वीडियो के बारे में।"


"करण तुम्हारा जिगरी दोस्त था!"


"जिगरी तो नहीं पर जिगरी जैसा ही था। अपने घरवालों से ज्यादा मुझ पर विश्वास करता था ।"


"इसीलिए उसने तुम्हें यह वीडियो भेजा।"


"जी। मुझे लगता है उसका खून इसी वीडियो की वजह से ही हुआ।"


"हूं। हो सकता है। ठीक है तुम जाओ। अभी इस वीडियो के बारे में किसी को बताया तो नहीं?"


"नहीं। जैसे ही देखा वैसे ही आप के पास चला आया।"


"फिलहाल बताना भी मत! तुम्हारा फोन अभी हमारे पास रहेगा। बहुत जल्द वापस मिल जाएगा। डोंट वरी।"


मोहनलाल हां में गर्दन हिलाते हुए बाहर निकल गया।


"आप क्या कहते हो?"मोहनलाल के जाते ही विजय ने पास खड़े जागेंद्र की तरफ देखकर बड़े ही रहस्यमय ढंग से गंभीर मुद्रा में कहा।


"इतना बड़ा झोल! मैंने तो कल्पना भी नहीं की थी।"जागेंद्र का स्वर हैरत में डूबा था।


"करण जब ट्रेन में होगा तभी उसने वह वीडियो अपने दोस्त को फॉरवर्ड कर दिया होगा!"
"लगता तो ऐसा ही है क्योंकि ट्रेन से उतरने के बाद तो उसका कत्ल ही हो गया!"
"अगर ट्रेन से उतरकर व सीधा हमारे पास आ जाता और वीडियो हमें दिखाता तो बेहतर रहता। उसकी जान भी बच जाती।"
"पता नहीं उसके दिमाग में क्या चल रहा था! या हो सकता है ट्रेन से उतरकर वह बेंच पर बैठकर सोचा बिचारी कर रहा हो कि आखिर उसे क्या करना चाहिए। वैसे भी आजकल तो लोग पुलिस पर भी जल्दी में विश्वास नहीं करते।"
"हूं। पर जब हमने उसकी तलाशी ली थी तो उसके पास कोई फोन नहीं निकला। जबकि फोन उसके पास था। तभी तो अपने फोन से उसने वह वीडियो अपने मित्र  को भेजा।"
"मुझे अब यह क्लियर लग रहा है कि उसकी हत्या इसी वीडियो की वजह से ही हुई!"
"हूं। तुम जरा दिनेश को बुलाकर लाओ।"
"उसे क्यों?"
"पता चल जाएगा।"
जागेंद्र बाहर निकल गया।
कुछ देर में वह दिनेश के साथ वापस लौटा। इस बार दिनेश के चेहरे पर पहले से ज्यादा डर साफ दिख रहा था। और विजय को अपनी ओर घूरते हुए देख कर तो कापने सा लगा था।
"बैठो।"विजय ने कड़े स्वर में कहा।
दिनेश डरते हुए कुर्सी पर बैठ गया।
"दिनेश तुम कभी आश्रम गए थे?"विजय ने उसके चेहरे पर नजरें गड़ा कर पूछा।
उसने ना में गर्दन हिलाई।
"शायद गए हो पर तुम्हें ध्यान ना हो?"
"ऐसा कैसे हो सकता है साहब! अगर मैं आश्रम जाता तो मुझे ध्यान होता!"
" फिर तुम्हारे गले में जो बाबा जी की तस्वीर वाली माला पड़ी है वह कहां से आई?"विजय के इस प्रश्न पर वह चौका। फिर उसने खुद को संभाला और बता दिया।
"वह मुझे आप के ऑफिस के बाहर डस्टबिन में पड़ा मिला था।"
विजय ने उसे तीखी नजरों से देखा।
"तुम यह कहना चाहते हो कि जीआरपी पुलिस चौकी के बाहर जो डस्टबिन रखा है उसमें से तुम्हें यह माला मिली?"
"जी!"
विजय ने पास खड़े जागेंद्र की तरफ देखा।
"अब डस्टबिन में किसने फेंका यह तो पता करना बड़ा मुश्किल होगा?"क्योंकि वहां पर तो सीसीटीवी कैमरा उपलब्ध नहीं है।"जागेंद्र ने  शंका जताई ।
"मुझे मालूम है डस्टबिन में यह माला किसने फेंकी थी?"तभी दिनेश बोल पड़ा।
"अच्छा! बताओ।"
"मनोज सर ने।"
"मनोज! जो यहां चौकी में सिपाही है?"विजय ने हैरानी से पूछा।
"जी।"
दोनों पुलिसियो की नजरें मिली है।
"ठीक है तुम जाओ!"

उसी शाम कमिश्नर के साथ विजय पूरे पुलिस फोर्स के साथ आश्रम में हाजिरी भर रहा था।
"हम आप को गिरफ्तार करने आए हैं बाबा जी!"कमिश्नर ने बाबाजी के कमरे में उससे कहा।
"क्या बकते हो कमिश्नर?"बाबाजी का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया,"हमें किस जुर्म में गिरफ्तार करने आए हो?"
"4 दिन पहले आश्रम के पीछे जंगल में एक लड़की की लाश मिली थी जिसके साथ रेप हुआ था और अब हमें पता चल गया है कि वह रेपिस्ट और हत्यारा कौन है।"
"कौन है?"बाबा जी की आवाज कांप गई।
"अभी भी नहीं समझे। तुम! तुमने ही उस लड़की से रेप और उसका मर्डर किया।"
"क्या बकते हो कमिश्नर! तुम्हारा दिमाग तो ठीक है!"बाबाजी चिल्लाया।
"हमारा तो ठीक है। पर तुम्हारा दिमाग ठीक करने की जरूरत है।"
"तुम किस आधार पर इतना बड़ा जुर्म मेरे ऊपर थोप रहे हो?"
"हमारे पास सबूत है!,"कमिश्नर बड़े ही खास अंदाज में चहल कदमी करते हुए बाबाजी की तरफ बढ़ते हुए बोला,"लड़की से रेप और मर्डर करते वक्त करण ने अपने मोबाइल में इस घटना को कैद कर लिया था उसका वीडियो बना लिया था। और अब वह वीडियो हमारे पास है । विजय दिखाओ भाई बाबा जी को वह वीडियो दिखाओ।"
विजय ने आगे बढ़कर मोहनलाल के फोन में कैद वह वीडियो दिखाएं जिसमें बाबा उस लड़की के साथ बलात्कार और फिर उसका उसकी हत्या करते हुए कैद था।
बाबा को काटो तो खून नहीं।
"इसी वीडियो के लिए ही करण का मर्डर हुआ। वीडियो बनाते वक्त तुमने देख लिया था की करण ने उस घटना का वीडियो बना लिया है और तुमने अपने आदमियों से उसे पकड़ने के लिए कहा था पर वह ज्यादा फुर्तीला निकला और स्टेशन तक पहुंच गया था। फिर वहां से हिल स्टेशन की ट्रेन में बैठ कर चला गया था। पर आगे जब हर स्टेशन पर उतरा तो उसका खून हो गया जो कि तुम्हारे कहने पर ही किया गया। करण को इस बात की आशंका रही होगी तभी उसने अपने मोबाइल से यह वीडियो अपने दोस्त मोहनलाल को फॉरवर्ड कर दिया था जिसने आज ही वह फोन पुलिस को आ कर दिया।"
बाबा जी को कोई जवाब नहीं आया।
फिर पुलिस उसे गिरफ्तार कर आश्रम के पीछे के दरवाजे से निकल गई। आगे से जाने में उसके पागल भक्तों द्वारा अड़चन उत्पन्न किए जाने का खतरा था।
रास्ते में उस इलाके के एसएचओ ने विजय से पूछा,"वैसे करण का हत्यारा कौन है?"
"रतनलाल।"
"रतनलाल!
"हमारे ही चौकी का एक सिपाही है। पहले हम समझे थे कि हत्यारा दिनेश है। दिनेश स्टेशन पर चाय बेचता है। जिस लड़की के साथ बाबा ने गलत काम किया। वे उसकी बुआ की लड़की थी। हमने सोचा शायद उसने उसी का बदला लेने के लिए करण को मारा होगा।"
"पर उसे कैसे शंका उत्पन्न हुई कि उसकी बुआ की लड़की को करण ने मारा है?"
"पहले हमें लगा कि जरूर उसे किसी ने तो बताया ही होगा तभी तो उसने करण को मारा। पर एक संभावना और भी दिखी जब उसके गले में हमने बाबाजी के लॉकेट वाला माला देखा। हमें लगा कि वह बाबा जी के आश्रम में गया था। उनका भक्त था। शायद लड़की के बारे में और कर्ण के बारे में इंफॉर्मेशन वही से प्राप्त हुई हो। पर जब उसने बताया कि वह आश्रम कभी नहीं गया। और वह माला उसे जीआरपी चौकी के बाहर रखे डस्टबिन में पड़ा हुआ मिला। फिर उसने यह भी बताया कि उसने मनोज को वह माला डस्टबिन में फेंकते हुए देखा था।"
"मनोज कौन?"
"हमारी चौकी में ही एक सिपाही है।"
"ओह ।वैसे माला के आधार पर कैसे किसी पर  शक किया जा सकता है। बाबा का माला तो उनके हर भक्त के पास होता है।"

"पर मुझे नहीं लगता कि कोई भी ऐसा करेगा?"


"पर हमने उस समय संभावना के तौर पर एक बात सोची थी। चूंकि करण की तलाशी के वक्त उसके पास कुछ भी नहीं निकला था। दिनेश के गले में जब हमने बाबाजी के लॉकेट वाली माला देखी जो कि पहले उसके गले में कभी नहीं देखी थी तो वह अनुमान लगा बैठे थे।"


"खैर आगे? जब मनोज ने माला डस्टबिन में डाली थी तो फिर रतन लाल हत्यारा कैसे निकला और सबसे बड़ी बात कि मनोज के पास माला कहां से आई?"


" मनोज से बात की तो उसने चौंकाने वाली बात बताई थी। उसने बताया था कि वह माला उसने रतनलाल की जेब से फर्श पर गिरते हुए देखी थी। मनोज को ढोंगी ढोंगी बाबाओं पर बिल्कुल भी यकीन नहीं है बल्कि उनसे नफरत करता है इसीलिए उसने व ह माला उठाकर डस्टबिन में डाल दी रतनलाल से पूछा भी नहीं कि वह माला उसके पास कहां से आई क्यों आईं।"


"फिर तुमने रतनलाल से बात की होगी?"


"वह तो करनी ही थी! वह पहले तो मामला डालता रहा। फिर जब हमने उसके फोन की कॉल डिटेल निकलवाई तब मामला पूरा क्लियर हुआ। जिस रात  करण का मर्डर हुआ उस रात 12:00 बजे के आसपास उसे एक फोन आया था।"


"आश्रम से आया होगा पक्का!"


"हां आश्रम से आया था और खुद बाबा जी ने किया था। फोन पर बाबा जी ने कर्ण की सारी डिटेल्स भेज कर रतनलाल से कहा था कि वह उसे मार दे और उसके पास से वह फोन ले ले जिसमें उसके बुरे  काम का वीडियो कैद था।"


"और बाबा जी ने रतनलाल को ऐसा फोन क्यों किया?"


"बड़ी ही दिलचस्प घटना है। दरअसल रतनलाल और बाबा जी एक साथ ही पढ़े है कॉलेज में।बाबा जिसका असली नाम मंगल है शुरु से ही बहुत महत्व कांक्षी था। वह बहुत जल्द बहुत अमीर बनना चाहता था इसलिए उसने धर्म का रास्ता अपनाया।क्योंकि उसे यही एक रास्ता ऐसा लगता था जो उसकी ख्वाहिश को पूरा कर सकता था और उस रास्ते पर चल कर उसकी मुराद पूरी भी हुई।"


" क्योंकि अपने यहां मूर्खो को कमी नहीं है।सबको भगवान से मिलना है जो कि इन ढोगियो ने ठेका ले रखा है भगवान से मिलवाने का।अरे जब भगवान दिल कि सुनता है दो दिल को ईमानदारी प्यार विश्वास परोपकार जैसे अच्छे गुणों से पवित्र करो ना ।जब तक ठीक से शिक्षित नहीं होगे लोग ऐसे ही ठगे जाए रहेंगे।"


" अपने एकदम सच्ची बात कही। इधर रतनलाल पुलिस में आ गया था। पर दोनों पक्के यार थे इसलिए संपर्क बना रहा। रतनलाल आश्रम में आता जाता रहता था और उसने भी वहां बाबा के साथ मिलकर कई लड़कियों के साथ बलात्कार किया था।"


"अच्छा। पर पहले तो कहीं कोई लाश नहीं मिली।"


"क्योंकि सारी लाशों को जंगल में दफन कर दो करवा दिया जाता था।"


"फिर इस बार ऐसा क्यों ना किया गया? कर दिया जाता तो लड़की की लाश ही नहीं मिलती तो शायद मामला भी नहीं खुलता?"


"इसका जवाब दो बाबाजी ही देंगे?"विजय ने कार की पिछली सीट पर बड़े बाबा की तरफ देख कर कहा। पर बाबा ने कोई उत्तर नहीं दिया।


"मेरा अनुमान है कि ऐसा बाबा ने जानबूझ कर करवाया होगा।क्योंकि ये लड़की के मामले में करण को फसाना चाहते थे।इन्हे लगता होगा कि ये करण को मारकर उससे वेडियो हासिल करने में सफल हो जायेगे।बाद में प्रचारित करवा देंगे कि लड़की का रेप ,मर्डर कर करण गायब हो गया।पुलिस उसे ढूड़ती रहती। पर यहां रतन लाल उसकी लाश जैसे बाबा ने बताया था कि उसे मारकर पटरियों पर डाल देता ।आगे उसकी मौत ऐक्सिडेंट समझ कर भुला दी जाती ।पर वह मनोज की वजह से नहीं कर पाया क्योंकि मनोज  भी वहां गश्त लगाते हुए पहुंच गया था और इसीलिए उसे लाश को छोड़कर वहां से हटना पड़ा।"


"पटरी पर भी उसकी लाश मिलती तो पोस्टमार्टम में तो आ ही जाता कि उसकी हत्या हुई?"


"हां पर उसकी खोजबीन लंबी चलती रहती! एक तो उस पर लड़की के साथ रेप और मर्डर का इल्जाम होता दूसरे उसकी पैरवी करने वाला कोई नहीं था कि कुछ दिन चलते चलते खुद ही बंद हो जाता।"


"ठीक।"


"अच्छा फिर जब रतन लाल के पास फोन आया तो फिर उसने क्या किया? मतलब करण को कैसे मारा?"


"वह ट्रेन के आने की सूचना होते ही बाथरूम चला गया था।फिर जब ट्रेन आईं तो सबकी नजरें बचाकर सीसीटीवी कैमरा से बचते हुए वह प्लेटफॉर्म पर खड़े पेड़ की ओट में जाकर खड़ा हो गया था।"


"वहां क्यों?"


"क्योंकि उसे फोन पर बता दिया गया था कि करण किस बोगी में है। इसीलिए रतनलाल ने अनुमान लगा लिया था। फिर रतनलाल किसी भी भोगी में होता उसे उसका काम तो तमाम करना ही था।"


"हूं।आगे।"


"उसका अनुमान सही निकला। करण ट्रेन से उतर कर बेंच पर आकर बैठ गया था पता नहीं क्यों। पर रतनलाल के लिए यह मौका अच्छा था उसने पीछे से उसका मफलर पकड़कर गला कस कर मार दिया था।  उसकी लाश को उठाकर आगे पटरी पर डालने वाला था।पर गश्त लगाते मनोज के वहां पर उसी समय पहुंचने से वह डर गया था और उसकी नजरें बचाकर फिर से बाथरूम में घुस गया था और फिर वहां से निकल कर वापस प्लेटफार्म पर गश्त लगाने आया था। बाथरूम में जाना उसका प्लान के तहत पूर्व निर्धारित था ताकि सबको लगता कि मर्डर के टाइम वह बाथरूम में था।एक तरह से उसका कवर अप था।"


"वह तो दिख ही रहा है।वैसे रतनलाल करण को मारकर उसका फोन उसी ने गायब किया होगा?"


"और कौन करेगा?"


"रतन लाल के जेब से गिरी उस माला का क्या राज है? जिसकी वजह से उस पर पहली बार शक हुआ।"


"दरअसल वह माला करण की थी। करण का फोन थोड़ी डैमेज हालत में था इसीलिए उसने फोन को बाबा जी की माला से कसकर बांध रखा था। मनोज के वहां पहुंचने की वजह से उसने जल्दी से करण की तलाशी लेते हुए उसकी जेब से फोन निकालकर अपनी जेब में रख लिया था और इस प्रकार फोन में लिपटी वह माला भी उसकी जेब में आ गई जो आगे फोन निकालते समय उसकी जेब से गिर गई थी जिसे मनोज ने उठा लिया था।"


"ओह। वैसे प्लानिंग तो काफी तगड़ी थी पर बच नहीं पाए मुजरिम।"एसएचओ ने पीछे बैठे बाबा की और व्यंग  से मुस्कुराते हुए देख कर कहा।


"क्योंकि क्राइम नेवर पेज।"


" राइट।"



समाप्त 



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