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सं + वेदनाएं

सं + वेदनाएं

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बिन वेदना

संवेदना का

अस्तित्व ही नहीं


तितली के रंगों में

भवरों के गुंजन में

फूलो के महक में

होती हैं संवेदनाएं


बर्फीली वादियों में

ओस के बूंदों में

सूखे पत्तों में

होती हैं संवेदनाएं


पंछियों की चहचहाहट में

परदेशी की आहट में

पतझड़ और सावन में

होती हैं संवेदनाएं


जीवन के हर संयोग से

होती हैं वेदनाएं....!


कहो

रंगो बिन तितली का

ओंस बिन सर्दी का

हिम बिन वादियों का

कोई अस्तित्व है क्या


बिन खुश्बू फूलों का

सूखे पत्तो का

साथी बिन जीवन का

कोई अस्तित्व है क्या


संयोग जननी है

समस्त संवेदनाओं की

और वियोग से उत्पन्न होती हैं

वेदनाएं सभी


गर ना हो यकीं

तो पूछना

वैरागी से कभी

हर मोह से मुक्ति

का कारण है मोह ही


संयोग का ज्ञान

विछोह का भान

जीवन का सार

वैराग्य है


और वैराग्य

आखरी पड़ाव है

समस्त

संवेदनाओं की


रंजना त्रिपाठी

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