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वो औरत है

सबने कहा...

वो कोमल है

चंचल है

लुभाना जानती है

कभी भोली मुस्कान से

कभी आंसुओं से

पिघलाना जानती है

बांध गेसुओं में

क्या खूब नचाना जानती है

हठी है

सत्ता हिलाना जानती है

वो औरत है

त्रियाचारित्र जानती है


किसी ने समझा ही नहीं..

वो सबकी हो जाती है

इसका कोई होता नहीं

बिन कहे बिन सुने

वो सबको समझ लेती है

उसे कोई समझता नहीं

छुटपन कि भोली मुस्कान से

भईया की बिरादरी चाहती है

बढ़ती ख्वाहिशें

चच्चा से आजादी चाहती हैं

पति में अपने बाबा की

परछाई चाहती है

थक जाए कभी

बाबा के गोदी में सर रख

सुस्ताना चाहती है

ये सत्ता ये जेवरात

सब उन्हीं पति पिता भाई के

सम्मान से जोड़

खुद को

सजाना चाहती है

और चाहती है

सबसे ज्यादा वो

कि ये उससे जुड़े

मर्द सभी समझे कभी

वो खुद से ज्यादा

तुम्हारी हो कर जीती है

वो मर्द नाम कि

बैसाखी नहीं

बस एक साख चाहती है

कुछ और नहीं

जरा सा सम्मान और विश्वास चाहती है

वो औरत है

पैदाइश से ही

वो सबकी है

बस उसका नहीं

कोई कहीं

माना वो

औरत है

मगर

वो भी तो

एक दिल रखती है

जज़्बात रखती हैं

तुमसे थोड़ी सी आस रखती है

वो औरत है

सबकी होते होते

सबमें अपना हिस्सा चाहती है


रंजना त्रिपाठी

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