मित्र
*मित्र*
मित्र ये तेरा ज़िक्र है या इत्र है
जब जब करता हूं महकता हूं
ए दोस्त तुझे बिना देखे हैरान हो जाता हूं
बन जंगलों मै, बांस की बांसुरी में
सूखे पत्ते के जैसे सेहेमता हूं
ए दोस्त तुझे बिना देखे हैरान हो जाता हूं
सात समंदर पार , ज़रख़ेज धरती पर
मर भी जाऊ , तो कबर से बोल उठता हूं
ए दोस्त तुझे बिना देखे हैरान हो जाता हूं
जहां दोस्ती यारानो किं कसम खाई जाती
वो याराना कि नज़्में ढूंढने चला जाता हूं
ए दोस्त तुझे बिना देखे हैरान हो जाता हूं
आंखों की सरहदें पार कर , ख्वाबों में
में तुझे रोज़ मिलने आता हूं
ए दोस्त तुझे बिना देखे हैरान हो जाता हूं
~ बिजल जगड
मुंबई घाटकोपर