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इमरोज़ की अमृता

*इमरोज़ की अमृता*  (Dedicated to Amruta Pritam)

 

मे इमरोज़ एक चित्रकार , 

एक खाली केनवास की तरह।

 

अमृता तुम आओ तो इसमें मिलन के रंग भरे,

तुम्हारी गैरहाजरी में मैने सांसों में सांस भरे

 

तुझे दख्खन में  बिठा के उत्तर में केनवास उतारा था ,

पश्चिम के सूरज ने जज्बातों  को अंगूठा लगाया था। 

 

इक रोज़ अमृता हम और तुम एक छवी बन जाएंगे,

संग एक दूसरे के साथ मिले और अकेले हो जाएंगे ।

 

ये चंद लम्हों कि मुलाक़ात , मानो फूलों की तरह अंतर्ध्यान थे, 

पत्तो पे हरा रंग लगाया था , बादलों की गुफा को दूधिया रंग  चढ़ाया था ।

 

एक रूह दो जान , 

एक अस्तित्व का यज्ञ ।

एक आदि चित्र 

आज मेरे और तुम्हारे 

साहित्य की तवारिख का अंतर्यज्ञ ।

 

 

 

 

 

 

 

  ~ *बिजल जगड*

      मुंबई घाटकोपर 

      *०८/०८/२०२०*

 

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