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आयत



'धब्ब' करके वेटिंग सीट पर वह बैठी। जैसे शरीर काफी कमजोर हो चुका था।

बहू गाँव के कुए पर पानी भरने गई थी। दरवाजे पर कुंडी लगाकर आयत लड़खड़ाते बाहर निकली। शरीर जवाब दे रहा था। हाथ पैर और चेहरा कांपने लगा। पीछे मोहल्ले में नया अस्पताल खुला था वहाँ तक पहुँचने में उसे काफी वक्त लगा।

शरीर हांफ गया।

उनकी बगल में बैठी नववधू ने पानी दिया।

"अब मुझसे नहीं चला जाता।"

वह बोल उठी।

-टांगे जवाब दे गई है,और बेलगाम पशुओं का डर भी कितना?"

परोपकारी नववधू ने उस बुड्ढी औरत का नाम 'केसफाइल' में दर्ज करवाया।

जब तक 'आयतबानो' का नाम आया उसके शरीर में बुखार और ठंडी कहर ढा उठी। 

डॉक्टर ने चेकअप करके दवाइयाँ लिख दी। 'पांच दिन बाद एक बार चेक करवा लेना' बोलकर डॉक्टर दूसरे पेशेंट को देखने लगे।

उनके मन में अभी भी चिंता बनी हुई थी। "बहू आई होगी, मुझे ना देख कर कितनी चिल्ल-पौं करेगी। मुझे डाटेगी।"

उनके बदन में झुरझुरी सी दौड़ गई।

डॉक्टर को फीस के ₹50 देकर उन्होंने दवाई की पर्ची हाथ में उठा ली। आँखों में दर्द दिखा। बाकी बचे पैसे गिने। ₹200 बचे थे। मेडिकल काउंटर पर अपने कांपते हाथों से उन्होंने दवाई की पर्ची रखी।

पर्ची उठाकर मेडिकल स्टोर वाला दवाई ले आया।

"₹500 दे दो अम्मा।"

 उसके ह्रदय में एक टीस उठी। मन को मजबूत किया और धीरे से वह बोली।

"कुछ दवाइयाँ कम कर दो भाई।"

पीछे खड़ा युवक तेजी से काउंटर पर आया। और एक छोटी सी चिट्ठी रख गया। मेडिकल वाले ने देखा उस चिट्ठी में लिखा था।

 "बूढ़ी अम्मा को जो भी दवाई चाहिए बंदमुट्ठी दे दीजिए, मैं पेमेंट करता हूँ।"

मेडिकल वाले ने पूरी दवाई पॉलिथीन की बैग में डाल कर अम्मा को देते हुए कहा।

"यह लो अम्मा, मुझसे जरा गिनती करने में गलती हो गई। दवाई पूरी है। क्षमा चाहता हूँ।"

"आपको देखकर काम करना चाहिए बेटे। कोई गरीब इंसान मारा जाएगा?"

अम्मा की नसीहत भरे शब्द सुनकर मेडिकल स्टोर वाले के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान दौड गई।

स्टोर वाला उस बूढ़ी औरत को जाते हुए देखता रहा।

उसे याद आया। चार दिन पहले सेम वाकया पेश आया था। यही युवक था। इसी तरह किसी वृद्धा को पैसे कम पड़ने पर इसने कहां था "अम्मा सारी दवाइयां ले लो मैं पैसे देता हूँ। मैं भी आपका ही बेटा हूँ। 

तब उस बूढ़ी औरत ने अपने दर्द भरे शब्दों में कहा था।

"मेरे चार चार बेटे है। अगर मेरे नसीब में पूरी दवाइयां लिखी होती तो वही पूरे पैसे ना देते?"

उस बूढ़ी औरत की आँखें भर आई थी। उस युवक का कलेजा जैसे फट गया।

गरीबों में स्वाभिमान की दौलत जिंदा देखकर वह युवक सिर्फ इतना ही बोल पाया। "अफसोस की मैं उनकी मदद नहीं कर पाया।"

पर आज उसकी आँखों में संतोष भरी चमक थी। 


        ( संपूर्ण)








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