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कयास रहने दे!

हरे दरख़्त न सही थोडी-सी घास रहने दे!

ज़मीं के सीने पे थोड़ा-सा लिबास रहने दे!


रफ़्ता रफ़्ता ही बुझने दे, एकमुश्त नहीं,

तपते रेगिस्तान में थोड़ी-सी प्यास रहने दे!


उम्र भर का इंतजार जाया नहीं जाएगा

बाद मरने के भी थोड़ी सी सांस रहने दे!


आंखें कोरी हो गई तो होने लगेगी जलन,

आंखें थोड़ी नम थोड़ी सी उदास रहने दे!


क्यों दिखना है तुम्हें आईने की तरह साफ

आखिर, अपने लिए थोड़ा सा कयास रहने दे

​–=०=–

       (ध्रुव पंक्ति साभार प्रोफेसर जेठवा)

                                           —आखिर बिलाखी        


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