रेत के दाने
रेत के दानें
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" बेटा , इस बार जन्मदिन पर तुम्हें क्या चाहिये ? " पिता ने अपने लाड़ले से प्यार से पूछा।
" कुछ नहीं... "
" यह कैसे हो सकता है ? कुछ तो चाहिये जो तुम मुझसे छुपा रहे हो ! बोलो ! शानदार तोहफ़ा दूंगा। "
" रहने दीजिये पिताजी , आप नहीं दे पायेंगे ! "
" क्या ! मैं नहीं दे पाऊंगा ! "
अपने बंगले की ओर देखते हुए बोले
" यह सब तुम्हारा है , और जो मांगोगे दे सकता हूं...ये दौलत ,शोहरत , इज़्ज़त... सबकुछ तुम लोगों के लिये है !बताओ, क्या खरीदना है ! "
जवान हो रहे बेटे ने कहा
" खरीदना नहीं है , जन्मदिन आपके साथ मनाना चाहता हूं पिताजी , क्या आप मुझे अपना वक्त़ दे पायेंगे ! "
पिता की मुठ्ठी से रेत के दानों के मानिंद दौलत ,शोहरत पल भर में फिसलकर ज़मीन पर बिखर गई थी ! वे खुली हथेलियों को ताक रहे थे !
- © डॉ. वसुधा गाडगिल , इंदौर