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ज़िंदगी - एक गांव

ज़िंदगी नाम के गाव में एक छोटा सा घर है मेरा। मैं अक्सर उसकी छत पर बैठे एक हाथ में चाय का कप लिऐ ज़िंदगी को निहारता रहता हूं। मेरे उस घर के सामने से एक सड़क गुजरती है, कहां जाती है आज तक पता नहीं चला मुझे पर, कहीं दूर जाती है शायद क्यूंकि आज तक कोई उस पर जाकर वापिस नहीं आया। कई पुराने अपने लोगो को मैंने मुझसे मुंह फेर कर उस सड़क से जाते देखा है। और कईओ को यहां मेरी ज़िंदगी में अपना मकान बांधते भी देखा है। आज उसी सड़क के बगल में कुछ लोग अपना मकान बांध रहे है। शायद यह लोग ठहर ने वाले है मेरी ज़िंदगी में। खैर कितने दिन यह तो वक्त ही बताएगा। पर छोड़िए मुझे क्या, में तो अपना खुद का साथी हूं और हा मेरी दिलबर भी तो है साथ, ये चाय।

- Karan Tanna

A Dead Scribbler

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