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निरीह गीत

रमणी मन को अकुलाता

एक रात्रि गीत सहसा प्रकटता

गीत निरीह को क्या पता

उसके व्याकुल मन की व्यथा

 

निशा-नीरव भंग होती उसके आगमन से

शशिकिरणें लरजतीं उसके इस आक्रमण से

नहीं पता उसे, रमणी मन है विदीर्ण

अपने प्राणसखा के अनागमन से

 

वह तो जन्मा ही उस अधीरता से

रमणी के मन की आर्तता से

जो देकर गया है उसे मन का मीत

निशा-नीरव भंग करता वह रात्रि गीत।

                           

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