पुस्तक तपशिलाकडे परत अहवाल पुनरावलोकन

पारीजात

का रे..!! पारीजात तु रात्रीच का बहरतोस,

अन् सकाळी अंगणात स्वतःचीच  आरास मांडतो,

सुंदर तुझे रूप पण लौकरच कोमेजतोस,

कि ह्या कठोर जगात जगायला तु पण घाबरतो...???

                              शुभांगी....

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