समय के साथ
*समय के साथ*
कार्यक्रम पश्चात निर्णायक ने अंतिम निर्णय सुनाया तो वरिष्ठ समूह में विजेता के रूप में श्रीनिवास जी का नाम सुन पिंकी उछल पड़ी। उसके मम्मी पापा की भी खुशी देखते बनती थी।
आज सुबह की ही घटना थी, रवि ने उलाहना देते हुए कहा था, " ये क्या नया शौक पाल रखा है पापा आपने भी, शोभा देता है क्या सब इस उम्र में?"
"तो क्या हुआ रवी? कुछ नया सीखने और करने की कोई उम्र या सीमा नहीं होती है।कहीं भी मैंने लिखा या पढ़ा नहीं पाया कि अमुक उम्र में कुछ नया सीखना नहीं चाहिए।" श्रीनिवास जी बोले थे।
दरअसल उन्होने शहर के एक नवीन कराओके सिंगिंग ग्रुप की सदस्यता ग्रहण की थी ।
गाने का शौक था, लेकिन जब तक शासकीय नौकरी में थे तो समय नहीं निकाल पाए।अब सेवानिवृत हुए भी काफी समय हो गया।लेखन वाचन भी बहुत कुछ कर लिया।अब नया करने के उद्देश्य से गाने का ग्रुप ज्वॉइन कर लिया।
पिंकी हमेशा से दादाजी का समर्थन करती आई थी। मोबाईल से नये ट्रैक डाऊनलोड करना, पैनड्राईव से सिस्टम को जोड़ना..... फिलहाल दादू की गुरु और निर्णायक वह ही थी।
आज शाम कराओके ग्रुप में प्रतियोगिता थी और पिंकी के दादू विजेता घोषित हुए थे।
श्रीनिवास जी ने रवी को छेड़ा, " क्यों हमारा शौक पसंद आया या नहीं?"
उत्तर में रवी पापा के चरणों में झुक गया।
©दीपक कर्पे
01/02/2021