आस्था और विश्वास
आस्था और विश्वास- © ऋचा दीपक कर्पे
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ये हमारी आस्था, हमारे व्रत-त्योहार ही हैं जो हमें संकट के समय धैर्य धारण करने की शक्ति देते हैं। हम कितने ही चिंतित क्यों न हों, आसपास कितनी ही नकारात्मकता, उदासी क्यों न छाई हो.. हमारा धर्म, हमारे त्योहार, पूजा-पाठ हमें नकारात्मकता और नैराश्य से निकाल कर हममें उत्साह का संचार करते हैं।
कैलेंडर पर लिखी एक तिथि देख घर की लक्ष्मी सारी चिंताएँ और आलस्य त्याग जुट जाती हैं त्योहार की तैयारियों में। जल्दी उठकर, नहा धो कर , पूजन की तैयारियाँ होने लगती हैं।
आरती के स्वर, घंटानाद और धूप-दीप-अगरबत्ती की महक जब घर के कोने-कोने तक पहुँचती है, तब सारा भय, सारी नकारात्मकता और निराशा नष्ट हो जाती है।
आज कई लोग कह रहे हैं संकट के समय मंदिर बंद कर दिये। ईश्वर ने अपने द्वार बंद कर लिये! अरे कौन कहता है कि ईश्वर मंदिर -मस्जिद- गुरुद्वारे -गिरिजाघर में रहता है??
ईश्वर तो कण-कण में है। जिस घर में रिश्तों की मिठास है, अपनापन है और संवाद है वहाँ ईश्वर है। ईश्वर आपके घर के छोटे-से पूजाघर में भी है, तुलसी वृंदावन में है, आरती के स्वर में है, शंखनाद में है, दीपक की ज्योति में है, धूप-दीप की सुगंध में है, नैवेद्य में है.."अन्न हे पूर्णब्रम्ह"
प्रार्थना और ध्यान में प्रचंड शक्ति है। ऐसी शक्ति जो मनुष्य के शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कई गुना बढ़ा सकती है।
पहले भी उत्सव और त्योहार लोंगों के नीरस जीवन और निराशा में आशा बनकर आते थे।
आज भी हमारी यही आस्था, हमारा विश्वास और प्रकृति से हमारा जुडाव हमें हर संकट से उबार लेगा।
पुनः यही कहूँगी, विश्वास रखें, प्रार्थना करें, ध्यान करें, संगीत सुने, सकारात्मक रहें, स्वस्थ रहें।
अपना और अपनों का ख़याल रखें।
शुभम् भवतु।
जय हिंद जय भारत।
©ऋचा दीपक कर्पे