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प्रेम

सांग  सांग  कस प्रेम तुला   पुन्हा  करू 

सांग  मला  कसे  तुला  विसरू 

कसा  ग  तुझा  मोह  मी  सोडू 

दिल  वचन तुला  कसे  मी  तोडू 

ही वाट  परकी  कशी  तुझा  कडे  मोडू 

टिचलेल्या हृदयास  माझा  कसे  मी  सावरू 

सांग  सांग  कस पुन्हा तुला प्रेम  करू 

सांग  मला  कसे  तुला  विसरू 

 

आयुष्य  माझं  तुझा  नावाने  चालते 

शब्द  नाहीत  तुझा  कडे  तरी  माझाशी  तू  बोलते

आठवणी  तुझ्या  मला  तुझ्या  कडे  ओढते 

तू  नको  माझा  सारखी  प्रेमात  बावरू

सांग  सांग कस  पुन्हा  तुला  प्रेम  करू 

सांग  मला  कसे  तुला  विसरू 

 

मी  जेव्हा  बोललो  भावना  तुला 

तू  म्हणे  प्रेम  नको  करू  मला 

अश्रूंनी भरले  होते  डोळे  माझे 

त्या  क्षणी कठीण  होते  हसवणे  तुला 

मनातली  भावना  मनात  दाबली 

चाबी माझ्या  ओठी  तुझ्या  नावानं लावली 

तुझ्या  जागल्या  भावना  तर  कसे  मी  आवरू 

सांग  सांग  मला  कसे  पुन्हा  तुला  प्रेम  करू 

सांगना  मला  कसे  तुला  विसरू 

 

  तू  दिसलीस  की मनी मी  खूप  हसायचो 

तुला  नकळत  तुला  मी  बघायचो 

जर  भिडली  नजर  माझी  तुझ्या  नजरेशी 

नजरेला  नजरांनी  मी  ग  टाळायचो 

आता  तुझा  हातावरती  कसे  माझे  नाव  कोरु

सांग  सांग  मला  कसे  पुन्हा  तुला  प्रेम  करू 

सांग  मला  कसे  तुला  विसरू 

 

तुला  गुणल  माझ्यात  उत्तर  भेटलं  नाही 

  स्वप्नात  ही स्वप्न  आज  तुझं  आलं  नाही 

नाते  मैत्रीचे  आपुले  तू  तोडत नाही 

नाते दुसरे  कसले  जोडत  नाही 

नात्याला  आपुल्या  कस मी  सावरू 

सांग  सांग  मला  कसे पुन्हा  तुला  प्रेम  करू 

सांग  मला  कसे  तुला  विसरू 

तुझ्या  माझ्या  नात्याला  मी  समझून  घेईन 

तुला  भूतकाळासारखा  मी  विसरून  जाईन 

फक्त  आठवणीत  माझ्या  तू  जिवंत  राहीन 

तू  नसेल  सोबत  तेव्हा  अश्रू  माझे  वाहीन 

अश्रू  तुझे  माझे  कसे  मी  चारू 

सांग  सांग  मला  कस  पुन्हा  तुला  प्रेम  करू 

सांग  सांग  मला  कसे  तुला  विसरू 

         कवी  समाधान  पारधी  गांधलीकर

 

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