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इम्तहान

कनक के लिये ये कठिन निर्णय था। पर पिताजी कहाँ मानने वाले थे, कह दिया था अच्छा लडका है। 

हाथ से छूट गया तो फिर ऐसा लडका मिलना मुश्किल होगा।  पर मेरा कालेज - "कनक ने कहा। 

कोई जरूरत नहीं,  कालेज से ज्यादा जरूरी घर बस जाना है। 

रूपेश बुरा लडका नहीं है,  यदि वहां तूने समझदारी दिखाई तो पढ भी लेगी। 

शादी की तारीख भी आ गई

शादी हो भी गई... उधर सास की तबीयत खराब रहने लगी,

कनक जल्दी से पोते का मुँह दिखा दे बेटा,सास बोली। 

कनक को काटो  तो खून नहीं, शादी हुए कुछ दिन हुए नहीं और यह नया फरमान!

पर माँ जी  वो मेरी डिग्री... कनक बोली। 

डिग्री तो मिल ही जाएगी तुझे, "एम. ए.  .." की

माँ बन जाएगी तू.. देख फिर,  सासू उसके आग्रह को टाल कर अब रूपेश के पीछे पड़  गई,

मेरी तबीयत का ख्याल कर बेटा,  न जाने कब आँख बंद हो जाए, पोते का मुँह दिखा दे..

पोता भी आ गया और सासू माँ की तबीयत पोते को देख कर ठीक हो गई,

कनक के लिये यह भी अच्छा था कि अब सासू माँ पोते का ख्याल रखेगी और वह अपनी पहली चाहत को पा सकेगी, रूपेश से उसने फिर अपने मन की बात रखी, 

रूपेश ने भी हामी भर दी, पर सासू माँ के लिये पोते को सम्हालना कठिन होने लगा, परीक्षा के दिन आए तो सासू मां ने अपने छोटे बेटे के पास जाने की जिद पकड ली,  इम्तहानों में एक यह भी कह कर सासू को गाडी में बिठाकर कनक बच्चे सहित परीक्षा हाल में जा पहुँची, 

हॉल  में परीक्षक ने टोका इसे लेकर कैसे परीक्षा दोगी, 

कनक ने विश्वास से कहा, यह मेरा काम भी और जवाबदारी  भी है, मै सम्हाल लूंगी सर,

पूरी कक्षा की नजरें उसी की ओर थी, और कनक का पूरा ध्यान अपने जवाब लिखने में था।  

 

सुधीर देशपांडे.

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