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मैं अपने पापा की परी




गुलशन थी मेरी दुनिया जिसमें फिक्र को जगह नहीं थी, यह उन दिनों की बात है जब मैं अपने पापा की परी थी।


अपने में ही मशगूल थी में दुनिया से ना डरती थी ,कहीं इस बात की तसल्ली थी जरूर मुझको कि पापा तो है ना यह मैं सब से कहती थी।

एक दिन ऐसा आया लगा सब खो सा गया है, मेरे जिंदगी का वक्त थम सा गया है ,फिक्र दरवाजे पर आ खड़ी थी और मैं पापा को खो चुकी थी।

अब पापा ना थे और ना ही उनकी परछाई ,जिम्मेदारियों की कड़ी धूप मेरे कोमल मन को बार-बार जलाई।

आज मैं जल भून के हीरा बनी हूं तो सिर्फ पापा के प्यार में,
यह उन दिनों की बात है जब मैं अपने पापा की परी थी।

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