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द लंडन जंगल बुक

पुस्तक समीक्षा : The London Jungle Book (अद्भुत, अकल्पनीय)


"एक थाल मोती से भरा, सब के सर पर औंधा धरा" 

" लाल दीवार, हरा मकान अंदर बैठे काले पठान"

आसमान और तरबूज की कल्पना किसी ने यूँ कर दी... जो जैसा दिखा और देखकर जो लगा उसे बिना किसी साज-सजावट के सादगी से कह दिया!अपनी नज़रों से दुनिया देखने, अपने हिसाब से उसे समझने और मासूमियत के साथ उसे अभिव्यक्त करने की यह सादगी कम ही देखने को मिलती है। 

अक्सर प्रतिष्ठा और प्रसिद्धि परिपक्वता की ओर ले जाती है और सादगी खो जाती है। 

लेकिन हाल ही में एक किताब "The London Jungle Book" पढ़ी जिसमें जानेमाने गौंड चित्रकार #भज्जू श्याम को लंडन के प्रसिद्ध भारतीय डिजाइनर राजीव सेठी द्वारा लंडन आमंत्रित किया गया, एक प्रसिद्ध रैस्तरां की दीवारों पर चित्रकारी करने के लिए.. !


एक छोटे-से गाँव का, थोड़ा-बहुत पढ़ा-लिखा व्यक्ति अचानक से सात समंदर पार के लिये निकल पड़ता है। हर चीज़ उसके लिए नयी है और उसके पास एक चित्रकार की दृष्टि है..अपने पारंपरिक कला चिन्हों के माध्यम से वह "पूरब" और "पश्चिम" की संस्कृति को जोड़कर एक अलग ही तानाबाना बुनता है और चित्रों के माध्यम से स्वयं की कल्पनाओं को अभिव्यक्त करता है!!


#वह निकल पड़ता है दिल्ली के लिये ट्रेन में बैठकर और अचानक उसे लगने लगता है कि उसके विचार रूपी पंछियों की गति ट्रेन से भी ज्यादा है !

(चित्र 1)


#वह पहली बार हवाई जहाज देखता है जो उसे एक बड़ा सा शिकारी पक्षी लगता है..और कतार से उसके भीतर जाते लोग चीटियों की तरह नज़र आते हैं ! मानो सारी चीटियों को निगल जाने के बाद वह पंख फैला कर उड़ जाएगा!!



#वह लंडन की अंडरग्राउंड टनल ट्रेन को विभिन्न रंगों के साँप और कैंचुएँ से व्यक्त करता है क्योंकि

उसके पुरखों ने उसे बताया था कि जम़ीन के नीचे साँप और कैंचुओं की दुनिया होती है !!

(चित्र 2)


#वह देखता है कि दिनभर तो लंडन के लोग बडे़ ही  शाँत और औपचारिक रहते हैं, हल्के फॉर्मल परिधान में, लेकिन रात के समय पब में पहुँचते ही इनका रूप बदल जाता है। काले रंग के कपड़े पहन शोर-शराबे, मस्ती और शराब में डूब जाते हैं ! 

उसने पब को दिखाया एक महुए का पेड़ और रात होते ही सक्रिय होनेवाले लंडनवासी उसे चमगादड़ की तरह लगे।



#वह "बिग बैंग" की घड़ी को मुर्गे की आँख बनाकर उन्हें एकरूप कर देता है क्योंकि उसके गाँव में मुर्गे से होने वाली सुबह यहाँ लंडन में इस घड़ी से होती है।


#वह लंडन की महिलाओं की तुलना चार भुजाओं वाली देवी से करता है जो "मल्टिपल टास्किंग" करती है लेकिन प्रसन्न मन से स्वयं के भी शौक पूरे करते हुए !!

(चित्र 3)


और ऐसे अनेक प्रतीकात्मक पारंपरिक चिन्हों और चित्रों के माध्यम से वह अपनी लंडन यात्रा पूरी करता है


और अंततः 


#वह स्वयं को एक "बुजरुख" (कथाकार) की तरह देखता है, अपने गाँव के लोगों को अपनी लंडन यात्रा के किस्से सुनाता हुआ !!



बहुत ही अद्भुत पुस्तक है। मुझे लगता है कि इस पुस्तक का हिंदी में अनुवाद होना चाहिए ताकि गोंड कला और उसमें नीहित कमाल की अभिव्यक्ति क्षमता भारत के कोने कोने में पहुँचे!!


मुझे यह किताब पढ़ने को दी डांगे मावशी ने,जो बचपन से ही मेरा हाथ थामें मुझे किताबों के अद्भुत विश्व में ले गई.. और आज भी मुझे ऐसी दुर्लभ और रोचक किताबें पढ़ने को देती हैं जिन्हें पढ़कर मैं एक अलग ही दुनिया में चली जाती हूँ.. किताबों से मेरी मित्रता करवाने का एक बड़ा श्रेय उन्हें जाता है!! 

बचपन से मैं उनकी सादगी, कला..गंम्भीर, शाँत, मधुर आवाज और व्यक्तित्व से आकर्षित हूँ और रहूँगी !!


यह किताब एमेजॉन पर उपलब्ध है, अवश्य पढ़िये।




©ऋचा दीपक कर्पे




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