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ऑन लाईन क्लॉसें !

पढ़ाई लिखाई और एक्जॉम का जो ढर्रा है आजकल ! उससे मैं बहुत निराश हूँ ! ऑन लाईन क्लॉसें ! मोबाईल की टुच्ची सी स्क्रीन मे थोड़ी थोड़ी सी दिखती दुबे मैडम ! अब यदि दुबे मैडम क़ायदे से दिख ही ही नहीं पायें तो ऐसी पढ़ाई और क्लॉसों का मतलब ही क्या है !
यदि ऑनलाइन क्लॉसों वाला ये सिलसिला जारी रहा तो आजकल के बच्चे उस नियामत से महरूम रह जायेगें जो हमें नसीब हुई थी ! क्लासें मौक़ा होती थी कि दुबे मैडम को ऊपर से नीचे ,आगे ,पीछे और दाँये से बाँये पूरी तरह ,पूरे इत्मीनान से निहार लिया जाये !
अब आपने पूछ ही लिया है तो बताये देते हैं ! दुबे मैडम कॉलेज में पढ़ाती थी अंग्रेज़ी ! बाईस तेईस साल की एक छरहरी सी ,लंबी गुलाबी लड़की ! जिसके गालों में शर्मिला टैगोर की तरह गड्डे पड़ते थे ! एक ऐसी खूबसूरत लड़की जिसकी मोटी चोटी उसकी कमर तक झूला करती थी ,जिसके ऊँची एड़ियों वाले सैंडल तक हमें हैरान कर देते थे ,इतनी कम उम्र होने के बावजूद नरसिंहपुर कॉलेज में केवल इसलिये नौकरी पा गई थी क्योंकि वे अंग्रेज़ी जैसे सड़ियल विषय में पोस्ट ग्रेजुएट थी ! शायद टॉपर भी थी अपनी क्लॉस की और इसलिये थी क्योंकि गिनती के कुल जमा चार छह स्टुडैंट उसके मुक़ाबले में थे ! किसी बड़े आदमी की रिश्तेदार थी और ये सारी खूबियाँ काफ़ी थी कि वो कॉलेज में बतौर एड-हॉक प्रोफ़ेसरी पा जाये !
नौकरी मिलने पर क़ायदे से खुश होना चाहिए था उन्हे ! पर उनकी बवाले जान बने मैं और मेरे जैसे और भी दसियों देहाती लड़के ! सत्रह अठारह साला ऐसे लड़के ,जिन्हें अंग्रेज़ी की एबीसीडी में राई रत्ती भर भी दिलचस्पी नहीं थी ! पर ये ऐसे लड़के थे जिनकी दुनिया इस अंग्रेज़ी पढ़ाने वाली ने उलट पुलट कर रख दी थी ! ये सारे लड़के मर खप कर ,खूसट बूढ़े टीचरों से अपनी तमाम तरह से बेइज़्ज़ती करवाने के बाद मेट्रिक का नरक पार करके कॉलेज की सीढ़ी चढ़ सके थे ! रेगिस्तान के मारे थे ,प्यासे थे और अचानक उनका सामना नख़लिस्तान से हो गया था ! ऐसे में उन्हें सामूहिक तौर पर अपने कल की चिंता हुई चूँकि तब तक यह बात स्थापित हो चुकी थी कि भविष्य तो अंग्रेज़ी वालों का ही उज्ज्वल है ,ऐसे में उन्होंने इस उज्ज्वल और सुनहरी टीचर की क्लॉस में दाख़िला लिया और निश्चिंत हो गए !
पर क्लॉस में जो सांस्कृतिक गतिविधियां थी हम लोगों की ,उससे भविष्य के होश उड़ना ही थे ! दुबे मैडम आते ही निहारी जाती ! ऐसे आकांक्षी भाव से निहारी जाती जैसे कोई पंख फड़फड़ाती परी मन की इच्छा पूछने चली आई हो ! अब दुबे मैडम थी तो लड़की ही ! वो बहुत जल्दी इस नतीजे पर पहुँची कि सामने बैठे बालक उतने भी बालक नहीं है जितना वो समझ बैठी थी ! वो नज़रें चुराती ! गुलाबी से लाल हो जाती ! झेंपती ,शर्माती ,जो कहना चाहती उसे छोड़कर सब कुछ कहती ,बार बार घड़ी देखती और पीरियड ख़त्म होने का घंटा बजते ही सर पर पाँव रखकर सरपट दौड़ती !
दिन और बीते फिर ! फिर उस हैरान समझदार कन्या ने हम लोगों बाबत सोचा ! उसे लगा कि ये लड़के उतने भी ख़तरनाक नही ! अब तक वो ये जान चुकी थी कि इस गिरोह का सरग़ना कौन है ,और किसके साथ थोड़ी नरमी से पेश आकर क्लॉस में खड़े रहने लायक़ परिस्थितियां बनाई जा सकती है ! लिहाज़ा मेरे और उनके बीच एक अनोखा सामंजस्य स्थापित हुआ ! मेरी तारीफ़ भरी निगाहों को लेकर सहज होने की आदत डाल ली उन्होंने ! ऐसे में मैं उनके क्लॉस में आने इंतज़ार करता ,बौराया बौराया फिरता ! बाक़ी शैतान लड़कों से उनका बचाव करने की नैतिक ज़िम्मेदारी मैंने खुद ही ओढ़ ली और पूरे साल निष्ठापूर्वक अपने इस दायित्व का पालन करता रहा !
दिक़्क़तें खड़ी हुई साल ख़त्म होने पर ! जैसी की परम्परा है ! जब क्लॉस लगती है तो परीक्षा भी होती है ! और परीक्षा होने से भी बुरा यह कि उसके नतीजे भी आते हैं ! ऐसे में मेरी अंग्रेज़ी की परीक्षा भी हुई और नतीजे भी आये ! जो नतीजे आये वो दुबे मैडम जैसे दर्शनीय तो हरगिज़ नहीं थे ! मेरे साथ तीन चौथाई क्लॉस मुँह के बल गिरी ! अंग्रेज़ी की रणभूमि में वीरगति को प्राप्त हुई ! रिज़ल्ट बोर्ड के सामने इतनी लाशें बिखरी थी कि गिनना मुश्किल था ! और फिर उसके बाद जिस लानत मानत से सामना हुआ मेरा ,वो अंग्रेज़ी से एक बार फिर मोहभंग होने के लिये काफ़ी थी !
दुबे मैडम कहाँ है अब ! यह नहीं जानता मैं ! पर वो जहां भी है ,यदि मेरी बात उन तक पहुँच सके तो मैं उन्हें ये साफ़ साफ़ बता देना चाहता हूँ कि मेरी ख़राब अंग्रेज़ी की वो इकलौती ज़िम्मेदार हैं !

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