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हम अपने ही बारीश में

हम अपनें ही बारिश में...


सवालों के बादल 

आसपास घिरते रहे।

हम अपनें ही बारिश में

अक्सर भीगते रहे।


हवा का रुख भी 

आयेदिन बदलता रहा।

उम्मीद के दिये को

रौंदता, कुचलता रहा।


उंगलियों की बिजलियां 

कड़कड़ाती रही।

मेरे तन और मन को 

जलाती रही।


लोग लुफ्त उठाते रहे 

खिड़कियों से झाँकते रहे।

हैरत की बात यही थी कि

तुम भी उनमें शामिल रहे।

--सुनिल पवार..✍️

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