रचना के विवरण हेतु पुनः पीछे जाएँ रिपोर्ट टिप्पणी/समीक्षा

पिता”

“पिता”
उनके होने से

कही धूप कही छाँव है
उनके होने से
हर क्षण आनंद, हर क्षण त्यौहार है

वह श्रीहीन या श्रीमंत हो
उनके होने से
हर पाल्य, स्वर्ण तुल्य राजकुमार है

माँ प्रथम पुजनीय है
उनके होने से ही
प्रथम पुजनीया यह उसका मान है


जीन्दगी में कहाँ हार है
उनके होने से
हर हार, जीत की ओर कदमताल है

जब मायुस हो थम जाता हूँ
“मैं हूँ ना” उनका आश्वासन
जीवन पथ पर आगे जाने का मार्ग है

सुना है बाहर बहुत अंधेरा है
उनके होने से
चारो तरफ फैला उजाला है

कहने को दो शब्द है
उनमे छिपा जीवन का सार है
उनका होना यही इस जीवन का आधार है

कोई माने या ना माने
पिता के होने से
हर पुष्प अपनी धरा से जुड़ा है
उनके बस होने से ही
यह जीवन पुष्प खिला है......

मीनलआंनद

 

 

टिप्पणी/समीक्षा


आपकी रेटिंग

blank-star-rating

लेफ़्ट मेन्यु