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साल में एक बार फादर्स डे

हमारे अपने हिंदू कैलेंडर जितना कर्मठ कैलेंडर दुनिया में और कोई नही ! रोज़ कोई ना कोई तीज त्योहार उसे काम पर लगा देता है ! बहुत थोड़े दिन होते हैं इसमें जब आप बिना बधाइयाँ लिये दिये ,बिना उछले कूदे ,चैन से रह सकें !
चूँकि मेहनती की इज़्ज़त होती है ऐसे में हिंदू कैलेंडर के सामने अंग्रेज़ी कैलेंडर खुद को ऐसा अनाथ महसूस करता था ,जिसे पैदा होने के फौरन बाद किसी चर्च के गेट के सामने छोड़ दिया गया हो ! ले देकर एक क्रिसमस मनाने वाले अंग्रेजों को हमारी ऐसी करनी से हेठी महसूस हुई ! उन्होंने फटाफट वैलेंटाइन डे ,किस डे और हग डे जैसे दर्जनों रोमांटिक त्योहार ईजाद किये और अपने ही बनाये कैलेंडर को काम पर लगा दिया ! पर बात फिर भी नहीं बनी ,वैसी इज़्ज़त फिर भी हासिल हुई नही उनके कैलेंडर को ! अग्रेंजों ने और सोचा विचारा इस बाबत ,और इस नतीजे पर पहुँचे कि उनका कैलेंडर सात्विकता के मामले में हिंदुस्तानियों के कैलेंडर से मार खा रहा है ऐसे में उन्होंने इसमें फादर्स डे और मदर्स डे जैसे सात्विक और डॉटर्स डे जैसे पारिवारिक टाईप के त्योहार जोड़े ! पर हुआ उल्टा ,हम लोग उनके बनाये इन त्योहारों पर भी काबिज हो गये ! और अपनी ज़िंदगी के ऐसे दिनों का भी जब हम बिना बधाई लिये दिये साँस ले सकते थे ,सत्यानाश कर लिया !
अब बताईये ,फादर्स डे भी कोई मनाने की चीज़ है ! आज कल के बापों की बात छोड़ दें तो हम लोगों के वक्त के बाप तो हमारी छोटी सी दुनिया के बॉस हुआ करते थे ! ऐसे बॉस जिन्हें ना सुनने से परहेज़ था ! तब तक ऐसे बाप ,पैदा ही नहीं होते थे जो साल के एक दिन मनाने से राज़ी किये जा सके ! ठाठ थे पुराने जमाने के बापों के ! वो जब चाहे अपनी मनवा सकते थे ,और अमूमन हिंदुस्तानी औलादों के पास उनकी मानने के अलावा और कोई चारा होता नहीं था ! सवाल जवाबों से परे ऐसी शख़्सियत किसी फादर्स डे की मोहताज हो भी नहीं सकती थी ! चूँकि आज से सौ पचास साल पहले तक ज़िंदा लोगों के दिन मनाने का चलन शुरू हुआ नहीं था ऐसे मे यदि उस वक्त के बाप ऐसे किसी अहमक डे के बारे मे सुन लेते तो वो इसे मनाने को लेकर भी अपनी औलादों को कूट सकते थे !
जैसा कि आप सभी जानते है ,अंग्रेज उनके ही डे मनाते हैं जो ख़तरे में हों ,जिनकी तरफ़ तवज्जो देने की ज़रूरत हो ,अर्थ डे और वूमन्स डे इसी कैटेगिरी के त्योहार है ! आजकल के फादर्स को भी उन्हीं में गिनने लायक़ माना अंग्रेजों ने और उन्हें साल का एक दिन अलॉट कर दिया !
एक लिहाज़ से ऐसा किया जाना ठीक ही है ! चूँकि बदलते वक्त के साथ अब बाप की पोस्ट का भी अवमूल्यन हो चुका ! आजकल के बापों को वो हिटलर वाला राज नसीब हुआ ही नही कभी ,जो उनके बापों की क़िस्मत में था ,ऐसे में उनके ज़ख़्मों पर मरहम लगाने के लिये ,साल में एक बार फादर्स डे मनाने जैसी रस्में अदा की जाती है और आज ऐसा ही करने का दिन है !

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