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मेरे सांवरे

मेरे साँवरे, 

               नैनों में मेरे है पपीहे की प्यास, 

               कब आयेगा मेरा सावन मेरे पास,

               बुझती है हर साल पपीहे की प्यास 

               बितेगी कब मेरी ग्रीष्म की ये रात।

              हे माधव ! तेरी प्रतीक्षा में न जाने कितने बरस बीत चुके हैं ।एक एक बरस जैसे एक एक युग। मुझे ऎसा प्रतीत होता है जैसे मैं युगों से अपनी अखियों में तेरी प्रतीक्षा का कजरा लगाकर ,मेरे अंतर में तेरे प्यार का दीपक जलाकर तेरी राह देख रही हूँ । 

              सुबह जब पंछी चहकते हैं तब लगता हैं मानो तुम्हारे आने का संदेश दे रहे है और मेरा मन खुशी से खिल उठता है । लगता है अब तो मेरा साँवरा अपना वादा निभाने जरूर आएगा।सोचती हूँ कि जब तुम आओगे तब तुम से मैं झूठमूठ की रुठ जाउंगी और तुम प्यार से मेरी मिन्नत करोगे और मैं जल्द मान भी जाउंगी। मैं तुमसे ये कहूँगी,मैं तुमसे वो कहूँगी। तुम्हारी राह देखते देखते सुबह से शाम हो जाती है लेकिन मेरी आस खतम नहीं होती।मैं नित नए श़ृंगार सज के तेरी राहो में दीप जलाती हूँ मगर तुम नहीं आते और रात का अंधेरा मेरा उपहास करते हुए मेरी प्रतीक्षा को और दुगुनी कर देता है। हरेक नया दिन मुझे खूप तडपाता है । मैं मचल उठती हूँ, मेरी आंखों से यूँ मोटे मोटे आंसु गिरने लगते हैं तब न जाने कहाँ से तुम्हारी हँसी की आवाज चारों तरफ गूँज ने लगती है । मैं बड़ी ब्याकुलता से तुम्हें ढूंढ ने की कोशिश करती हूँ। पर तुम कहीं भी नज़र नहीं आते और जब मैं थक, हारकर अपनी अखियां मींचे एक कोने में जा कर बैठ जाती हूँ तब मेरी पलकों के छोर पर तेरी मोहनी मुरत की झाँकी प्रकट होती है। ये स्वप्न है या सत्य ये समझने के लिए मैं दौड़ कर तुम्हें पकड़ ने की कोशिश करती हूँ मगर तब तक तुम्हारी छवि न जाने कहां हवाओं में छिप जाती है ।

                मैं पागलों की तरह बांहे फैलाए इधर- उधर भागती हूँ और तब मुझे छूकर जाने वाली हवा में मुझे तेरे स्पर्श की अनुभूति होती है। मेरी साँसो में तेरे साँसो की खुशबु घुल जाती है।अचानक मेरे बालों की लटें बिखर जाती है । मेरा जिस्म जैसे पिघलने लगता है। मेरे अंतर की वीणा के तार झनझना उठते हैं ।"तुं हि! तुं हि " का नाद उठता है और मैं तेरी मुरली के सूरों के पीछे दौड़ती हुई, मेरी आंखों में तेरी प्रतीक्षा का सुरमा लगाकर ,मेरे प्यार के दीये की लौ के सहारे तेरे कदमों के निशान ढूंढती रहती हूँ । कब से ये सिलसिला जारी है , मगर

                हे नाथ ।  देर ना होवे कहीं बिती जाए रैना, राहों में तेरी मैं ने बिछाए है नैना। अब मान भी जाओ ।

आपकी प्रतीक्षा में, 

    बिरहन भारतीका प्रणाम ।


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